सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने दिल्ली पुलिस को दिल्ली दंगे को लेकर सख्त टिप्पणी की है।उन्होंने कहा- सीएए विरोधी छात्र कार्यकर्ताओं के मामले में पुलिस ने हर कदम पर नेचुरल जस्टिस के सिद्धांत का उल्लंघन किया है।उन्होंने कहा- जिस तरह से देवांगना को 24 मई 2020 को एक वर्चुअल कोर्ट रूम से गिरफ्तार किया गया, वह भारतीय न्यायिक इतिहास में कभी नहीं हुआ था।
उन्होंने हालात कि तुलना अमिताभ बच्चन की फिल्म शहंशाह से की जिसमें खलनायक को ‘गलती से’ एक अदालत के अंदर फांसी पर लटका दिया जाता है। पूर्व न्यायाधीश ने कहा- हमारे संविधान में, शांतिपूर्ण विरोध की इजाजत दी गयी है, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (बी) के तहत यह एक मौलिक अधिकार है।
बताते चलें कि पिछले साल 23 मई को गिरफ्तार की गई देवांगना को 24 मई को एक ऑनलाइन सुनवाई के दौरान जमानत मिल गई थी, लेकिन उसे एक अन्य मामले में तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने पुलिस द्वारा 9,000 पन्नों की चार्जशीट की प्रतियों को पुलिस द्वारा पेन ड्राइव में आरोपी को दिए जाने को लेकर भी सवाल खड़ा किया।
उन्होंने कहा कि जेल के अंदर आरोपी कंप्यूटर का उपयोग नहीं कर सकते थे ऐसे में इस तरह से चार्जशीट देना कैसे सही हो सकता है। लोकुर ने कहा कि हमारे संविधान में, शांतिपूर्ण विरोध की इजाजत दी गयी है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (बी) के तहत यह एक मौलिक अधिकार है।
दिल्ली दंगा मामले में छात्र कार्यकर्ता देवांगना कालिता, नताश नरवाल और आसिफ इकबाल तनहा को 17 जून से जेल से रिहा कर दिया गया। तीनों को ही 15 जून को हाई कोर्ट से जमानत मिली थी। इस दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस पर सख्त टिप्पणी की थी। इधर इस मामले पर अब दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट के निर्णय के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।