Nagaland

नागालैण्ड से हमने क्या सीखा ?

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सम्मानित देशवासियों, सादर-वन्देमातरम्!!

दीर्घ-प्रवास के पश्चात आपसे वार्ता कर रहा हूँ। देश का सुदूर हिमालयी-प्रान्त नागालैण्ड (Nagaland) दो विलक्षण घटनाओं के कारण इतिहास में दर्ज हो गया है । एक यह कि  ईसाई और अंग्रेजी बाहुल्य वाले इस प्रान्त में दशकों से मातृभाषा हिन्दी को रोजी-रोटी से जोड़ने के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी  प्रयत्न हुए, कोशिशें रंग लाईं और उसके परिणाम वहाँ दिखायी दिये । नागालैण्ड (Nagaland) की लोक सेवा आयोग की अध्यापकों समेत कई नियुक्तियों में हिन्दीज्ञाता अभ्यर्थियों को वरीयता दी गयी।

‘हिन्दी से न्याय ‘इस देशव्यापी अभियान का प्रारम्भ-काल से यह मानना रहा है कि जो भाषा जिस दिन रोजगार की भाषा बन जायेगी वह स्वतः सम्मान एवम् अपनत्व की अधिकारिणी हो जायेगी। नागालैण्ड (Nagaland) इस मामले में अब्बल रहा और एक उदाहरण बन गया।

दूसरा यह कि अभी हाल ही में वहाँ  हुए विधानसभा चुनाव के पश्चात प्रान्त में एक ऐसी मिली-जुली सरकार का गठन हुआ है,  जहाँ हर राजनीतिक-दल एक दूसरे का वैचारिक-विरोधी होते हुए भी शासक -दल के  रुप में एक साथ है,  इसे हम एक राष्ट्रीय सरकार की संज्ञा भी  दे सकते हैं, इसे देश और दुनिया के आलोक में एक परिघटना के रुप में आंका जाना चाहिए ।

# दीनदयाल के प्रपौत्र की पाती और वैदिक के अग्रलेख से देश में शुरू होगा नया विमर्श?
# केन्द्र व राज्यों में दिखेंगी श्रेष्ठजनों की मिली-जुली सरकारें?
#कौटिल्य के श्रेष्ठतम् राज्य की कल्पना होगी साकार?

विद्यार्थी-जीवन से ही राजनीति और राज-सत्ता का करीबी हिस्सा रहने के कारण मैं देखता रहा हूँ कि कई बार सरकारों में ऐसे-ऐसे विशिष्ट-प्रसवों को जगह मिल जाती है जो सत्ता चलाने का ककहरा तक नहीं जानते, हाँ राजनीति का व्यापार करने और सत्ता-सुख खरीदने-बेचने की कला में निपुण हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीति और राज-सत्ता के कई सिद्धहस्त केवल इस कारण से राजकाज चलाने से वंचित रह जाते हैं कि उनका दल बहुमत का आंकड़ा पाने से वंचित रह गया, परिणाम सबके सामने है , मैं भी पिछले बीस-बाईस वर्षों से यह सब देख रहा हूँ । यह केवल भारत की समस्या नहीं है, मैं देश और दुनिया के तमाम देशों में जाता हूँ, हर जगह सत्ता इससे अभिशप्त है।

नागालैण्ड (Nagaland) से एक सन्देश आया है इसे बारीकी से समझना होगा । देश और देश के हर प्रान्त में यदि यह नुस्खा आजमाया जाय तो एक कुशल राज-सत्ता अस्तित्व में आयेगी ।हर दल के सुयोग्य, परिश्रमी, ईमानदार, कुशल-संगठनकर्ता एवम् वेद-शास्त्र नीति/गुरु-नीति/विशेषज्ञ-नीति/ लोक-नीति/ परिवार-नीति को मानने-जानने-समझने और उसकी जवाबदेही सुनिश्चित कराने वाले लोग शासक बनेंगे , गर ऐसा हो पाता है तो कौटिल्य के श्रेष्ठ राज्य की कल्पना को हम जीवन्त होता हुआ देखेंगे । भारत माता की जय हो

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