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सोमवती अमावस्या पर महाकुंभ का दूसरा शाही स्नान आज

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हरिद्वार । महाकुंभ में देश-विदेश के श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ है। हरिद्वार में शाही स्नान को लेकर अद्भुत छटा बिखरी हुई है। महाशिवरात्रि के बाद महाकुंभ का यह दूसरा शाही स्नान है। हरिद्वार महाकुंभ का यह पहला ऐसा स्नान होगा, जिसमें सभी 13 अखाड़े शामिल होंगे। इससे पहले 11 मार्च को हुए महाशिवरात्रि स्नान पर केवल सात संन्यासी अखाड़ों ने ही स्नान किया था।

हरकी पैड़ी पर पर संत लगाएंगे डुबकी

12 और 14 अप्रैल के शाही स्नान पर आम श्रद्धालु हरकी पैड़ी के घाटों पर डुबकी नहीं लगा पाएंगे। हरकी पैड़ी क्षेत्र संतों के स्नान के लिए आरक्षित होगा। बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को पार्किंग स्थलों के नजदीक बने घाटों पर ही स्नान करवाया जाएगा।

ये है अखाड़ों के स्नान का क्रम

मेला प्रशासन के मुताबिक सोमवती अमावस्या पर शाही स्नान के लिए पहला जुलूस श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी का निकलेगा। आनंद अखाड़ा भी उसके साथ रहेगा। निरंजनी के बाद श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा स्नान करेगा। जूना के साथ अग्नि व आह्वान अखाड़े के अलावा किन्नर अखाड़ा भी पहुंचेगा। अगले क्रम में महानिर्वाणी अखाड़ा स्नान करेगा और उसके साथ अटल अखाड़ा भी होगा जिसके बाद तीनों बैरागी अणियां हरकी पैड़ी पहुंचेंगी। उनके 18 अखाड़े और करीब 1200 खालसे जुलूस में शामिल होंगे। बैरागियों के बाद दोनों उदासीन अखाड़े बड़ा एवं नया का जुलूस होगा और आखिर में निर्मल अखाड़ा स्नान के लिए पहुंचेगा।

महाशिवरात्रि स्नान के समय अखाड़ों और उनके साधु-संतों की संख्या कम थी, लेकिन इस बार संख्या बढ़ गई है। इस लिहाज से स्नान के देर रात तक चलने की संभावना है। इसी को देखते मेला पुलिस समय का निर्धारण करने में जुटी हुई है।

सोमवती अमावस्या पर स्नान का महत्व

सोमवती अमावस्या का शाही स्नान है। सोमवती अमावस्या पितृ कार्यों के साथ भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करने के लिए महत्वपूर्ण होती है। सोमवती अमावस्या पर स्नान करने से 12 गुना अधिक फल प्राप्त होता है।

सोमवती अमावस्या में स्नान और दान करने से समस्त पापों का नाश होता है। 12 अप्रैल इस संवत का आखिरी दिन है। इस दिन किया दान, पीपल की परिक्रमा, लक्ष्मी प्रदान करने वाली होगी। इस दिन कुंभ लग्न में किया हुआ स्नान 12 गुना फल देगा और कुंभ लग्न सुबह चार बजे से पांच बजे तक होगा। इसके बाद दोपहर 12 बजे से 12.45 भी स्नान किया जा सकता है।

कोविड टेस्ट रिपोर्ट जरूरी

30 अप्रैल तक चलने वाले महाकुंभ में स्नान के लिए श्रद्धालुओं को कोविड-19 की 72 घंटे पहले तक की RT-PCR निगेटिव रिपोर्ट दिखानी पड़ेगी रही है। कोरोना महामारी के चलते अब शासन-प्रशासन सख्त है। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है।

करीब 850 साल पुराना इतिहास

इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई, किसने की, इसकी किसी ग्रंथ में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है। कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। परन्तु इसके बारे में जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है, वो सम्राट हर्षवर्धन के समय का है जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया।

शाही स्नान क्या होता है

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्र पुरी महाराज का कहना है कि शाही स्नान के मौके पर विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी-घोड़े पर बैठकर स्नान के लिए पहुंचते हैं. सब अपनी-अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं. इसे राजयोग स्नान भी कहा जाता है, जिसमें साधु और उनके अनुयायी पवित्र नदी में तय वक्त पर डुबकी लगाते हैं. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में डुबकी लगाने से अमरता का वरदान मिल जाता है. यही वजह है कि ये कुंभ मेले का अहम हिस्सा है और सुर्खियों में रहता है. शाही स्नान के बाद ही आम लोगों को नदी में डुबकी लगाने की इजाजत होती है।

कुंभ में हो चुकी है अखाड़ों की लड़ाई

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्र पुरी महाराज के मुताबिक शाही स्नान में मामूली कहासुनी एवं स्नान का क्रम अखाड़ों में आपसी खूनी संघर्ष की भी वजह रहा है। वर्ष 1310 के हरिद्वार महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वहीं 1398 के अर्धकुंभ में तैमूर लंग ने भी उत्पात मचाया था। 1760 में शैव संन्यासियों एवं वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुंभ में शैव संयासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे। 1927 एवं 1986 में भीड़ दुर्घटना का कारण बनी। 1998 में भी हरकी पैड़ी पर अखाड़ों के बीच संघर्ष हुआ था।

सोमवती अमावस्या के स्नान पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस अवसर पर मां गंगा में स्नान करने से सभी कष्ट दूर होते हैं। मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सोमवती अमावस्या यानि गंगा स्नान कर पुण्य कमाने का मौका है। कुंभ पर्व के मौके पर गंगा तटों पर भारी भीड़ लगी हुई है। हरिद्वार के विभिन्न घाटों में आज तड़के से ही गंगा स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ने लगा है।

भीष्म पितामह ने की थी सोमवती अमावस्या ( Somvati Amavasya ) की प्रतीक्षा

 वैसे तो सभी अमावस्या पर गंगा स्नान का महत्व है, लेकिन सोमयुता अर्थात सोमवती या भोमयुता या फिर भौमवती अमावस्या विशेष पुण्यदायी होती है। आप इसके पुण्य का इसी बात से प्रभाव लगा सकते है कि इस सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में खुद भीष्म पितामह ने अपनी शर शैय्या पर पड़े रहे। उस समय कई सालों के बाद सोमवती अमावस्या पड़ी थी।

ये उपाय करने से मनोकामनाएं होंगी पूरी

सोमयुता अर्थात अछून्नं कर देने वाली अमावस्या आज के दिन है. मात्र जलस्नान करना व्यक्ति को अश्व मेघ यज्ञ के समान फल दे देता है और आज के दिन अपने पितरों के प्रति तर्पण श्राद्ध आदि करना, पीपल के वृक्ष की पूजा करना उसमें अपने पितरों की कामना करते हुए किसी भी प्रकार से 108 परिक्रमा कर लें तो यह निश्चित समझिए कि व्यक्ति का कितना भी कठिनाईपूर्ण जीवन हो वह सुधर जाता है. व्यक्ति की इच्छित मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों में हरिद्वार समेत अन्य तीर्थों में आज के दिन स्नान का अत्यधिक महत्व है। आज ब्रह्मकुंड हरकी पैड़ी पर स्नान करके व्यक्ति अपने जीवन को कल्पकल्पांतर तक के पाप नष्ट करके व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। आज जो दान और पुण्य करेंगे, वो अक्षय हैं। सोमवती अमावस्या व्यक्ति के लिए पुण्यदायी और जीवनदायी होती है।

वैसे तो हर पर्व पर हमेशा ही लोगों की भीड़ हरिद्वार गंगा स्नान के लिए पहुंचती हैं, लेकिन आज सोमवती अमावस्या पर कुंभ का दूसरा शाही स्नान होने के कारण गंगा स्नान करने का मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता है। हरकी पैड़ी पर भीड़ का आलम यह है कि पैर रखने की भी जगह नहीं है। हरकी पैड़ी पहुंचे श्रद्धालुओं का कहना है कि सोमवती अमावस्या के दिन गंगा स्नान करने से परिवार में सुख समृद्धि तो आती है, सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है।

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