सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि एक आम आदमी को RT-PCR रिपोर्ट मिलने में 4-5 दिन लगते हैं, जबकि अधिकारियों को RT-PCR रिपोर्ट कुछ घंटों के भीतर मिल जाती है। तालुका और छोटे गांवों में कोई आरटी-पीसीआर परीक्षण केंद्र नहीं है। नमूना एकत्र करना और परीक्षण तेज होना चाहिए।
न्यायालय ने सरकार को फटकार भी लगाई. मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने पूछा कि जब गुजरात के लिए 27000 रेमेडिसविर इंजेक्शन उपलब्ध हैं, तो पता करें कि कितने अप्रयुक्त हैं। उन्होंने यह भी पूछा कि, ‘हर COVID अस्पताल में इंजेक्शन क्यों उपलब्ध नहीं हैं?’
महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कहा कि यह लोगों और कोरोना के बीच लड़ाई बन गई है। उन्होंने लोगों से रेमेडिसविर इंजेक्शन के लिए जल्दबाजी न करने का आग्रह किया है।
न्यायालय ने कहा कि वह सरकार की नीतियों से खुश नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने संक्रमण के मामलों पर लगाम लगाने को लेकर कुछ सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि शादियों में लोगों की संख्या 50 से कम हो सकती है, लोगों के स्वास्थ्य की जांच के लिए हाउसिंग सोसाइटी में बूथ बनाएं, धार्मिक केंद्रों की मदद लें जो कोविड देखभाल केंद्र / आइसोलेशन की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
सरकार के बचाव में महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने कहा कि सब कुछ नियंत्रण में है, सरकार अपना काम कर रही है, अब लोगों को अधिक सतर्क रहना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस समस्या का समाधान लॉकडाउन नहीं है। इससे प्रवासी मजदूरों का रोजगार छिन जाएगा।
अस्पतालों में बेड और अन्य सुवाधिओं लेकर भी न्यायालय ने सरकार को फटाकर लगाई। न्यायालय ने कहा कि जब अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन उपलब्ध है तो लोगों को कतार में क्यों खड़े होना पड़ रहा है?
मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी।