घर से बेदखल बहू अब देगी न्याय

सांवले रंग और बेटी जनने पर घर से बेदखल बहू, अब जज बनकर देगी पीड़ितों को न्याय

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पटना। केंद्र की मोदी सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर स्त्री सशक्तीकरण के तमाम नारों और जागरूकता संदेश देती रहती है। इसके बावजूद समाज में बेटी-बहुओं की प्रताड़ना कम नहीं हुई है। इसका जीता—जागता उदाहरण पटना की वंदना मधुकर हैं। जिस बहू को ससुरालवालों ने उसके सांवले रंग और बेटी जनने पर घर से निकाल दिया था।

वही बहू आज राज्य ज्यूडिशियरी की परीक्षा पास कर जज बन गई है। ससुराल से निकाले जाने के बाद संघर्ष और मजबूत हौंसले की बदौलत उड़ान भरने वाली पटना के छज्जूबाग की 34 वर्षीय वंदना मधुकर माता-पिता के साथ पूरे मोहल्ले की अब चहेती बन गई है। उसने नौकरी करते हुए बेटी को पाला और उच्चस्तर की पढ़ाई जारी रखी।

वंदना मधुकर मोकामा में थीं नियोजित शिक्षक

बता दें कि वंदना मधुकर का मायका मोकामा के राम शरण टोला में है। विवाह 2015 में पटना में हुआ। जब शादी हुई थी तो वह मोकामा में ही नियोजित शिक्षक थीं। शादी के बाद पटना आकाशवाणी में ट्रांसमिशन एक्जक्यूटिव पद संभाला। इसके बाद से घर में कलह बढ़ गई। ससुराल वाले और पति पूरी सैलरी घर में देने के लिए कहते थे।

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बेटी होने के बाद वंदना मधुकर को छोडऩा पड़ा था घर

वंदना बताती हैं कि शादी के एक साल बाद मई, 2016 में बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद ससुराल वाले उनके सांवले रंग के साथ लड़की के जन्म के लिए ताने देने लगे। उनका कहना था कि अगली बार गर्भवती होने पर चेकअप कराना होगा और फिर लड़की हुई। प्रताडऩा से तंग आकर वंदना 20 दिन की बेटी को लेकर मायके मोकामा चली गईं।

स्वजनों का मिला पूरा सहयोग

विधि स्नातक वंदना का कहना है कि जब वह मानसिक परेशानी के दौर से गुजर रही थी। तब उन्हें बाढ़ कोर्ट के अधिवक्ता मधुसूदन शर्मा ने जज की परीक्षा देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने तैयारी की और 29 नवंबर को बिहार की न्यायिक परीक्षा पास कर ली। वंदना अपनी उपलब्धि का श्रेय पिता किशोरी प्रसाद और माता उमा प्रसाद के साथ मधुसूदन शर्मा को देती हैं।

मानसिक परेशानी के दौर में साथ देने वाले बाढ़ कोर्ट के अधिवक्ता मधुसूदन शर्मा की भी वह आभारी है। वंदना का कहना है कि जज की कुर्सी पर बैठने के साथ वह ईमानदारी से काम करेगी और खासकर प्रताड़ना की शिकार हुई महिलाओं को न्याय देना उनकी प्राथमिकता होगी।

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