बीजेपी 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है, बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए लगी हुई है। बीजेपी ने लखनऊ में करीब 50 करोड़ की लागत से डॉ. भीमराव आंबेडकर सांस्कृतिक केंद्र बनवाया है। बीजेपी के इस दांव ने बीएसपी खेमे में हलचल पैदा कर दी है, ये साफ है कि बीजेपी दलित वोटों को अपने पाले में लाने में लगी है। वहीं केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं को भी अनुसूचित वर्ग को केन्द्र में रखकर प्रचारित किया जाता है।
राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव ने कहा- दलित वोट में खासकर जाटव वोट को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी काफी दिनों से प्रयास कर रही है। राजनीतिक पंडित कहते हैं कि भाजपा दलित वर्ग के बीच लगातार किसी न किसी तरह उनके हितैषी होने और महापुरूषों के सम्मान का संदेश देने में लगी है। बसपा की कमजोरी का पूरा फायदा लेने के लिए इसी वर्ग में अपनी पैठ बनाने का लगातार प्रयास कर रही है।
हालांकि कुछ राजनीतिक जानकार प्रतीकों की सियासत को क्षणिक लाभ मानते हैं। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि प्रतीकों को बनाने का एक क्षणिक लाभ यह होता है। उस व्यक्ति के शासन काल के दौरान एक संदेश जाता है। लेकिन इसकी लाइफ ज्यादा नहीं होती है। अगले चुनाव तक इसका असर नहीं होता है। क्योंकि प्रतीक बनने के बाद लोग उसमें खामियां ढूढने लग जाते हैं। प्रतीक की वजह से जो मन बनाते हैं वोट देने की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगती है।
भाजपा ने सरदार पटेल की मूर्ति बनायी है लेकिन उन्होंने उसे जाति विशेष की जगह देश का प्रतीक बनाया। प्रतीकों की वजह से हमेशा फायदा नहीं होता है। प्रतीक का वोट दिलाने का पोटेंशियल ज्यादा नहीं बचता है। अंबेडकर मूर्ति स्थापना से लेकर जयंती और पुण्यतिथि पर एक जमाने में मायावती का एकाधिकार रहा है। अभी तक देखा गया है स्मारक बने तो दलित के नाम पर लेकिन उसमें किसी एक पार्टी का कब्जा हो गया। भाजपा इस मिथ को तोड़ना चाहती है, वह चाहती है कि जो वह प्रतीक बनाए वह सबके लिए होगा। किसी एक पार्टी की धरोहर न रहे।