सुधा कृष्णमूर्ति

सादगी और आत्मविश्वास की जीती-जागती मिसाल जानें कैसे बनीं सुधा कृष्णमूर्ति?

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नई दिल्ली। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाले सिद्धांत को अपनी रियल लाइफ का अभिन्न अंग सुधा मूर्ति ने बनाया है। सुधा मूर्ति आईटी इंडस्ट्रियलिस्ट और इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति की पत्नी तो हैं हीं। इसके साथ -साथ एक इंस्पायरिंग वुमन भी हैं।

सुधा कृष्णमूर्ति ने सोशल वर्क, इंजीनियरिंग, लेखन और घर संभालने जैसी अलग-अलग भूमिकाओं को शिद्दत से निभाया

सुधा मूर्ति ने सोशल वर्क, इंजीनियरिंग, लेखन और घर संभालने जैसी अलग-अलग भूमिकाओं को शिद्दत से निभाया है। सुधा मूर्ति को भी अपनी लाइफ में कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी सकारात्मक सोंच, लगन और जी-तोड़ मेहनत से वह अपने लिए रास्ते बनाती गईं। आज वह महिलाओं के लिए एक बड़ी इंस्पिरेशन बन गईं है। हाल ही में सुधा कृष्णमूर्ति अमिताभ बच्चन के शो कौन बनेगा करोड़पति में भी नजर आईं थीं।

1960 में इंजीनियरिंग में दाखिला लेकर तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व

बता दें कि 1960 के दशक में इंजीनियरिंग में पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व था। उस समय में सुधा इंजीनियरिंग कॉलेज में 150 छात्रों के बीच दाखिला पाने वाली पहली छात्रा थीं। इस वजह से कभी उनकी सीट पर इंक गिरा दी जाती थी तो कभी कागज के हवाई जहाजों से क्लास में उनका स्वागत किया जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल ने एडमिशन के वक्त उनके सामने शर्त रखी थी कि कॉलेज में साड़ी पहननी पड़ेगी। इसके अलावा कॉलेज की कैंटीन से दूर रहना होगा और लड़कों से बात नहीं करनी होगी। सुधा ने सारी बातें मंजूर कर लीं थीं,लेकिन इन चीजों के बावजूद उन्होंने क्लास में पहला स्थान हासिल किया। हालांकि यह कामयाबी सुधा के लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती थी क्योंकि उनके लक्ष्य बहुत बड़े थे।

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सुधा कृष्णमूर्ति बोलीं- कुछ हासिल करना है तो ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए

सुधा मूर्ति बताती हैं कि ये 50 साल पहले की कहानी है। मैं नॉर्थ कर्नाटक के छोटे से गांव हुबली से हूं। हमारे समय में मैथ्स और फिजिक्स में एमएससी बहुत कम लोग करते थे, लेकिन मेरे मन में पढ़ने की इच्छा थी। तब मुझे लोग एब्नॉर्मल समझते थे कि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती हूं।’ सुधा मूर्ति ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि कैसे उन्हें क्लास में लड़के परेशान करते थे और वह रुआंसी हो जाती थीं। इस बारे में उन्होंने कहा कि मैं धैर्य से काम लेती थी। कुछ हासिल करना है तो ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए। पढ़ने के वक्त मुझे अपना लक्ष्य मालूम था।

सुधा कृष्णमूर्ति ने पति नारायण मूर्ति को सपना पूरा करने के लिए दिया सिर्फ 3 साल का वक्त

नारायण मूर्ति आज देश के एक बड़े उद्योगपति के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन इंफोसिस के गठन से पहले जब वह पुणे में सुधा से मिला करते थे, तब उनके पास पैसे नहीं हुआ करते थे। इस दौरान रेस्टोरेंट्स में खाने-पीने के बिल सुधा मूर्ति ही चुकाती थीं। इस दौरान नारायण मूर्ति अक्सर कहा करते थे कि वह उनका उधार बाद में चुका देंगे। सुधा ने तीन साल तक इस उधार का हिसाब रखा और जुड़ते-जुड़ते ये 4000 तक पहुंच गया था। उस समय में 4000 रुपये की कीमत काफी ज्यादा हुआ करती थी। हालांकि शादी के बाद सुधा ने यह किताब फाड़ दी थी। शादी होने के बाद जब नारायण मूर्ति ने इन्फ़ोसिस शुरू करने के बारे में सुधा से चर्चा की तो उन्होंने बदले में कहा कि मैं आपको तीन साल का वक्त दे रही हूं। इस दौरान घर का खर्च मैं उठाऊंगी, आप अपना सपना पूरा कीजिए, लेकिन आपके पास वक्त सिर्फ 3 साल का है। इसके साथ ही सुधा ने उन्हें अपनी पर्सनल सेविंग्स से 10,000 रुपये भी दिए थे

इंफोसिस को दिया मजबूत आधार

जब नारायण मूर्ति ने अपने घर को इंफोसिस का दफ्तर बना दिया तो सुधा ने Walchand group of Industries में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया, ताकि वह फाइनेंशियली मजबूत रह सकें। इसके साथ ही उन्होंने इंफोसिस में एक कुक, क्लर्क और प्रोग्रामर की भूमिकाएं भी निभाईं।

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