Yogi Cabinet

अब आउटसोर्सिंग होगी अधिक पारदर्शी, कर्मचारियों को मिलेगा पूरा मानदेय

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लखनऊ। योगी सरकार (Yogi Government) ने प्रदेश में आउटसोर्सिंग सेवाओं (Outsourcing Services) को अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और जवाबदेह बनाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक (Cabinet Meeting) में मंगलवार को कुल 15 प्रस्तावों को स्वीकृति दी, जिसमें कम्पनीज एक्ट-2013 के सेक्शन-8 के अंतर्गत उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन को मंजूरी देना भी शामिल रहा। यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी होगी, जिसे नान-प्रॉफिटेबल संस्था के रूप में संचालित किया जाएगा। इसके माध्यम से अब आउटसोर्सिंग एजेंसियों का चयन सीधे विभाग नहीं करेंगे, बल्कि निगम जेम पोर्टल के माध्यम से निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से एजेंसी का चयन करेगा। आउटसोर्स कर्मचारियों का चयन तीन वर्ष के लिए किया जाएगा। कर्मचारियों को 16 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय निर्धारित किया गया है। इस निर्णय के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक कर्मचारी को उसका पूरा हक मिले और उसका भविष्य सुरक्षित रहे। यह निर्णय न केवल लाखों युवाओं को बेहतर अवसर देगा, बल्कि प्रदेश में रोजगार और सुशासन का नया मॉडल भी स्थापित करेगा।

क्यों जरूरी था निगम का गठन

प्रदेश के वित्त एवं संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने कैबिनेट (Cabinet) के निर्णयों की जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश के विभिन्न विभागों और संस्थाओं में लंबे समय से आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से बड़ी संख्या में कार्मिक सेवाएं प्रदान कर रहे थे। लेकिन, लगातार यह शिकायतें सामने आ रही थीं कि उन्हें सरकार द्वारा स्वीकृत मानदेय का पूरा भुगतान नहीं मिल रहा। साथ ही ईपीएफ, ईएसआई जैसी अनिवार्य सुविधाओं का नियमित अंशदान भी कई बार एजेंसियों द्वारा नहीं किया जाता था। इन अनियमितताओं को खत्म करने और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए यह निगम गठित किया गया है।

ऐसी होगी नई व्यवस्था

▪️अब आउटसोर्सिंग एजेंसियों का चयन सीधे विभाग नहीं करेंगे, बल्कि निगम जेम पोर्टल के माध्यम से निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से एजेंसी तय करेगा।

▪️कर्मचारियों का मानदेय 16 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह निर्धारित किया गया है।

▪️आउटसोर्स कर्मचारियों से महीने में 26 दिन सेवा ली जा सकेगी।

▪️कर्मचारी तीन वर्षों के लिए अपनी सेवाएं दे सकेंगे

▪️कर्मचारियों का वेतन 1 से 5 तारीख तक सीधे उनके खातों में जाएगा।

▪️ईपीएफ और ईएसआई का अंशदान अब सीधे कर्मचारियों के खाते में जाएगा, पहले यह राशि सर्विस प्रोवाइडर के पास चली जाती थी।

▪️किसी भी प्रकार की अनियमितता पाए जाने पर सेवा तुरंत समाप्त की जा सकेगी।

▪️आउटसोर्सिंग के लिए चयन प्रक्रिया में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार का प्रावधान किया गया है। इससे बेहतर गुणवत्ता वाले और योग्य कार्मिकों की नियुक्ति सुनिश्चित होगी।

सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण का प्रावधान

वित्त मंत्री ने बताया कि नई व्यवस्था में संवैधानिक प्रावधानों के तहत एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस, दिव्यांगजन, भूतपूर्व सैनिक और महिलाओं को नियमानुसार आरक्षण मिलेगा। महिलाओं को मैटरनिटी लीव का भी अधिकार दिया जाएगा। कर्मचारियों की कार्यक्षमता और दक्षता बढ़ाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा, सेवा के दौरान कर्मचारी की मृत्यु होने पर 15 हजार रुपये अंतिम संस्कार सहायता के रूप में दिए जाएंगे।

कानपुर और लखनऊ में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट मॉडल पर संचालित होंगी ई-बसें

नगरीय परिवहन को आधुनिक और व्यवस्थित बनाने की दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। योगी कैबिनेट (Yogi Cabinet) ने जनपद लखनऊ, कानपुर नगर तथा उसके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में ई-बसों को नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (एनसीसी) मॉडल पर संचालित करने का निर्णय लिया है। नगर विकास मंत्री एके शर्मा (AK Sharma) ने बताया कि अभी तक प्रदेश के 15 नगर निगमों में 743 इलेक्ट्रिक बसें चलाई जा रही हैं, जिनमें से 700 बसें ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (जीसीसी) मॉडल पर हैं। इस योजना के अंतर्गत लखनऊ और कानपुर नगर समेत आस-पास के कस्बों में 10-10 रूटों पर 9 मीटर लंबी एसी ई-बसें चलाई जाएंगी। प्रत्येक रूट पर कम से कम 10 बसें अनिवार्य होंगी। कॉन्ट्रैक्ट की अवधि वाणिज्यिक संचालन तिथि से 12 वर्ष की होगी। अनुमान है कि प्रत्येक रूट पर करीब ₹10.30 करोड़ का व्यय आएगा, जिसमें से ₹9.50 करोड़ बसों की खरीद पर और ₹0.80 करोड़ चार्जिंग उपकरणों व अन्य आवश्यक साधनों पर खर्च होंगे। प्रावधान के तहत, बसों का डिजाइन, वित्तपोषण, खरीद, निर्माण, आपूर्ति और अनुरक्षण की जिम्मेदारी निजी ऑपरेटर निभाएंगे। उन्हें 90 दिनों के भीतर प्रोटोटाइप ई-बस उपलब्ध करानी होगी और एक वर्ष के भीतर बस संचालन शुरू करना होगा। सभी किराया एवं गैर-किराया राजस्व का संग्रह निजी ऑपरेटर करेंगे। टैरिफ निर्धारण सरकार द्वारा किया जाएगा, जिसे समय-समय पर संशोधित किया जा सकेगा। साथ ही सरकार परिवहन विभाग और आरटीओ/आरटीए से आवश्यक लाइसेंस और परमिट जारी करेगी। ई-बसों के संचालन के लिए सरकार बिहाइंड-द-मीटर विद्युत अवसंरचना और अपॉर्चुनिटी चार्जिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराएगी। सरकार का मानना है कि इस मॉडल से सरकारी वित्तीय बोझ में कमी आएगी और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा।

योगी कैबिनेट (Yogi Cabinet) ने निर्यात प्रोत्साहन नीति 2025-30 को दी मंजूरी

उत्तर प्रदेश को वैश्विक स्तर पर निर्यात हब बनाने की दिशा में योगी कैबिनेट ने निर्यात प्रोत्साहन नीति 2025-30 को मंजूरी दे दी है। नई नीति में 2020-25 की निर्यात नीति में सुधार करते हुए डिजिटल तकनीकी, अवसंरचना विकास, वित्तीय सहायता, निर्यात ऋण और बीमा, बाजार विस्तार, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण पर विशेष बल दिया गया है। नीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक पंजीकृत निर्यातकों की संख्या में 50 प्रतिशत वृद्धि करना और सभी जनपदों को निर्यात गतिविधियों से जोड़कर क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित करना है। सरकार का मानना है कि इससे प्रदेश का निर्यात न केवल गुणात्मक रूप से बढ़ेगा बल्कि उत्तर प्रदेश को एक सशक्त ग्लोबल एक्सपोर्ट हब के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।

शाहजहांपुर में स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय की स्थापना को स्वीकृति

योगी कैबिनेट (Yogi Cabinet) ने शाहजहांपुर में स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। इसके लिए मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट की शैक्षणिक इकाइयों को उच्चीकृत किया जाएगा। वर्तमान में ट्रस्ट के अंतर्गत 5 संस्थान संचालित हैं—स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज, स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय, श्री दैवी सम्पद ब्रह्मचर्य संस्कृत महाविद्यालय, श्री धर्मानन्द सरस्वती इंटर कॉलेज और श्री शंकर मुमुक्ष विद्यापीठ। विश्वविद्यालय बनने के बाद इनका संचालन विश्वविद्यालय करेगा। जिलाधिकारी शाहजहांपुर की रिपोर्ट के अनुसार ट्रस्ट के पास कुल 21.01 एकड़ भूमि है, जिसमें से लगभग 20 एकड़ जमीन विश्वविद्यालय को मिलेगी। पहले चरण में उच्च शिक्षा विभाग और मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट के बीच एमओयू होगा। इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के तहत औपचारिक कार्यवाही पूरी की जाएगी।

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