नई दिल्ली। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह (Tulsi marriage) होता है। इसे देवउठनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है। बुधवार को यह एकादशी है। इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है।
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माना जाता है कि जो व्यक्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे उतना ही पुण्य प्राप्त होता है, जितना कन्यादान से मिलता है। शालिग्राम, विष्णु जी का ही एक अवतार माने जाते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। आइए पढ़ते हैं यह कथा।
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार तुलसी ने विष्णु जी गुस्से में आकर शाप दे दिया था जिसके चलते वह पत्थर बन गए थे। इस शाप से मुक्त होने के लिए विष्णु जी ने शालिग्राम का अवतार लिया। इसके बाद उन्होंने माता तुलसी से विवाह किया। ऐसा कहा जाता है कि मां लक्ष्मी का अवतार माता तुलसी हैं। कई जगहों पर द्वादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त और विवाह की पूजन विधि।
विवाह की पूजन विधि:
तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे के चारों ओर मंडप बनाना होगा। फिर तुलसी के पौधे को एक लाल चुनरी अर्पित करें। साथ ही सभी श्रृंगार की चीजें भी अर्पित करें। इसके बाद गणेश जी और शालिग्राम भगवान की पूजा करें। शालिग्राम भगवान की मूर्ति का सिंहासन हाथ लें। फिर इनकी सात परिक्रमा तुलसी जी के साथ कराएं। आरती करें और विवाह के मंगलगीत अवश्य गाएं।
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त:
एकादशी तिथि प्रारंभ- 25 नवंबर, बुधवार, सुबह 2:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त- 26 नवंबर, गुरुवार, सुबह 5:10 बजे तक
द्वादशी तिथि प्रारंभ- 26 नवंबर, गुरुवार, सुबह 05 बजकर 10 मिनट से
द्वादशी तिथि समाप्त- 27 नवंबर, शुक्रवार, सुबह 07 बजकर 46 मिनट तक