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किसान आंदोलन की पवित्रता पर सवाल

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों पूरे फार्म में हैं। वे देश को जागरूक करने का काम पहले दिन से कर रहे हैं। अब उन्होंने विपक्ष को समझाने का प्रयास किया है कि वैयक्ति प्रचार से ज्यादा बड़ा है देश और देश के हितों की किसी भी रूप में उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। किसानों के मुद्दे पर तो वे कुछ ज्यादा ही मुखर हो गए हैं।

किसान पंचायत में अगर कांग्रेस महासचिव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोटे दिल का आदमी कहा है तो लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव करते हुए प्रधानमंत्री ने आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवियों के बीच का फर्क करने की बात कही है। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों का आंदोलन पूरी तरह पवित्र है लेकिन आंदोलनजीवियों ने इस आंदोलन को अपवित्र करने में बड़ी भूमिका अदा की है। टेलीफोन के वायर तोड़ना, टोल प्लाजा पर कब्जा करना यह किसी आंदोलन को अपवित्र करना नहीं तो क्या है? जेल में बंद नक्सलियों और आतंकवादियों के चित्र आंदोलन स्थल पर लगाकर उनकी रिहाई की मांग करना क्या किसी आंदोलन को पवित्र करता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर चुन-चुनकर निशाना साधा। यह भी कहा कि जब भी सुधार प्रयास हुए, उसे प्रभावित करने की, उसे कोर्ट ले जाने की विपक्ष ने कोशिश की। संसद में हंगामें और रुकावटें डालने का प्रयास को उन्होंने एक सोची-समझी रणनीति तो बताया ही, लगे हाथ यह भी कहा कि यह सब इसलिए हो रहा है कि झूठ और अफवाहों का पर्दाफाश न हो जाए। उनका मानना है कि कानून लागू होने के बाद न देश में कोई मंडी बंद हुई, न एमएसपी बंद हुआ।

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कानून बनने के बाद एमएसपी की खरीद भी बढ़ी है तो फिर आंदोलन का औचित्य क्या है? जो दल अपनी सरकार आने पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कर रहे हैं, वे खुद तथा आंदोलित किसानों को यह तो बताना ही चाहिए कि इन कानूनों में गलत क्या है और सरकार को इसे क्यों वापस ले लेना चाहिए? प्रधानमंत्री की इस राय में दम है कि तीनो नए कृषि कानूनों में अगर वाकई क्यों कमी है, किसानों का कोई नुकसान हो रहा है तो बदलाव करने में हमारा क्या जाता है? उन्होंने मौजूदा कृषि कानूनों को बेहद अहम और किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाला करार दिया है।

कृषि क्षेत्र को चुनौतियों से बाहर लाने के लिए इसे उपयोगी और जरूरी बताया है। इसके लिए निरंतर प्रयास की जरूरत पर बल दिया है। साथ ही यह भी बताया कि कोरोना कालखंड में जनधन खाते और आधार कार्ड सभी गरीबों के काम आए लेकिन देश जानता है कि इस आधार कार्ड को को रोकने के लिए कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी गए थे? भारत की अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए हमें नए कदम उठाने होंगे। और हमने पहले दिन से ही कई कदम उठाए हैं। कानून के कलर पर तो बहुत चर्चा हो रही है कि यह काला है कि सफेद है । बेहतर होता कि हम उसके कॉन्टेंट और इन्टेंट पर चर्चा करते। आवश्यक है कि हम आत्मनिर्भर भारत के विचार को बल दें।

आज हिंदुस्तान के हर कोने में वोकल फॉर लोकल सुनाई दे रहा है। यह आत्मगौरव का भाव आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत काम आ रहा है। हर राष्ट्र का एक मिशन होता है, जो उसे हासिल करना होता है, हर राष्ट्र की एक नियति होती है, जिसे वह प्राप्त करता है। किसानों को यह कानून विकल्प प्रदान करता है कि जहां ज्यादा फायदा हो, वहां किसान चला जाए। वे यह कहने से भी नहीं चूके कि आंदोलनजीवी ऐसे तरीके अपनाते हैं। ऐसा हुआ तो ऐसा होगा। इसका भय पैदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट का कोई जजमेंट आ जाए तो आग लगा दी जाए देश में।जब कहा जाता है कि कानून मांगा था क्या, तो इस सोच पर मेरा विरोध है। हम सामंतवादी हैं क्या जो मांगा जाए।

 

सरकारें संवेदनशील होनी चाहिए। इस देश ने आयुष्मान योजना नहीं मांगी थी, लेकिन गरीब की जान बचाने के लिए हम योजना लेकर आए। बैंक अकाउंट के लिए गरीबों ने कोई जुलूस नहीं निकाला था, लेकिन हम जनधन खाता योजना लाए। क्या लोगों ने कहा था कि हमारे घर में शौचालय बनाओ? मांगा जाए, तब सरकारें काम करें, वह वक्त चला गया। यह लोकतंत्र है, सामंतशाही नहीं है। खेती हमारी संस्कृति की मुख्यधारा का हिस्सा है। हमारे सांस्कृतिक प्रवाह के साथ खेती जुड़ी हुई है। हमारे यहां राजा भी खेतों में हल चलाते थे। जनक राजा, बलराम की बात हम जानते हैं। हमारे देश में खेती सिर्फ कल्टीवेशन ऑफ क्रॉप नहीं है, यह समाज और संस्कृति का हिस्सा रहा है। विपक्ष को लोकतंत्र और सामंतशाही के बीच का फर्क बताकर प्रधानमंत्री ने उन्हें यथार्थ का आईना दिखा दिया है लेकिन इससे आंदोलनजीवी कुछ समझेंगे या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।

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