Chandrashekhar Upadhyay

चंद्रचूड़ जानते हैं चंद्रशेखर को ………???

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लखनऊ। क्योंकि  ‘हिन्दी ‘और ‘ संघर्ष ‘ उनके ‘ रक्त ‘ एवम्  ‘ वंश ‘ में है। जिस वर्ष उनका जन्म हुआ, उनके पिता को ‘हिन्दी-आन्दोलन’ में जेल जाना पड़ा था, मां की गोद में यह सब देखा -सुना ही होगा,  तो गोदी में ही हिन्दी के लिए ‘ कुछ- करो ‘ का अंकुर पड़ गया था क्योंकि वह हिन्दी- माध्यम से एल-एल.एम. उत्तीर्ण करने वाले पहले भारतीय छात्र हैं जिसके लिए उन्हें समूचे सात-बरस तक कड़ा संघर्ष करना पड़ा, हिन्दी के देश में हिन्दी की लड़ाई, सुनने में अजीब सा लगता है लेकिन बाक़ायदा ‘जंग ‘ हुई थी, चन्द्रशेखर (Chandrashekhar Upadhyay) हिन्दी की प्रतिष्ठा के लिए सड़क से लेकर संसद और अदालत तक लड़े थे,वोट-क्लब पर धरना, संसद के बाहर पर्चे फेंकने, भूख-हड़ताल,धरना-प्रदर्शन  लाठी-चार्ज ,’पोल-खोलो-जोर से बोलो ‘, हस्ताक्षर-अभियान तथा ‘थूको-अभियान’ सब-कुछ हुआ ।

11वीं कक्षा में पढ़ते हुए पत्रकारिता से अपना कैरियर  शुरू करने वाले चंद्रशेखर (Chandrashekhar Upadhyay) की पहचान बतौर विधि- प्राध्यापक,विद्यार्थी -हितों के लिए संघर्षशील एक छात्र नेता सरीखी रही है, क्योंकि उन्होंने निचली अदालतों में हिन्दी को बढ़ावा देने की मुहिम चलाई। वह 02 जुलाई, 2000 और 21 अक्टूबर, 2000 को एक दिन में सर्वाधिक क्रमशः 253 एवम् 210 वाद  निस्तारित करने वाले देश के पहले एवम्  एकमात्र न्यायाधीश हैं क्योंकि उत्तराखंड में देश के सबसे कम आयु के एडीशनल एडवोकेट जनरल रहते हुए उन्होंने 12 अक्टूबर, 2004 को पहली बार इलाहाबाद  हाईकोर्ट में हिन्दी भाषा में प्रतिशपथपत्र दाखिल कर और उसे स्वीकार कराकर एक इतिहास रच दिया था। उत्तराखंड तब भी और आज भी देश का पहला और एकमात्र  राज्य है जिसे यह उपलिब्ध हासिल हुई हो।

क्योंकि  हिन्दी को लेकर उनकी तमाम ‘उपलब्धियों’ और ‘संघर्ष’ के चलते उनका नाम ‘इंडिया बुक ऑफ द  रिकॉर्डस’ एवम्  यूनाइटेड किंगडम की वेबसाइट ‘रिकॉर्ड होल्डर्स रिपब्लिक’ (R.H.R.) में दर्ज है। यूनाइटेड किंगडम ने अपनी सूची और वेबसाइट में उन्हें वर्ष 2009 में सम्मिलित किया था। अंग्रेजों की यह वेबसाइट https://www.recordholdersrepublic.co.uk/ Chandrashekhar Upadhyay, uttarakhand news, hindi se nyayहै,क्योंकि ‘द सर्वे  र्ऑफ इंडिया’ ने 2015 में  जारी हिन्दी के प्रथमों में उन्हें 8वें क्रम पर स्थान दिया है। इसी सूची में कुल 59 प्रथम भारतीय हैं,क्योंकि  उत्तराखंड के दो मुख्यमंत्रियों के ओएसडी (न्यायिक, विधायी एवं संसदीय कार्य) व विधि आयोग में सदस्य (प्रमुख सचिव, विधायी के समकक्ष  ) रहते हुए उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में हिन्दी में वाद-कार्यवाही प्रारंभ करायी है।  क्योंकि उनके द्वारा हाईकोर्ट में अदालती- कार्यवाही हिन्दी भाषा में संपादित किए जाने का गजट-नोटिफिकेशन (राजाज्ञा)  कराये जाने के पश्चात ही नैनीताल हाईकोर्ट में 2013 में हिंदी- भाषा में दायर याचिका स्वीकार की गई।

क्योंकि उन्हें न्यायिक- क्षेत्र का प्रतिष्ठित  पुरस्कार ‘न्याय-मित्र’ मिल चुका है जिसे वह लौटा चुके हैं क्योंकि  पिछले तीन दशकों से वह सुप्रीमकोर्ट और  25 उच्च- न्यायालयों में संपूर्ण वाद-कार्यवाही हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं (संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाएं, जिनकी लिपि उपलब्ध है) में संपादित किए जाने और निर्णय भी पारित किए जाने हेतु‘हिन्दी से न्याय’ इस देश व्यापी अभियान का कुशल नेतृत्व कर रहे हैं,क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग को लेकर पिछले एक दशक में उन्होंने लगभग डेढ़- करोड़  से अधिक हस्ताक्षर देश भर से एकत्रित किए हैं, 31 राज्यों में ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान की  संचालन-समितियां नगरों के द्वार-द्वार एवं गांव-गांव तक गई हैं , एक परिवार से एक ही हस्ताक्षर, यह चन्द्रशेखर ने संकल्प लिया था, जो ‘हिन्दी से न्याय ‘इस देशव्यापी-अभियान का ‘नारा’ बन गया, एक परिवार में अमूमन चार या पाँच सदस्य होते हैं, यदि चन्द्रशेखर के पास मौजूद हस्ताक्षरों को चार गुना भी किया जाय तो देश के लगभग छह करोड़ से भी अधिक लोगों से अभियान की टीमों ने प्रत्यक्ष-संवाद किया है, चन्द्रशेखर ने प्रत्येक भारतवंशी से आग्रह किया था कि वह सभी अनुच्छेद 348 में संशोधन किये जाने के समर्थन में कम से कम दस नागरिकों से हस्ताक्षर कराये ।

चन्द्रशेखर (Chandrashekhar Upadhyay) को देशव्यापी समर्थन मिल रहा है,इससे उत्साहित चन्द्रशेखर जब यह कहते हैं कि देश के साठ-करोड़ लोगों मेरे साथ हैं तो खचाखच भरे सभागारों में तालियाँ गूंजने लगती हैं क्योंकि उनका अभियान देश की सरहदों को पार करता हुआ अंग्रेजों की धरती समेत दुनिया के तमाम देशों में पहुँच गया है, चन्द्रशेखर जब यह कहते हैं कि, ‘मैं अंग्रेजी को उसकी माँ के घर इंग्लिश्तान छोड़ आया हूँ और अपनी माँ ‘हिन्दी’ को वहाँ से वापिस ले आया हूँ तो ठसाठ्स भरे सभागारों में लोग भावुक होकर रोने लगते हैं वे देश के जिस भी हिस्से में गये हैं या लगातार जा रहे हैं लोग स्वतः उन्हें सुनने-समझने पहुँच जाते हैं ।

देश   के मुख्य-न्यायमूर्ति   चन्द्रचूड़ (CJI Chandrachud) की स्थानीय भाषाओं में न्यायिक-फैसले उपलब्ध कराने की बात से वह खुश है लेकिन इसे वह नाकाफ़ी मानते हैं क्योंकि अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग वह अंतिम द्वार तक ले आए हैं, मामला संसद के पटल पर आ चुका है, अब केंद्र सरकार को इस पर फैसला करना है क्योंकि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समूचे 8 वर्ष एवम् 8 महीने में उन्हें 8 मिनट भी मिलने का समय नहीं दिया है, अभियान के लोग लगातार उनसे एवम् उनके कार्यालय से समय मांग रहे हैं उन्हें दर्जनों पत्र प्रेषित किये जा चुके हैं, चन्द्रशेखर की माँ  पुष्पलता उपाध्याय ने स्वयं मोदी को फरवरी, 2013 में एक पत्र लिखा था, जिसका आज तक उन्होंने उत्तर नहीं दिया, अभी पिछले साल 11 जून, 2022 को मती पुष्पलता उपाध्याय का निधन भी हो गया, उनके जीवन-काल में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निकटस्थ सहयोगी रहे एवम् परिवार के बुजुर्ग प्रख्यात विद्वान एवम् ज्योतिषाचाय॔ पण्डित अशोक कुमार देवी चरण तिवारी ने 31मार्च, 2022 को मोदी को पत्र लिखा, उनके कार्यालय में लगातार MAIL किये, लेकिन अभी तक सबके उत्तर अप्राप्त हैं (देश के मुख्य न्यायमूर्ति  चन्द्रचूड़ की नयी पहल का उन्होंने  स्वागत किया है लेकिन इससे इतर उनका यह भी कहना है कि

अनुवाद की इस प्रक्रिया में वादकारी के धन और समय की भारी बर्बादी होगी और अनुवादित  होने वाले फैसले की भाषा भी समझना, उसके लिए बहुत कठिन  होगा। उन्होंने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किये गये एक फैसले का उदाहरण देते हुए बताया जहाँ न्यायालय को यह कहा कि, ‘यह सरकार का विशेषाधिकार है’ जबकि अनुवादित फैसले में लिखा था,’यह सरकार के मनोरंजन का विशेष-साध्य है’ क्योंकि अंग्रेजी भाषा में निर्णीत फैसले में लिखा था-‘ IT’S IN THE DISCRETION OF THE GOVERNMENT WHETHER TO ENTERTAIN OR NOT ENTERTAIN SUCH MATTER’ यह मातृभाषा का मखौल उड़ाने जैसी ‘परिघटना’ थी । पूरे देश-भर में और विशेषकर समूचे हिन्दी-संसार में इसके विरोध का एक- स्वर तक सुनायी नहीं दिया ।

चन्द्रशेखर अपने प्रत्येक प्रबोधन में प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी को याद दिलाते हैं कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 2012  में केन्द्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें गुजरात की हाईकोर्ट में गुजराती में कामकाज निपटाने का आग्रह किया गया था, चन्द्रशेखर कहते हैं कि प्रधानमंत्री अपने गृह-राज्य से ही इसकी शुरुआत करा दें । देश के मुख्य न्यायमूर्ति की नयी पहल के बाद क्या   चन्द्रचूड़ अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए चन्द्रशेखर के अनुभवों एवम् योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उन्हें अपने घर ‘चाय’ पर बुलायेंगे, पूरा देश इसकी प्रतीक्षा कर रहा है, यदि ऐसा होता है तो पूरा देश इसका स्वागत करेगा ।

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