Metro Man

मेट्रो मैन का राजनीति में आना

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

राजनीति को कोसने का मौका मिले तो कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता, उसे गंदा बताने, गटर कहने में कोई संकोच नहीं करता। लोग तो यहां तक कहते हैं कि राजनीति वह काजल की कोठरी है जिसमें कोई भी जाएगा, दागी हो जाएगा लेकिन राजनीति के गटर को साफ करने में इस देश का भद्र समाज कदाचित रुचि नहीं लेता और देश द्रौपदी का चीरहरण अपनी आंखों से देखता रहता है। सच तो यह है कि राजनीति में कोई भी अच्छा आदमी आना नहीं चाहता। यह अच्छी बात है कि इन दिनों सुलझे और अपने क्षेत्र के जिम्मेदार लोग राजनीति की ओर रुख कर रहे हैं। इसे सुखद संयोग नहीं तो और क्या कहा जाएगा?

मेट्रो मैन ई. श्रीधरन का राजनीति में प्रवेश भारतीय राजनीति को नई दिशा देगा, इतनी उम्मीद तो यह देश कर ही सकता है। देश को उनसे भरोसा है कि वे कुछ अच्छा करेंगे और उन्हें अपने से जोड़ने वाली भाजपा को भरोसा है कि उनके आने से भाजपा को लाभ होगा। चुनाव में उसे फायदा मिलेगा। श्रीधरन ने भी कहा है कि उनकी क्षमता का इस्तेमाल देश में केवल एक ही पार्टी कर सकती है और वह है भाजपा। बकौल श्रीधरन, यह और बात है कि आज भाजपा को गलत तरीके से पेश किया जाता है। इसे हिंदू समर्थक दल कहा जाता है, लेकिन यह सही नहीं है।

भाजपा राष्ट्रवाद, समृद्धि और सभी वर्गों के लोगों की भलाई के लिए काम करती है। भाजपा ही एक मात्र पार्टी है जो देश और केरल के लोगों के लिए काम कर सकती है।वे इसकी सही छवि को लोगों के सामने पेश करना चाहते हैं। हर दल को श्रीधरन जैसे सकारात्मक सोच वाले नेताओं की जरूरत है। श्रीधरन के केरल से भाजपा ज्वाॅइन करने पर राजनीतिक दलों में यह चर्चा आम हो गई है कि भाजपा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में जनता के सामने ला सकती है लेकिन श्रीधरन ने इस पर बेहद सधा जवाब दिया है कि पार्टी जो भी काम देगी, करूंगा। महत्वाकांक्षा के लिए राजनीति में आना और जनसेवा के लिए राजनीति में आना दो अलग बातें हैं।

बिरज में होली खेंलें रसिया …

इस दिशा में हर राजनीतिज्ञ को सोचना चाहिए। श्रीधरन अगर भाजपा में आए हैं तो वे अपनी कुछ शर्तों पर ही आए होंगे। इसलिए अभी से कयासों का बाजार गर्म करना उचित नहीं होगा। हर चीज अपने समय पर प्रकट हो तो उसकी रोचकता बनी रहती है। प्रासंगिकता बनी रहती है। मेट्रोमैन के रूप में श्रीधरन ने अभी तक देश की सेवा की अब वे राजनीति के जरिए अपने प्रदेश केरल की सेवा करना चाहते हैं। उसकी दशा और दिशा में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है? वे केरल में संरचनात्मक और बुनियादी ढांचे का विकास करना चाहते हैं।

जिन लोगों को उनके भाजपा में आने में राजनीति नजर आ रही है, उन्हें सोचना होगा कि ऐसी क्या वजह थी कि विगत दो दशकों में केरल में कोई औद्योगिक इकाई नहीं लग पाई। केरल अगर कर्ज के बोझ से दबा है। आर्थिक रूप से दिवालिया होने के कगार पर है तो इसके लिए वहां शासन सत्ता में बैठे राजनीतिक दल ही बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। अगर श्रीधरन यह कह रहे हैं कि यहां के सत्ताधीश काम नहीं कर रहे, राज्य के विकास में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो इससे उनकी पीड़ा का आकलन किया जा सकता है। चूंकि अब वे एक राजनीतिक दल से जुड़ गए हैं, ऐसे में कोई भले ही उनकी बातों में राजनीतिक आरोप तलाशे लेकिन वास्तविकता से केरल का नेतृवर्ग आखिर कब तक नजरें चुराता रहेगा।

उन्होंने वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी लेकिन भाजपा में आते-आते उन्हें सात साल लग गए। उनके इस आगमन पर कुछ लोग गुनगुना भी सकते हैं और ऐसा करना उनके हक में भी है कि हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी लेकिन सोच-समझकर उठाया गया कदम ही सार्थक परिणाम देता है,यह भी अपने आप में संपूर्ण सत्य है। भाजपा ने आडवाणी समेत कई उम्रदराज नेताओं के टिकट काटे थे। श्रीधरन 88 साल की उम्र में राजनीति में आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा क्या उन्हें कोई जिम्मेदार पद दे पाएगी या उनके नाम का लाभ लेना ही उसका राजनीतिक अभीष्ठ होगा, चर्चा तो इसे लेकर भी होने लगी है। वैसे श्रीधरन 2011 में ही रिटायर हा गए थे और वे देश और प्रदेश के लिए कुछ करना चाहते थे।

राजनीति से बड़ा क्षेत्र जनसेवा का दूसरा कोई नहीं हो सकता। उनके अनुभवों का लाभ केरल को मिलेगा, इस देश को मिलेगा। व्यक्ति जब तक जीवित है, उसे राष्ट्रहित के बारे में सोचना चाहिए। राजनीति में हर अच्छे व्यक्ति को आगे आना चाहिए और मतदाताओं की चार चोर में से एक अच्छे चोर को चुनने की दुविधा को खत्म करना चाहिए। बुराई-बुराई होती है, उसमें अच्छा-बुरा तलाशना किसी भी रूप में उचित नहीं है। यही लोकहित का तकाजा भी है। श्रीधरन जानते हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। समूह की ताकत किसी भी काम को चुटकियों में कर गुजरने की क्षमता देती है।

उन्होंने कहा भी है कि अकेले काम करने में अक्षम महसूस कर रहा था। इसलिए राजनीतिक क्षेत्र में जाने पर विचार किया। केरल के सत्तारुढ़ वाम दल और विपक्षी कांग्रेस के गठबंधन, दोनों ने निराश किया। राष्ट्रीय हित इनके एजेंडे में नहीं है। इनके नेता सिर्फ अपने लिए काम कर रहे हैं। भाजपा से मेरी विचारधारा मिलती है। भाजपा एक मात्र ऐसी पार्टी है जिसके साथ मैं खुद को जोड़ सकता हूं। भाजपा ही मेरी काबिलियत का राज्य व राष्ट्र निर्माण में सर्वोत्तम इस्तेमाल कर सकती है। इसका दृष्टिकोण भविष्यमुखी है। काश, श्रीधरन जैसा ही देश के अन्य अच्छे लोग भी सोच पाते तो यह देश तरक्की के शिखर पर पहुंच जाता।

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