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राज्य सरकार प्रदेश भाषा नीति बनाने के लिए है अग्रसर : प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, भाषा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन के नियंत्रणाधीन कार्यरत स्वायत्तशासी संस्था है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भारतीय संविधान में उल्लिखित विविध भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार, उन्नयन एवं संवर्धन के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान का गठन दिनांक 24 दिसम्बर, 1994 को किया गया था। इस पुनीत अवसर पर संस्थान द्वारा उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा कृत कार्यों का भाषायी विकास में योगदान विषय पर लघु संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ मंचासीन मुख्य अतिथि प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, वरिष्ठ साहित्यकार, विशिष्ट अतिथि डाॅ. हरिशंकर मिश्रा, विशिष्ट वक्ता प्रो. अनिल कुमार विश्वकर्मा, एसो. प्रो., हिन्दी विभाग, जवाहरलाल नेहरू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बाराबंकी, विशिष्ट वक्ता डाॅ. बलजीत श्रीवास्तव, सहायक आचार्य, डाॅ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, व संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. राजनारायण शुक्ल द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर माॅ शारदे के समक्ष पुष्पार्चन कर किया गया। डाॅ. चन्द्रकला शाक्य व आशीष ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

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संस्थान के निदेशक हरि बख्श सिंह ने आगत अतिथि विद्वानों कोपुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया व अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम के अघ्यक्ष व संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. राजनाराण शुक्ल ने आगत विद्वानों का परिचय कराया व संस्थान के कार्यों का विश्लेषण करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किये और कहा कि भाषा संस्थान गत दो दशकों से अधिक समय से भाषायी विविधता को एकता में पिरोने का कार्य कर रहा है। हम संस्थान परिवार के साथ सीमित संसाधनों में प्रदेश की समस्त लोक-भाषाओं, लोक-बोलियों के उत्थान हेतु निरंतर सक्रियता से कार्य कर रहे हैं।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने भाषा संस्थान के वृहद स्वरूप की चर्चा करते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान का गठन, भाषा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन के अंतर्गत आने वाले समस्त भाषायी संस्थानों को नियंत्रण में रखते हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के विकास व उनके उत्तरोत्तर संवर्धन व उन्न्यन के लिए किया गया था। किन्तु समयान्तर में अन्य कारणों या कहें तो विविध राजनीतिक कारणों से ऐसा संभव नहीं हो सका किन्तु शीघ्र ही संस्थान अपने उस वृहदतम स्वरूप को प्राप्त कर लेगा।

राज्य सरकार प्रदेश भाषा नीति बनाने के लिए अग्रसर है, जिसमें मेरा मत है कि इस कार्य में भाषा संस्थान की भूमिका मुख्य होनी चाहिए। उनके मतानुसार किसी भी भाषा के विकास के लिए उसकी बोलियों का विकास होना पहली शर्त है। प्रदेश की चार मुख्य बोलियों भोजपुरी, अवधी, ब्रज व बुन्देली की बात करें। तो सभी के साथ एक सा व्यवहार नहीं हुआ, भोजपुरी अकादमी का निर्माण तो हुआ किन्तु अन्य बोलियों के साथ समानता नहीं बरती गई। हर बोली की एक अकादमी का गठन होना चाहिए। इसका नियंत्रण पूर्णतः भाषा संस्थान के पास होना चाहिए। बोलियों का विकास बहुत जरूरी है।

संस्थान को अनुवाद नीति पर बात करने और एक कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य में अनुवादको के लिए एक दिशा-निर्देश तय किया जा सके। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं व बोलियों के क्रियान्वयन में भाषा संस्थान की भूमिका अहम होनी चाहिए। भाषा संस्थान को मुख्य रूप से भाषा के चार मुख्य कार्य- पढ़ना, लिखना, बोलना, समझना पर वर्ष पर्यन्त कार्य व कार्यक्रम करने चाहिए और संस्थान इस दिशा में गतिशील भी है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डाॅ. हरिशंकर मिश्र ने भारतीय भाषाओं के सर्वांगीण विकास के लिए भाषा संस्थान के कार्यों की सराहना की और कहा कि संस्थान के कार्यक्रमों व भाषा संबंधी कार्ययोजनाओं का विस्तृत स्वरूप प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता डाॅ. अनिल कुमार विश्वकर्मा ने भाषा संस्थान की वर्तमान कार्यक्रमों की प्रशंसा की।

कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता डाॅ. बलजीत श्रीवास्तव, सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विवि, ने संस्थान के गत 03 वर्षों के कार्यों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।  कार्यक्रम उपरांत संस्थान निदेशक हरि बख्श सिंह ने अतिथियों का आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. बलजीत श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में दिनेश कुमार मिश्र, अरविंद नारायण मिश्र, डाॅ. अर्चना दीक्षित , अंजू सिंह, प्रियंका टण्डन, पूनम शर्मा, आशीष, हर्ष, ब्रजेश, रामहेत, आशीष शर्मा, शशि, नितेश, रिषभ आदि उपस्थित रहे।

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