Nepal

नेपाल में राजनीतिक उठापटक पर शायद ही कोई आश्चर्य हो

973 0

नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अचानक संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को बर्खास्त कर दिया। अभी उनके पांच साल के कार्यकाल का तीसरा वर्ष भी नहीं पूरा हुआ है। राष्ट्रपति ने विद्या देवी भंडारी ने भी संसद के निवले सदन को भंग किए जाने पर अपनी मुहर लगा दी है। पार्टी में ओली को जिस तरह के अंतर्विरोधों का सामना करना पड़ रहा था, उसे देखते हुए उनके इस कदम पर शायद ही कोई आश्चर्य हो। उन्होंने भारत के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपनी पार्टी के लोगों को नाराज कर दिया था।

अयोध्या को नेपाल की बताकर और मानचित्र में छेड़छाड़कर उन्होंने अपने ही दल में अपने लिए परेशानी मोल ले ली थी। प्रचंड एंड कंपनी ने तो उसी समय उनके खिलाफ मोर्चा खोल दी थी। चीन के प्रयास से उस समय तो मामला दब गया था लेकिन आक्रोश का नासूर अंदर ही अंदर पार्टी में पलता रहा। पिछले कुछ समय से पार्टी के अंदर उनके इस्तीफे की मांग तेज होती जा रही थी जिसकी वे लगातार अनदेखी कर रहे थे। असंतोष को टालने का एक ही मार्ग है कि संवाद स्थापित किया जाए और वैचारिक गतिरोध को दूर करने का प्रयास किया जाए, लेकिन ओली अपनी हठधर्मिता पर अड़े रहे।

सर्दी में आंवला खाने के ये हैं फायदे, जानें कैसे करना है सेवन?

नतीजा यह हुआ कि सत्तारूढ़ नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीएन) के 91 सांसदों ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया, जिसके बाद उन्होंने प्रतिनिधि सभा भंग कर अगले साल चुनाव कराने की घोषणा कर दी। इस फैसले को हालांकि सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, लेकिन वहां से फिलहाल कोई आदेश नहीं आया है। लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहे नेपाल के लिए किसी प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा न कर पाना कोई नई बात नहीं है। 1990 से 2008 तक चले संवैधानिक राजतंत्र के दौर में भी हाल यही था और 2008 में राजशाही के खात्मे के बाद भी नेपाल में किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया।

हर साल दो साल पर प्रधानमंत्री बदल देना वहां आम बात है। इस लिहाज से ओली सरकार का गिरना कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात यह है कि उनकी पार्टी को प्रतिनिधि सभा में जबर्दस्त बहुमत हासिल था और सभा को भंग करने की सिफारिश किए जाते वक्त भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया था। संसद में बहुमत को लेकर कोई परेशानी नहीं थी तो प्रतिनिधि सभा की बैठक में ओली सरकार की जगह बड़ी आसानी से सीपीएन के ही किसी अन्य नेता की अगुआई में दूसरी सरकार बनाई जा सकती थी।

इसके बावजूद संसद का प्रतिनिधित्व करने वाली ओली सरकार ने उसे भंग कर देश पर समय से पहले चुनाव लादने का फैसला कर लिया, जो संसदीय लोकतंत्र की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है और आमली की जिद का परिचायक है। इस कदम को उठानेके बाद शायद लोकतंत्र में ओली को गंभीर नेता के तौर पर प्रतिष्ठा न मिले।

दरअसल इस फैसले से भारत के घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ओली पर राष्ट्रवादी भावनाओं का उन्माद फैलाने की कोशिश के आरोपों की भी पुष्टि हुई है। गौरतलब है कि उन्होंने न केवल भारत पर ऊलजलूल आरोप लगाए बल्कि नए-नए विवाद भी पैदा किए। इससे दोनों देशों के रिश्ते तो प्रभावित हो ही रहे हैं, नेपाल के राष्ट्रीय हितों का भी नुकसान हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट से जब तक कोई अप्रत्याशित फैसला नहीं आता तब आगामी चुनावों तक सरकार की कमान ओली के हाथों में ही रहेगी। यह और बात है कि दल ने उन्हें सीएनएन के पद से हटाए जाने की घोषणा कर दी है। कुल मिलाकर यह कहा जाए कि ओली न तो अपनी पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे और न ही सरकार के। कहना मुश्किल है कि इस दौरान चुनावी फायदे के लिहाज से वह कब किस तरह का विवाद खड़ा कर देंगे। जाहिर है, नेपाल के लोगों के लिए ही नहीं, भारत सरकार के लिए भी यह अतिरिक्त सतर्कता बरतने का समय है। भारत को देखना होगा कि चुनाव में कौनसी पार्टी जीत कर आती है और वह भारतीय हितों की कसौटी पर कितना खरा उतरती है।

Related Post

अस्पताल की लापरवाही से बदला शव

लखनऊ : अस्पताल की लापरवाही से बदला शव, मुस्लिम महिला का हिंदू परिवार ने कर दिया अंतिम संस्कार

Posted by - February 13, 2020 0
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सहारा अस्पताल के कर्मचारियों की लापरवाही से मर्च्युरी में रखे महिलाओं के शवों…
CM Vishnudev Sai

सीएम साय को भेंट किया गया मां महामाया एयरपोर्ट से उड़ान सेवा संचालन का लाइसेंस

Posted by - March 16, 2024 0
रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (CM Sai) को आज शनिवार को मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में विमानन सचिव पी. दयानंद ने…