RANG EKADASHI

रंगभरी एकादशी से काशी में शुरू हुई होली, भक्तों ने बाबा विश्वनाथ को लगाया गुलाल

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वाराणसी । काशी की लोक परंपरा के अनुसार महाशिवरात्रि पर महादेव और महामाया के विवाह के बाद रंगभरी एकादशी (Rang Bhari Ekadashi) के दिन भगवान शिव माता पार्वती का गवना कराने काशी आते हैं। यह परंपरा 356 वर्षों से निरंतर निभाई जा रही है। इस साल भी वाराणसी में मां पार्वती के गवना की तैयारियां जोरशोर से चल रही है।

काशी की लोक परंपरा के अनुसार महाशिवरात्रि पर महादेव और महामाया के विवाह के उपरांत रंगभरी एकादशी (Rang Bhari Ekadashi) की तिथि पर भगवान शिव माता पार्वती का गवना कराते हैं। इस उपलक्ष्य में महंत आवास चार दिनों के लिए गौरा के मायके में तब्दील हो जाता है। यह परंपरा 356 वर्षों से निरंतर निभाई जा रही है। इस वर्ष रंगभरी एकादशी उत्सव (Rang Bhari Ekadashi) का 357वां वर्ष है। 24 मार्च को होने वाली गवना की रस्म से पहले किए जाने वाले लोकाचार की शुरुआत आज से टेढ़ीनीम स्थित नवीन महंत आवास पर होगी।

माता की विदाई करने काशी पहुंचते हैं भोलेनाथ

काशी अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं के लिए जानी जाती है। यह वह शहर है जहां आज भी पौराणिक परंपराओं को जीवित रखते हुए इस शहर की जीवंतता को बनाए रखने का सार्थक प्रयास यहां के लोग करते आ रहे हैं। इस क्रम में रंगभरी एकादशी (Rang Bhari Ekadashi) महत्वपूर्ण पर्व है। रंगभरी एकादशी से काशी में होली की शुरुआत मानी जाती है जिस तरह से होलाष्टक लगने के साथ ही ब्रजवासी रंगों के पर्व होली के माहौल में डूब जाते हैं वैसे ही काशी में होली के पहले रंगभरी एकादशी के मौके पर अपने आराध्य देव आदि देव महादेव भोलेनाथ पर पहला गुलाल रंग चढ़ा कर होली की शुरुआत काशी में हो जाती है।

गवने की रस्म को निभाने काशी पहुंचते हैं भोले बाबा

ऐसी मान्यता है की रंगभरी एकादशी (Rang Bhari Ekadashi) के दिन भगवान भोलेनाथ महाशिवरात्रि को अपना विवाह संपन्न होने के उपरांत होने वाले गवने की रस्म को निभाने के लिए काशी पहुंचते हैं। साल में एक बार बाबा विश्वनाथ की चल रजत प्रतिमा माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ भक्तों के कंधे पर स्वर्ण रजत सिंहासन पर सवार होकर काशी भ्रमण को निकलती है और भक्त अपने आराध्य पर भस्म रंग चढ़ाकर होली के शुभ होने की कामना कर पूरे वर्ष को अच्छे से व्यतीत होने का आशीर्वाद मांगते हैं।

महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार 

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि 21 मार्च को गीत गवना, 22 मार्च को गौरा का तेल-हल्दी होगा। 23 मार्च को बाबा का ससुराल आगमन होगा। बाबा के ससुराल आगमन के अवसर पर विश्वनाथ मंदिर महंत परिवार के सदस्य 11 ब्राह्मणों द्वारा स्वतिवाचन, वैदिक घनपाठ और दीक्षित मंत्रों से बाबा की आराधना कर उन्हें रजत सिंहासन पर विराजमान कराया जाएगा।

24 मार्च को मुख्य अनुष्ठान की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में होगी। भोर में चार बजे 11 ब्राह्मणों द्वारा बाबा का रुद्राभिषेक होगा। सुबह छह बजे बाबा को पंचगव्य से स्नान कराया जाएगा। सुबह साढ़े छह बजे बाबा का षोडषोपचार पूजन होगा। सुबह सात से नौ बजे तक महंत परिवार के सदस्यों द्वारा लोकाचार किया जाएगा। नौ बजे से बाबा का श्रृंगार आरंभ होगा। बाबा की आंखों में लगाने के लिए काजल, विश्वनाथ मंदिर के खप्पड़ से लाया जाएगा. गौर के माथे पर सजाने के लिए सिंदूर परंपरानुसार अन्नपूर्णा मंदिर के मुख्य विग्रह से लाया जाएगा।

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