आखिर क्या है UAPA कानून और क्यों है राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर विवाद?

701 0

यूएपीए कानून (UAPA Act) एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। देश के राजनीतिक गलियारों में इस कानून को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं। जब भी UAPA कानून के तहत गिरफ्तारी होती है, देशभर में एक नई बहस छिड़ जाती है। हाल ही में किसान आंदोलन के तहत 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा और सेलेब्रिटी ट्वीट विवाद के बाद इस कानून के तहत कुछ गिरफ्तारियां की गई हैं। जिन्हें लेकर देश की सियासत में उबाल है। खैर, बता दें कि यह कानून कोई नया कानून नहीं है। आइए जानते हैं आखिर क्या है UAPA कानून और क्यों हैं राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर विवाद?

भारत की संसद द्वारा ‘गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम,1967’ [Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967- UAPA] को 1967 में निर्मित किया गया था। इस अधिनियम का गठन अलगाववाद से जुड़े अपराधों पर रोक लगाने के लिए किया गया था।

आतंकवाद और नक्सलवाद की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए 2004 में यूएपीए (UAPA) में आतंक विरोधी कानून को शामिल किया गया । इस अधिनियम के गठन के बाद आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और आतंकवादी संगठनों को चिन्हित करने और उन पर रोक लगाने में काफी मदद मिली थी ।

फिर वर्तमान मोदी सरकार ने इसमें कुछ संशोधन कर इसे और सख्त बनाया ,गैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 के प्रावधान कुछ इस प्रकार हैं –

यह (संशोधन) अधिनियम आतंकवादी घटनाओं की जाँच के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को ज्यादा अधिकार देता है। सरकार को अभी तक आतंकवादी घटनाओं में लिप्त व्यक्ति से पूछताछ करने हेतु संबंधित राज्य की पुलिस से पहले इजाजत लेनी पड़ती थी, लेकिन इस (संशोधन) अधिनियम के तहत एनआईए सीधे उस व्यक्ति से पूछताछ कर सकेगी और अब उसे राज्य सरकार की पुलिस से इजाजत नहीं लेनी होगी।

इस अधिनियम के माध्यम से अब एनआईए के महानिदेशक को ऐसी संपत्तियों को कब्जे में लेने और उनकी कुर्की करने का अधिकार मिल गया है, जिनका आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया हो।

अब तक के नियम के मुताबिक, आतंकवादी घटनाओं से संबंधित किसी भी मामले की जांच डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) या असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (एसीपी) रैंक के अधिकारी ही कर सकते थे। लेकिन अब नए नियम के अनुसार, एनआईए के अफसरों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। अब ऐसे किसी भी मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अफसर भी कर सकते हैं।

उक्त संशोधन के बाद केन्द्र सरकार ने अब तक सितम्बर 2019 में 4 व्यक्तियों और जुलाई 2020 में नौ व्यक्तियों को आतंकवादी नामजद किया था।

हाल ही में भारत सरकार ने अठारह व्यक्तियों को विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के तहत आतंकवादी घोषित कर उनका नाम उक्त अधिनियम की चौथी अनुसूची में शामिल करने का फैसला किया है।

विपक्षी दल और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे लोकतंत्र विरोधी बताते हैं तो इसके समर्थक इसे आतंकवाद के खिलाफ, देश की एकजुटता और अखंडता को मजबूती देने वाला बताते हैं।

ऐसे प्रावधानों को लेकर बड़ी बहस छिड़ी थी। प्रावधान के अनुसार, किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। गौर करने योग्य बात यह भी है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से सीधा संबंध दिखाना भी जरूरी नहीं है। वहीं, एक बार आतंकी घोषित होने के बाद ठप्पा हटवाने के लिए पुनर्विचार समिति के पास आवेदन करना होगा। हालांकि, वह बाद में अदालत में अपील कर सकता है।

यूएपीए कानून के तहत दर्ज कई मामलों में संदिग्ध अभियुक्तों की गिरफ्तारी के वक्त सरकार पर भेदभाव के आरोप भी लगे हैं। बात चाहे संशोधित नागरिकता कानून को लेकर दिल्ली में हुए दंगों की हो या जम्मू-कश्मीर की अथवा किसान आंदोलन के दौरान ट्रैक्टर रैली के नाम पर हुई हिंसा की हो। इस संशोधित कानून से हुई गिरफ्तारियों पर सियासी कार्रवाई के सवाल उठे हैं।

यूएपीए कानून के सेक्शन 43 डी (2) के तहत पुलिस हिरासत के समय को दोगुना तक बढ़ा सकती है। इसके तहत 30 दिन की पुलिस हिरासत मिल सकती है। वहीं, न्यायिक हिरासत 90 दिन तक की हो सकती है, जबकि अन्य कानून के तहत हिरासत केवल 60 दिन की होती है। इतना ही नहीं यूएपीए कानून के तहत केस दर्ज होने पर अग्रिम जमानत नहीं मिलती है। यूएपीए कानून के सेक्शन 43 डी (5) के तहत अगर प्रथम दृष्टया उस पर केस बनता है तो अदालत भी उसे जमानत नहीं दे सकती। इसमें सात साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। साथ ही आरोपी की संपत्ति जब्त भी की जा सकती है।

इस कानून को लेकर विपक्षी दल और एक्टिविस्ट हमेशा विरोध में रहे हैं। उनका डर है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल उन्हें चुप कराने के लिए कर सकती है। एक्टिविस्ट समूहों के लोग कहते हैं कि सरकार इस कानून का नाजायज और मनमाना इस्तेमाल करते हुए संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले अधिकारों का हनन कर सकती है। उन्हें चिंता है कि इसका इस्तेमाल असली आतंकियों के साथ-साथ सरकार की नीतियों के विरोधी लेखकों, अभियुक्तों के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर भी हो सकता है।

हालांकि आखिरी में बाबा साहेब आंबेडकर के कुछ शब्द जो उन्होंने कानूनों के संबंध में कहा था कि ” कानून कितना ही खराब क्यों न हो अगर सत्ता की मंशा और लोगो का उस सत्ता पर विश्वास हो तो सब अच्छा चलेगा , लेकिन जितना अच्छा कानून क्यों न हो अगर उपरोक्त दो चीजें नहीं हुई तो अच्छे से अच्छे कानून की कोई सार्थकता नहीं रह जाएगी ।”

Related Post

corona

श्रीविल्लिपुत्तूर विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार माधव राव का निधन, कोरोना से थे संक्रमित

Posted by - April 11, 2021 0
तमिलनाडु । श्रीविल्लिपुत्तूर सीट (Srivilliputhur) से कांग्रेस उम्मीदवार PSW माधव राव (Madhava Rao) के निधन पर AIADMK ओ पनीरसेल्वम और…
SHISHIR ADHIKARI

सुवेंदु अधिकारी के पिता भी भाजपा में शामिल, गृह मंत्री बोले- 2 मई के बाद TMC के गुंडे नहीं बचेंगे

Posted by - March 21, 2021 0
कोलकाता । पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले ममता बनर्जी को एक और बड़ा झटका लगा है। सुवेंदु अधिकारी के पिता…