बोल की लब आजाद हैं तेरे!

384 0

दिव्यांश सिंह:-

“बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे,

बोल ज़बाँ अब तक तेरी है,

बोल कि सच ज़िंदा है अब तक,

बोल जो कुछ कहना है कह ले”

अक्सर जब अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बात उठती है, तो फैज़ की इस कालजयी रचना को याद किया जाता है, लेकिन मेरे विचार में इस नज़्म का अभिव्यक्ति की आज़ादी से इतना संबंध नहीं है, जितना कि विषम परिस्थितियों में भी अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का महत्व इसमें झलकता है। कहीं तानाशाहों के हुक्म ने, तो कहीं धर्म और परंपरा ने लोगों के होंठों को सिल दिया है। सरकार की आलोचना करने पर लोगों को देशद्रोही कहा जा रहा है, और उन पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है। सिर्फ़ किसी नेता का कार्टून बना देना आज फज़ीहत का विषय बनता जा रहा है।

प्रेस या मीडिया वो स्वतंत्र व्यवस्था है जो प्रिंट, टेलिविजन, रेडियो जैसे माध्यमों से सूचनाए लोगो तक पाहुचती है, जिसे हर हाल मे सरकार के नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए। तभी हम एक स्वस्थ और जीवंत लोकतान्त्रिक देश कहलाने के लायक होंगे, वरना ये लोकतन्त्र सिर्फ किताबों तक सीमित रह जाएगा। व्यवस्था में फैले हुए भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्हिसल-ब्लॉअर्स को जेल में डाला जा रहा है, या जान से मार दिया जाता है। पत्रकारों को एक रिपोर्ट की वजह से अपने टीवी चैनल से इस्तीफ़ा देना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर लोगों को निर्दयी रूप से ट्रोल किया जा रहा है। उदाहरण देने लगूँ तो कई पन्ने भर जाएँगे।

हाल ही की कुछ घटनाओ पर नजर डाले तो दैनिक भास्कर और भारत समाचार नाम के एक प्रीतिस्थित अखबार पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने गुरुवार को दफ्तरों पर छापेमारी की। पीटीआई के मुताबिक दैनिक भास्कर ग्रुप के अलग-अलग शहरों में मौजूद दफ्तरों और दूसरे ठिकानों पर रेड डाली गई. भोपाल, जयपुर, अहमदाबाद, नोएडा और कुछ दूसरे ठिकानों पर छापेमारी जारी है. वहीं यूपी बेस्ड न्यूज चैनल भारत समाचार के प्रमोटर और कर्मचारियों के लखनऊ स्थित ठिकानों पर छापे मारे गए।

दैनिक भास्कर ने अपने ट्वीट में लिखा है- “सच्ची पत्रकारिता से डरी सरकार: गंगा में लाशों से लेकर कोरोना से मौतों के सही आंकड़े देश के सामने रखने वाले भास्कर ग्रुप पर सरकार की दबिश।” कोरोना महामारी ने जब उत्तर प्रदेश मे विकराल रूप धारण किया हुआ था, और जब सरकार कोरोना नियंत्रण मे पूरी तरह से विफल हो गई थी लोगो को जीवन रक्षक दवाए, ऑक्सीज़न, हॉस्पिटल मे गंभीर मेरीजो को बेड आदि भी मुहैया नही करा पा रही थी, लखनऊ मे तो शमसान घाटो पर जल रही लाशों को जनता न देख पाए जिससे सरकार की छवि पर किसी भी प्रकार का बट्टा न लग पाए, घाटो के बगल मे टीन की दीवारे लगाव दी गई, तब दैनिक भास्कर जैसे अखबारो ने सरकार से लोहा लेते हुए इस काली सच्चाई को जनता के सामने रखा।

ऐसा ही एक मामला देश के दूसरे बड़े अखबार एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय पर कथित तौर पर आईसीआईसीआई बैंक के 48 करोड़ रुपए का नुकसान पाहुचने के आरोप मे उनके खिलाफ केस दर्ज कर दिल्ली और देहारादून पर सीबीआई की टीमों ने छापे मारे, लेकिन आज भी एनटीडीवी सरकार की आंखो मे खटकता रहता है, लेकिन एनडीटीवी ने अपनी राह न बदलते हुए और मुखरता से जनता के सामने सच्चाई रखना जारी रखा।

ऐसी ही रेड The Wire के खिलाफ हुई, ऐसे आलोकतांत्रिक कार्य सरकार द्वारा कई बार किए गए, लेकिन हमे घटना मात्र पर सिर्फ बात न करते हुए उनके पीछे के कारण, सरकार की मंसा देखना ओर समझना चाहिए। और ये सोचना चाहिए की क्या ये पहली बार हो रहा है या इससे पूर्ववर्ती सरकारो ने भी प्रेस पर सरकारी नियंत्रण स्थापित कर, लोगो को सच्चाई जानने के उनके अधिकार से जनता को वंचित रखा जाए।

अगर हम इन्दिरा गांधी के कार्यकाल पर नजर डाले तो देखेंगे की आजादी के महज 28 साल बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के आपातकाल लागू कर देने से देश के लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था पर ही प्रश्नचिह्न लगने शुरू हो गए थे। मीडिया पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। सरकार के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबा दिया जाता था, जिसकी सजा थी जेल। पूरा देश एक जेल बन कर रह गया था।

इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया। और श्रीमती गांधी के चिर प्रतिद्वंदी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।

राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। यदि प्रेस पर कोई दबाव डालता है तो ऐसे समय में प्रेस से आने वाली जानकारी संदिग्ध हो जाती है।

इससे भी बुरी बात यह है कि प्रेस को समाचार की रिपोर्ट करने या उन राय व्यक्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है जो सत्ता में लोगों के विपरीत हैं। इसका मतलब है कि एक नागरिक जो अनजान है वह शक्तिहीन हो जाएगा।

कुछ अन्य कारणो का विश्लेषड करे तो हमे देखने को मिलता है कि पत्रकारिता का क्षेत्र भी अब इस भूमंडलीकरण और बाजारवाद का शिकार होता जा रहा है। कॉरपोरेट घरानों का पैसा, उनका किसी भी तरीके से सरकार सरकार का हितैषी बनने कि अंधी दौड़ सच्चाई का गला घोंटने का काम कर रही है।

“पहले जो अखबार छप के बिकते थे

आज बिककर छप रहे हैं।”

यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसी पत्रकारिता से अपने देश और समाज की रक्षा करें, जन जागरूकता के माध्यम से ऐसे पत्रकारों और उनके बिके हुए आकाओं को जनता के सामने एक्सपोज करे, लेकिन हमे समय आने पर ऐसे पत्रकार और उनके मालिक मीडिया हाउस के साथ भी खड़े रहे जो सच्चाई को जनता के सामने लाने के लिए सरकार से लोहा लेने मे भी पीछे नही हटते है। क्यूकी अंततः ये सारी लड़ाई जनता के हित के लिए ही लड़ी जा रही है।

क्यूकी कहते हें न कि एक जागरूक और शिक्षित जनता ही शांत और सुखी देश कि नीव रख सकती है, क्यूकी लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओ मे जनता ही सब कुछ है जैसा कि भूत पूर्व अमेरीकन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतन्त्र व्यवस्था को कहा कि ये “लोगो का, लोगो के लिए, लोगो के द्वारा शासन” करने कि व्यवस्था है। और ये केवल कल्पना मात्र नहीं है कि प्रेस की सेंसरशिप एक तानाशाही की सबसे आम विशेषताओं में से एक है। क्यूकी तानाशाही मानसिकता के शासक जानते है कि अगर मीडिया को नियंत्रण कर लिया जाए और जनता को वो आधा सच या पूरा झूठ दिखाया जाए कि जनता को एहसास हो कि सब कुछ शांत और नियंत्रण मे है तो बगावत तो दूर उसके मन मे खिलाफत का विचार भी नहीं आएगा।

हिन्दी भाषा के लेखक हरीशंकर परसाई जी ने तानाशाहों के बारे मे कुछ चार पंक्तियो मे कहा कि “तानाशाह एक डरपोक आदमी होता है। अगर पांच गधे भी साथ-साथ घास खा रहे हों तो तानाशाह को डर पैदा होता है कि गधे भी मेरे खिलाफ़ साजिश कर रहे हैं।“ इस लिए एक जिंदा मीडिया, सजग और जागरूक जनता ही ऐसे तानाशाहों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारतीय संविधान के वर्णित अनुच्छेद 19क के तहत मीडिया को, और नागरिकों को अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता का अधिकार है, और इस अधिकार कि सुरक्षा कि ज़िम्मेदारी अनिच्छेद 32 के तहत सर्वोच् न्यायालय कि है।

इस देश के लोकतन्त्र कि, इसके चौथे स्तम्भ मीडिया और अपने मोलिक अधिकारो सुरक्षा का कर्तव्य इस देश के नागरिकों का ही है, कोई बाहर से आकार हमारे मूलभूत अधिकारो कि रक्षा नही करेगा। समय है ऐसी बुरी शक्तियों के सामने नतमस्तक होने के बजाए मिल कर, उनके खिलाफ खड़े होकर उनका सामना करते हुए उन्हे पराजित करने का, क्यूकी आजादी कोई सर्वविद्यमान वस्तु नहीं है, इस लिए हर समय लड़ना पड़ता है, इसे जीवित रखना पड़ता है, तभी हम खुद और आने वाली नस्लों वंशो के लिए इस कीमती चीज को सँजो कर रख पौएंगे।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के तौर पर जो जिम्मेदारी इस स्तंभ की है, अगर उसे ही निभाने में असफल रहे तो उसका सीधा असर समाज और देश के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक विघटन के रूप में और भी विकराल रूप धारण करके एक दैत्य रूप में आने वाले कल में हमारे सामने होगा, क्योंकि पत्रकारिता ही वह सेतु है जो योजनाओं, कार्यक्रमों और भविष्य की योजनाओं के रूप में जनता को सरकार से और सरकार को जनता से जोड़ती है।

Related Post

CM Dhami

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में हो रहा है देश का सम्पूर्ण विकास: सीएम धामी

Posted by - November 6, 2022 0
देहारादून। मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी (CM Dhami) ने रविवार सांय को रेंजर्स ग्राउंड में आयोजित उत्तराखण्ड लोक विरासत कार्यक्रम –…

वित्त मंत्रालय का बड़ा फैसला, कोरोनाकाल में सरकारी खर्च पर लगा प्रतिबंध हटाया

Posted by - September 25, 2021 0
नई दिल्ली। कोरोनाकाल में विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के खर्च पर लगे प्रतिबंध को सरकार ने हटा लिया है। वित्त…
राजद प्रत्‍याशियों की सूची

झारखंड विधानसभा चुनाव: राजद प्रत्‍याशियों की सूची जारी, सुभाष यादव कोडरमा से मैदान में

Posted by - November 19, 2019 0
रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर मंगलवार को राष्ट्रीय जनता दल ने अपने सात प्रत्‍याशियों के नामों की घोषणा कर…