राकेश टिकैत बायोग्राफी, पुलिस से किसान नेता बनने तक का संघर्षरत सफर

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किसान आंदोलन के मुख्य सूत्रधार राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 के दिन भारत के मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण किया तत्पश्चात् मेरठ विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की , MA की डिग्री हासिल की, अपनी पढ़ाई पूरी करके उन्होंने दिल्ली पुलिस में अपनी सेवा प्रदान करनी शुरू कर दी थी। 1992 की साल में उन्होंने पुलिस की नौकरी शुरू की थी। ईमानदारी से उन्होंने अपना फर्ज अदा किया ।

राकेश टिकैत के परिवार की जानकारी पर ध्यान दे तो पता चलता है पिताजी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत अपनी पूरी जिंदगी किसानो के लिए कार्य किया और अपने पिताजी से राकेश भाई बहुत प्रभावित थे । लाल किले पर हो रहे किसान आंदोलन में, उनके पिताजी धरने पर बैठे थे और सरकार ने उस आंदोलन को दबाने की कोशिश आज तक जारी रखी है। उनके परिवार में चार भाई है। इसके बड़े भाई का नाम नरेश टिकैत और नन्हे दो भाई का नाम सुरेंद्र टिकैत और नरेंद्र टिकैत है।

दिल्ली-यूपी को जोड़ने वाला गाजीपुर बॉर्डर पर 28,जनवरी की शाम को, घिरती शाम के साथ यूपी पुलिस के जवान भी भारी तादाद में जुटने लगे थे, लाठियों, हथियारों से लैस। न्यूज़ चैनलों पर खबर चलने लगी कि 28-29 जनवरी की दरम्यान रात गाजीपुर बॉर्डर पर कुछ भी हो सकता है। ये भी ख़बरें फ़्लैश होने लगीं कि यूपी सरकार ने प्रदेश भर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों को फरमान जारी कर दिया है कि जगह-जगह से किसानों का धरना खत्म करें । ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर जो हो रहा था, वो सब इसी कवायद का हिस्सा माना गया ।

लेकिन पश्चिमी यूपी के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद थे। टिकैत से पुलिस अधिकारियों से बात की। उनकी गिरफ़्तारी की चर्चाएं भी चल रही थीं, प्रशासन की कोशिश थी कि किसान अपना धरना खत्म कर लें, और टिकैत आत्मसमर्पण कर दें। फिर राकेश टिकैत मंच पर चढ़े, लोगों को लगने लगा कि टिकैत अब आत्मसमर्पण करने या आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर देंगे। लेकिन नहीं, टिकैत ने स्टोरी को ट्विस्ट कर दिया, कह दिया कि आत्मसमर्पण नहीं करेंगे । पुलिस चाहे तो गिरफ्तार कर ले, लेकिन पक्की कागज़ी कार्रवाई के बाद, टिकैत ने कहा,

“अगर गिरफ़्तारी देनी होगी तो हम शांति से पूरी कार्रवाई के बाद गिरफ्तारी देंगे। लेकिन लग रहा है कि लौटते आंदोलनकारियों के साथ हिंसा की तैयारी है और ऐसा कोई प्लान है तो मैं यहीं रहूंगा, मैं पुलिस की गोली का सामना करूंगा।”

लेकिन कुछ देर में टीवी पर राकेश टिकैत की तस्वीरें फ़्लैश हुईं, टिकैत फूट-फूटकर रो रहे थे। कह रहे थे कि मैं आत्महत्या कर लूंगा, लेकिन आंदोलन को खत्म नहीं करूंगा। यूपी पुलिस की प्लानिंग गड़बड़ा गई, फ़ोर्स को पीछे हटना पड़ा। पुलिस में नौकरी लगने के साथ ही उनकी नौकरी छोड़ने की पृष्ठभूमि भी तैयार हो रही थी, क्योंकि पश्चिमी यूपी में एक बड़ा आंदोलन जन्म ले रहा था, जिसे दिल्ली पहुंचना था।

अक्टूबर 1988, महेंद्र सिंह टिकैत भाकियू समर्थकों और यूपी के 5 लाख किसानों के साथ दिल्ली के बोट क्लब पहुंच गए, एक हफ़्ते तक दिल्ली में लाखों किसानों ने डेरा डाले रखा । किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक मानो क़ब्ज़ा कर लिया था। ऐसे में पुलिस लगाती है धारा 144, इसके जवाब में किसानों ने लगा दी धारा 288 .ये धारा पुलिस को किसानों के बीच आने से रोकती है।

ये किसान बकाये का भुगतान और गन्ने की फसल के लिए बेहतर पेमेंट की मांग कर रहे थे , कृषि मंत्री थे भजन लाल और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी, एक हफ़्ते तक चले इस बड़े आंदोलन को महेंद्र सिंह टिकैत ने खत्म कर दिया, किसान लौट गए ख़बरें बताती हैं कि ठीक अगले साल एनडी तिवारी ने लोकसभा चुनाव के पहले भाकियू के साथ समझौता करते हुए उनकी सारी मांगों को स्वीकार कर लिया । राकेश टिकैत ने इस आंदोलन के सारे बड़े फैसले खुद ब खुद लिए , राकेश टिकैत को दिल्ली पुलिस जेल भेजने से लेकर 26 जनवरी को लेकर एफआईआर भी दर्ज कर किया हैं । किसान आंदोलन के दौरान टिकैत अब तक 40 से ज्यादा बार जेल जा चुके हैं ।

राकेश टिकैत राजनीति में भी उतर चुके हैं. साल 2007. यूपी के विधानसभा चुनाव. मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा. राकेश टिकैत ने निर्दलीय पर्चा भरा. चुनाव लड़ा. बस हारे क्या जमानत भी जब्त हो गयी । 2014 का , लोकसभा चुनाव आया सीधे लोकसभा का पर्चा भर दिया अमरोहा सीट से , इस बार निर्दलीय नहीं , साथ मिला राष्ट्रीय लोक दल का साढ़े 9 हज़ार वोट आए जमानत फिर से जब्त ।

राकेश टिकैत का नाम 2013 के मुजफ्फरनगर के जाट बनाम मुस्लिम दंगों में आ चुका है उन पर आरोप है कि उन्होंने दंगों के ठीक पहले आयोजित महापंचायत में हिस्सा लिया था। नरेश टिकैत के साथ,इसी महापंचायत में मुस्लिमों को सबक सिखाने की बात कहने के आरोप लगे थे। बीजेपी के नेता और अब विधायक बने संगीत सोम, प्रवेश राणा और कपिल देव भी इसी रैली में शामिल हुए थे. दी हिंदू की रिपोर्ट में दावा किया गया कि दंगा पीड़ितों ने आरोप लगाया था कि राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने भी भड़काऊ भाषण दिए थे।

लेकिन राकेश टिकैत ने इन सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया था और न उसे कोई भी सबूत जांच एजेंसियों के हाथ लगे।अब जो है, वह सामने है, राकेश टिकैत दिल्ली के मोर्चे पर हैं। केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस अपने मोर्चे पर। बीच में हैं तीन कृषि क़ानून, और हैं कुछ कीले, कुछ बातें, कुछ कहानियां, सब इसी और अपने वर्तमान में है।

 

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