नक्सलियों से करें रोबोटिक जंग

नक्सलियों से करें रोबोटिक जंग

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नक्सलियों से कैसे निपटें? उनकी घात और घेरे की सबसे कारगर तोड़ क्या हो सकती है? बेशक हमारे सुरक्षाकर्मी बहादुर और बलिदानी हैं, लेकिन उनका लगातार बलिदान कब तक?  क्या इस सिलसिले को रोकने का कोई फूलप्रूफ तरीका नहीं है। एक समाधान है, रोबोटिक वेपनरी सिस्टम। यह विकल्प है नक्सलवादियों के साथ सीधी मुठभेड़ में रोबोकॉप, रोबोवैरियर, रोबोसोल्जर, रोबोटिक सिपाही यानी रोबोवाई का इस्तेमाल। सटीक और मारक मुकाबला। सुरक्षा बलों का न्यूनतम नुकसान। तकनीकी दक्षता से नक्सलियों को उस क्षेत्र में मार जहां वे और उनके हथियार कभी नहीं पहुंच सकते।

एक फायदा यह भी कि सियासत, विभाग के भेदियों, धनपतियों और दूसरी नक्सलियों की दुरभिसंधियों का भी सफाया। सवाल यह है कि सरकारें, व्यवस्था और बल इसके लिये राजी होंगे? जवाब यह है कि अगर नक्सली हमलों के प्रति सरकारों को वाकई चिंता होगी, वह इस समस्या का निराकरण करना चाहेंगी, इसके लिये उसमें यदि पर्याप्त इच्छाशक्ति होगी तो वह बेशक इस विकल्प पर सोचेंगी। आज 44 देशों के पास रोबोटिक वेपनरी सिस्टम है। इस मामले में हम रू स अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, इजराइल से पीछे नहीं तकरीबन हमकदम हैं। यह प्रणाली निरापद है तो आखिर हम इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते? ढाई साल पहले हैदराबाद के एच बोटस रोबोटिक्स ने पांच फुट सात इंच के 43 किलो वजनी जिस स्मार्ट पुलिस रोबोट हेमंत करकरे को लांच किया था, वह तो महज शिकायत दर्ज करने, संदिग्धों की निशानदेही, अडियो वीडियो की रिकर्डिंग एक मेटल डिटेक्टर और ऐसे  कुछ सामान्य कार्य कर सकता था, लेकिन इस मामले में अब मामला काफी आगे बढ़ चुका है।

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बात दो साल पहले तेलंगाना इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी के सचिव जयेश रंजन द्वारा लांच रोबोकॉप से भी आगे जा चुकी है। जयेश का रोबोकॉप पुलिस को कानून व्यवस्था बहाल कराने, सुरक्षा देने और ट्रैफिक नियंत्रण में सहायता दे सकता था। यह लोगों की पहचान करने बम निष्क्रिय करने जैसे कई काम कर सकता था। अब ऐसे रोबोट आसपास के वातावरण को भांपने, आधे दर्जन से ज्यादा भाषाएं बूझने वाले हैं। बस्तर के बड़े इलाके में ढेर सारी स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल और सुरक्षाकर्मियों का इससे परिचित न होना भी एक समस्या रहा है। ये रोबोट कृत्रिम बुद्घिमता, एलईडी लाइट्स, सक्षम सेंसर, बढ़िया कैमरे और थर्मल इमेजिंग तथा आटोमेटिक चार्जिंंग डॉक स्टेशन की सुविधा से लैस हैं। सर्विलांस, मैपिंग और डाटा एनलिसिस के लिये भी बेहतर हैं।

जब डीआरडीओ ने इस तरह के रोबोट बनाये थे तब कहा था कि ये रोबोटिक सिपॉय यानी रोबोवाइ आतंकियों, नक्सलियों और घुसपैठियों के खिलाफ बड़ा काम आयेगा। यह बिना मानवीय सहायता के अपना लक्ष्य चुन सकता है, 300 मीटर की भी दूरी से गतिमान लक्ष्य पर निशाना लगा सकता है। घुप अंधेरे में भी 2000 मीटर से देख सकता है। शत्रु का रेडियो, मोबाइल नेटवर्क जाम कर सकता है। हमला कर वह अपनी जगह तेजी से बदल सकता है, 360 डिग्री घूम सकता है। वह दुश्मन को दूर से ही चेतावनी देगा, अवहेलना पर घातक प्रहार कर सकता है। बेदर्द रोबोवाई सालभर चौबीसों घंटे बिना छुट्टी मांगे हर तरह के इलाके और मौसम में काम कर सकता है, तैनात रह सकता है। न उसे आवास चाहिये न भोजन न मनोरंजन न दवाई। इनकी इन खूबियों के चलते यह दावा किया गया कि अगवा अथवा बंधकों को छुड़ाने और सीधी मुठभेडों में इनका इस्तेमाल बेहद कारगर होने वाला है। यह भी बताया गया कि आमने सामने की मुठभेड में ये हताहतों की संख्या कम से कम हो जायेगी, जान माल का नुकसान बेहद कम होगा।

कई ऐसे मौके आये मगर न तो किसी मुठभेड़ में इनको साथ लिया गया और न ही बंधकों को छुड़ाने का जिम्मा इनको दिया गया, क्या अब आगे इनकी यह सेवा ली जायेगी? यह भी दावा किया गया कि दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती के लिये ये बहुत मुफीद होंगे। आतंकी अगर किसी भवन में घुसकर कब्जा कर लें तो उस बिल्डिंग में इसे घुसाने में आसानी रहेगी, पर यह सेवा इन से अभी तक ली नहीं गई। डीआरडीओ का दावा था कि चूंकि ये रोबोट रडार और सेंसर संपन्न हैं सो रात की लड़ाई में सैनिकों और सुरक्षा बलों से बेहतर साबित होंगे। पर किसी ऐसे आॅपरेशन में इनका यह कौशल आजमाया नहीं गया।

 

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