दिल्ली में पिछले साल हुए दंगो को लेकर दिल्ली की ही एक कोर्ट ने पुलिस जांच को लेकर अधिकारियों को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा- दंगे के बहुत सारे मामलों में जांच का मापदंड बहुत ही घटिया है, इसमें दिल्ली पुलिस आयुक्त के दखल की जरूरत है। जज विनोद यादव ने अशरफ अली नाम के व्यक्ति की याचिका पर ये टिप्पणी की, अशरफ पर पुलिस के ऊपर तेजाब, कांच की बोतलें फेंकने का आरोप है। जज ने कहा- कई मामलों में जांच अधिकारी अदालतों में पेश नहीं हो रहे हैं जिसकी वजह से कई बेकसूर भी सालभर से सलाखों के पीछे पड़े हैं।
उन्होंने कहा- जांच अधिकारी बहस के लिए अभियोजकों को ब्रीफ नहीं कर रहे हैं बलल्कि आरोप पत्र की पीडीएफ प्रति मेल कर दे रहे हैं।इसके अलावा, एडिशनल सेशन जज यादव ने कहा कि आधी-अधूरी चार्जशीट दाखिल करने के बाद पुलिस शायद ही जांच को तार्किक अंत तक ले जाने की परवाह करती है, जिसके कारण कई मामलों में नामजद आरोपी जेलों में बंद रहते हैं।
कोर्ट ने 28 अगस्त को एक आदेश में उल्लेख किया, “यह मामला एक ज्वलंत उदाहरण है, जिसमें पीड़ित स्वयं पुलिस कर्मी हैं, फिर भी आईओ ने एसिड का सैंपल एकत्र करने और उसका कैमिकल एनालिसिस करने की जहमत तक नहीं उठाई। जांच अधिकारी ने चोटों की प्रकृति के बारे में राय एकत्र करने की जहमत तक नहीं उठाई।”
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इसके अलावा, न्यायाधीश ने कहा कि दंगा मामले के जांच अधिकारी प्रॉसिक्यूटर्स को आरोपों पर बहस के लिए ब्रीफ नहीं कर रहे हैं और सुनवाई की सुबह उन्हें चार्जशीट की पीडीएफ ई-मेल कर रहे हैं। उन्होंने इस मामले में आदेश की कॉपी दिल्ली पुलिस कमिश्नर को उनके संदर्भ के लिए और सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश के लिए भेजने का भी निर्देश दिया। सत्र न्यायाधीश ने आगे कहा कि यह उचित समय है कि उत्तर-पूर्वी जिले के डीसीपी और अन्य उच्च अधिकारी उनके द्वारा की गई टिप्पणियों पर ध्यान दें और मामलों में आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करें।