उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल तैयारियां कर रहे, बीजेपी की जीत में ब्राह्मण मतदाताओं की अहम भूमिका रही है। लेकिन हाल के दिनों में आशंका जताई जा रही है कि ब्राह्मण मतदाता बीजेपी से नाराज हैं। इस मुद्दे पर पत्रकार अजीत अंजुम ने उस विरादरी के कुछ लोगों से बात की। एक मतदाता ने कहा कि महंगाई से परेशान हूं…पर वोट तो हम मोदी-योगी को ही देंगे, और कोई चारा नहीं है मेरे पास।
उन्होंने कहा कि हजार कमी है लेकिन योगी जी हमारे राज्य के एक तरह से पिता ही हैं। भूखमरी हो जाए, मजदूरों को मजदूरी न मिले हम वोट तो मोदी योगी को ही देंगे। जब उनसे पत्रकार ने पूछा कि 370 और राम मंदिर के अलावा कोई काम जो सरकार ने किया हो तो उन्होंने कहा कि मेरी नजर में तो कोई और काम नहीं किया।
एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में ब्राह्मण वोटरों की संख्या 10 से 11 प्रतिशत है। ये संख्या भले ही अन्य जातियों की अपेक्षा कम हो, मगर यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है। आजादी के बाद से 1989 तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। हालांकि 1990 में मंडल आंदोलन के बाद यूपी को कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं मिला। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि यूपी की सियासत पिछड़े, मुस्लिम और दलित पर केंद्रीय हो गई।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नए आईटी नियमों पर लगाई रोक, कहा- अभी इसकी कोई जरूरत नहीं
सियासत का यह सिलसिला 2007 तक जारी रहा। लेकिन 2007 में मायावती की सोशल इंजिनियरिंग ने एक बार फिर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों का महत्व बढ़ा दिया। तब से जो भी दल सत्ता में आए उसमें ब्राह्मण वोटों की अहम भूमिका रही। 2007 में जब मायावती सत्ता में आईं तो उस समय बीएसपी से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए।2012 में सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी के पास 21 ब्राह्मण विधायक थे। 2017 के विधानसभा चुनावों में कुल 56 ब्राह्मण विधायक जीते थे। इनमें 46 बीजेपी के टिकट पर जीते थे। यही वजह है कि हर दल ब्राह्मणों को अपनी तरफ रिझाने में जुटा है।