नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसा ग्रह खोज निकाला है, जो पृथ्वी की ही तरह रहने लायक ही नहीं है, बल्कि आकार में उससे दोगुना भी है। उससे उम्मीद बंधी है कि वहां भी मानवीय बस्तियां बसाई जा सकती हैं। ये खोज कैंब्रिज एक भारतीय वैज्ञानिक की अगुवाई वाली टीम ने की है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की टीम ने ग्रह का नाम फिलहाल के2-18बी दिया
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की टीम ने इसको खोज निकाला है। उन्होंने उसकी परिधी और आकार-प्रकार के साथ वातावरण का अंदाज लगाया है। उसका नाम फिलहाल के2-18बी दिया गया है। वैज्ञानिकों को ये भी लगता है कि इस ग्रह पर न केवल जीवनदायी हवा मौजूद है, बल्कि बड़ी मात्रा में द्रव पानी भी है। इसके वातावरण में जीवन के लिए जरूरी हाइड्रोजन भी है।
के2 नाम का ये ग्रह जहां जिंदगी के लिए जरूरी हालात मौजूद
एक ही समस्या है। वह समस्या ये है कि के2 नाम का ये ग्रह जहां जिंदगी के लिए जरूरी हालात मौजूद हैं, वो हमसे 124 प्रकाश वर्ष दूर है। वैसे उसके आकार के बारे में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसकी परिधि पृथ्वी से 2.6 गुना है तो इसका द्रव्यमान भी हमारे ग्रह की तुलना में 8.6 गुना ज्यादा है। इस ग्रह का तापमान ऐसा है, जिसमें पानी की मौजूदगी बनी रहती है।
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ये ग्रह हमारे सोलर सिस्टम से बाहर है
जाहिर है कि ये ग्रह हमारे सोलर सिस्टम के बाहर का है। पिछले साल दो अलग वैज्ञानिकों की टीमों ने इसका अध्ययन करके बताया था कि हाइड्रोजन की बहुतायत वाले इस ग्रह में पानी की बूंदें नजर आई हैं। हालांकि इस ग्रह के बारे में अभी बहुत कुछ और पता लगाने की जरूरत है। मसलन कि इसके अंदरूनी हालात कैसे रहते हैं?
जानें कौन हैं वह भारतीय वैज्ञानिक?
कैंब्रिज एस्ट्रोनॉमनी इंस्टीट्यूट के डॉक्टर निक्कु मधुसूदन की अगुवाई वाली टीम ही इस पर नजर रखे हुए है। वह लगातार इस ग्रह का अध्ययन कर रही है। उनका है कि ग्रह के वातावरण में शर्तिया तौर पर पानी के कणों का पता चला है। बेशक इसके हालात बताते हैं कि ये रहने लायक है, लेकिन इसके बाद इसकी सतह की स्थितियां कैसी हैं, इसका पता लगाया जाना है।
वैज्ञानिकों ने इसे मिनी नेपच्युन जैसा बताया है कि ऐसा लगता है कि ग्रह पर हाइड्रोजन और पानी के अलावा चट्टानें और लौह अयस्क भरा है
वैज्ञानिकों ने इसे मिनी नेपच्युन जैसा भी बताया है कि ऐसा लगता है कि ग्रह पर हाइड्रोजन और पानी के अलावा चट्टानें और लौह अयस्क भरा हुआ है। द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित नई स्टडी के अनुसार, के2-18बी नाम के इस ग्रह के हाइड्रोजन से लिपटा होने के बाद ये जानना होगा कि ये कितना मोटा है और पानी की सतह कैसी है? जरूरी नहीं है कि इनकी मौजूदा स्थिति ग्रह पर जिंदगी को मदद करने वाली हो।
यहां मिलीं मीथेन और अमोनिया भी
खगोलशास्त्रियों ने इस ग्रह पर दूसरे रसायनों मसलन मीथेन और अमोनिया की सतहें भी पाई हैं, लेकिन वह अपेक्षा से कम हैं, लेकिन ये सतहें जैवकीय प्रक्रिया में कितना योगदान दे सकती हैं, इसका अंदाज अभी लगाया जाना है। हालांकि शोधकर्ताओं ने पाया कि जिस अधिकतम हाइड्रोजन की जरूरत ग्रह के द्रव्यमान के अनुपात में होना चाहिए, वह 06 फीसदी है। पृथ्वी पर भी इसका अनुपात यही है।
हाकिंग ने कहा था कि पृथ्वी के बाहर तलाशना होगा जीवन
मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने अपने निधन से पहले अपने एक शोध में कहा था कि पृथ्वी पर जीवन के जरिए जरूरी चीजें अगले 100 सालों में खत्म हो सकती हैं, पृथ्वी का तापमान भी बढ़ेगा और ये रहने लायक नहीं रहेगी। तब मनुष्यों को किसी नए ग्रह की जरूरत होगी। लिहाजा हमें उसकी तलाश में लग जाना चाहिए।
कैपलर में बसाई जा सकती है मानव बस्तियां
वैसे नासा के वैज्ञानिकों ने धरती से लगभग 1200 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित Kepler-62f नामक ग्रह की खोज की थी, जिसके बारे में कहा गया कि वहां जीवन होने की संभावनाएं हैं। इस ग्रह और धरती के बीच ऐसी कई समानताएं हैं जो इस ग्रह पर जीवन होने की संभावनाओं को प्रबल बनाती हैं, लेकिन ये ग्रह भी धरती से करीब 1200 प्रकाश वर्ष दूर है और 40 गुना बड़ा है।