CS Upadhyay

संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन नहीं तो दिल्ली कूच करेंगे दो करोड़ लोग: चंद्रशेखर उपाध्याय

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लखनऊ/ देहरादून।  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन के लिए चल रहे अभियान ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nyay) के नेतृत्व पुरुष प्रख्यात न्यायविद चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay)  का कहना है कि संविधान में संशोधन किए बिना हिंदी सर्वोच्च न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों की भाषा नहीं हो सकती है। इसके लिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद का विशेष सत्र बुलाकर अनुच्छेद 348 में एक पंक्ति का संशोधन करें। हम चाहते हैं कि न्यायालयों की कार्यवाही आम आदमी की भाषा में होनी चाहिए। हिंदी के साथ संविधान में अधिसूचित 22 भाषाओं में न्यायालय का काम हो ताकि आम आदमी समझ सके कि न्यायाधीश और अधिवक्ता क्या कह रहे हैं। न्यायालयों के निर्णय अंग्रेजी से हिंदी में अनुवादित हो रहे हैं, जिसमें अर्थ का अनर्थ हो रहा है।

चंद्रशेखर उपाध्याय (CS Upadhyay) इस समय पूरे देश के दौरा कर रहे हैं। आगरा आगमन पर हिंदी से न्याय अभियान के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सिंह देवी नरवार ने अभियान के समर्थन में 50 हजार हस्ताक्षर सौंपे। पूरे देश में दो करोड़ लोगों से हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। गोवा में अच्छा काम चल रहा है।

उन्होंने (CS Upadhyay)  बताया कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन के लिए आवश्यक है कि राज्य सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर संकल्प पारित करे। उन्होंने  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांगकी कि वे  विधानसभा का सत्र बुलाकर यह कार्यवाही करें। ऐसा करके वे हिंदी भाषा के लिए कीर्तिमान स्थापित करेंगे।

उन्होंने बताया कि राज्यों में राज्यपाल, राष्ट्रपति की अनुमति से संविधान की धारा 348 (4) के तहत उच्च न्यायालय में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उच्च न्यायालयों में कार्यवाही शुरू करा सकते हैं। मैंने उत्तराखंड और हरियाणा में यह काम करा दिया है। उत्तर प्रदेश में नहीं हुआ है। मांग करता हूँ कि राज्यपाल तत्काल राष्ट्रपति के पास प्रस्ताव भेजें।

श्री उपाध्याय (CS Upadhyay) ने बताया कि हिंदी विषय से संबंधित सभी पुरस्कारों पर रोक लगनी चाहिए। हिंदी को लेकर पुरस्कार देना संज्ञेय अपराध घोषित होना चाहिए। यह काम सिर्फ एक वर्ष के लिए हो। इससे जो पैसा बचेगा, उसका उपयोग पाठ्यक्रमों की उन पुस्तकों को हिंदी में करना चाहिए जो उपलब्ध नहीं हैं। इस काम के लिए सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।

श्री उपाध्याय (CS Upadhyay) ने बताया कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिंदी ग्रंथ अकादमी की स्थापना की थी ताकि पाठ्यक्रमों की पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध हो सकें। 1977 में अकादमी को हिंदी संस्थान में समाहित कर दिया गया। अब हिंदी ग्रंथ अकादमी, हिंदी संस्थान का प्रभाग मात्र है। इसलिए वास्तविक काम नहीं हो रहा है। केंद्र सरकार हिंदी ग्रंथ अकादमी को पुनर्जीवित करे। जब पाठ्यक्रमों की सभी पुस्तकें हिंदी माध्यम में आ जाएंगी तो अंग्रेजी में पढ़ाई की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी।

चन्द्रशेखर उपाध्याय को अनुच्छेद 348 में संशोधन किये जाने के समर्थन में 50,000 से अधिक हस्ताक्षर सौंपें

यह पूछे जाने पर कि हिंदी से न्याय अभियान कब समाप्त होगा, श्री चंद्रशेखर उपाध्याय ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बताएंगे। संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन के लिए में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल तैयार हैं। प्रधानमंत्री भी तीन बार इस बारे में बात कर चुके हैं। जरूरत संसद का सत्र बुलाकर संविधान संशोधन की है। यह काम मोदी जी को करना है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी में काम तभी हो जब वादकारी शपथपत्र दे कि वह हिंदी समझ, बोल और पढ़ नहीं सकता है। अगर शपथपत्र झूठा पाया जाए तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। उन्होंने बताया कि दो करोड़ लक्ष्य के विपरीत 1.5 करोड़ हस्ताक्षर करा चुके हैं। इस तरह 6 करोड़ लोगों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संवाद हो चुका है। ब्रज प्रांत ने आज ही 50 हजार लोगों के हस्ताक्षर सौंपे हैं। मार्च तक आगरा मंडल से दो लाख लोगों के हस्ताक्षर कराए जाएंगे। विद्यालयों में हिंदी से न्याय अभियान को लेकर खासा उत्साह है। दो करोड़ लोगों के हस्ताक्षर होते ही याचना नहीं रण होगा। अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी तो दो करोड़ लोग दिल्ली की ओर कूच करेंगे, फिर तो सुनेगी।

श्री चंद्रशेखर उपाध्याय (CS Upadhyay) ने कहा कि कितनी अजीब बात है कि हिंदी और भारतीय भाषाओं को स्थापित करने की लड़ाई अपने लोगों से लड़नी पड़ रही है। हम छह वर्ष से रचनात्मक अभियान चला रहे हैं। देश के 31 प्रांतों में काम चल रहा है। संगोष्ठी और हस्ताक्षर अभियान चल रहा है। हमारा गांडीव रखा हुआ है, इसे उठाने के लिए केन्द्र सरकार विवश न करे।

चंद्रशेखर उपाध्याय (CS Upadhyay) को सौंपे 50 हजार से अधिक हस्ताक्षर

हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान के नेतृत्व-पुरुष एवं प्रख्यात न्यायविद् श्री चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय अपने छठवें अखिल भारतीय प्रवास के दौरान आगरा पहुंचे, जन्मभूमि पहुंचने पर अभियान की वृहद उत्तर-प्रदेश ( पूर्वांचल-प्रान्त, विंध्याचल-प्रान्त पश्चिमांचल-प्रान्त तथा दक्षिणांचल-प्रान्त) शाखा के राज्याधिपति ( प्रान्त-प्रमुख) एवं  सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. देवी सिंह नरवार तथा प्रान्त महामात्य (संगठन) आनन्द गुप्ता ने उन्हें अनुच्छेद 348 में संशोधन किये जाने की उनकी मांग के समर्थन में 50 हजार से अधिक हस्ताक्षर सौंपे।

बताते चलें कि श्री उपाध्याय (CS Upadhyay)  देश की शीर्ष-अदालतों (सुप्रीमकोर्ट एवं 25 हाईकोर्ट्स) में सारा कामकाज हिन्दी  एवं अन्य भारतीय-भाषाओं (संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाएं, जिनकी लिपि उपलब्ध है) में सम्पादित किये जाने हेतु पिछले सवा तीन दशक से अधिक समय से ‘हिन्दी से न्याय’ यह देशव्यापी-अभियान चला रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती-दल भारतीय जनसंघ के स्थापना एवं प्रेरणा-पुरुष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय हिन्दी माध्यम से एल-एल.एम.उत्तीर्ण करने वाले पहले भारतीय छात्र हैं। पिछले लगभग एक दशक में इस न्यायिक-भाषायी स्वतंत्रता अभियान की 31 प्रान्तों की टीमों ने देशभर से लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक हस्ताक्षर प्राप्त किये है, ‘हिन्दी से न्याय’ इस देशव्यापी-अभियान को दुनिया के तमाम देशों से भी व्यापक- समर्थन हासिल हो रहा है, विदेशों में रह रहे अप्रवासी-भारतीयों ने बड़ी-संख्या में अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर किये हैं।

उत्तर-प्रदेश में सेशन कोर्ट में जज रहे श्री उपाध्याय ने उत्तराखण्ड में देश के सबसे कम आयु के एडीशनल एडवोकेट जनरल रहते हुए 12 अक्टूबर,2004  को इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिन्दी में प्रतिशपथ ात्र प्रस्तुत कर एक इतिहास रच दिया था, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के ओएसडी ( न्यायिक,विधायी एवं संसदीय- कार्य) रहते हुए उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में हिन्दी में वाद-कार्यवाही शुरू करायी थी एवं  विधि-आयोग में सदस्य (समकक्ष प्रमुख सचिव,विधायी) के दायित्व से 2013  में नैनीताल हाईकोर्ट में हिन्दी में याचिका स्वीकार करायी।

श्री उपाध्याय को आज सौंपे गये हस्ताक्षर पिछले डेढ़ माह में आगरा के दर्जनों इण्टर कालेजों के विद्यार्थियों से प्राप्त किये गये हैं। इससे पहले जनवरी,2020  में शुरू किये गये हस्ताक्षर अभियान के तहत भी आगरा से बड़ी संख्या में नागरिकों का समर्थन हासिल किया गया था। आज के इस आयोजन में अभियान के केन्द्रीय अधिष्ठाता-मंडल में सम्मिलित  वरिष्ठ सम्पादक तथा प्रबंधन में अपना शोध-पत्र हिन्दी में प्रस्तुत कर उसे स्वीकार कराने वाले प्रथम भारतीय छात्र डॉ.  भानु प्रताप सिंह, केन्द्रीय अमात्य मण्डल में सम्मिलित डॉ.कुंजल सिंह चाहर,अभियान के आगरा मण्डलापति भुवनेश पालीवाल अधिवक्ता, नगराधिपति श्री वेदान्त वर्मा तथा विद्यालयी प्रबंधक संगठन के अध्यक्ष हरिओम चौधरी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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