मोहित सिंह
लखनऊ।ऐसा कहा ही नहीं बल्कि माना जाता है कि समय ही बलशाली होता है इंसान नहीं ।ये बात इसलिये कही जा रही है कि आज से ठीक पांच साल पहले गुजराती बाबा मोदी ने देश में अपनी जीत का डंका बजाया था जिसकी गूंज विदेशों में भी हुई थी। इतना ही नहीं संसद पहुंचकर मोदी ने उसकी सीढ़ियों पर नतमस्तक होकर अंदर प्रवेश कर पूरी दुनिया में अपनी एक अलग फिजा बना दी थी। इसके बाद देश में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से मोदी के भाषण ने तो देश के लगभग हर एक नागरिक के दिल में अपनी खास जगह बना ली थी। जिससे हर घर मोदी हर जुबान मोदी की बड़ाई करने में जरा भी नहीं चूक रही थी। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार पर हथौड़ा,राम का मंदिर,कश्मीर समस्या के हल होने की चर्चा गली गली,गांव गांव में इस उम्मीद से हो रही थी कि शायद अब वो समय आ गया है कि ये अहम मामले निपट जायेंगे और जैसा मोदी ने चुनाव के दौरान बखान किया था कि भाजपा को सत्ता की बागडोर दें हम एक नया भारत देश के अवाम को देंगे । देश के अवाम ने उनके इस वायदे पर मोदी के हाथ देश को सौंप दिया था।
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जिस तेजी से मोदी ने देश की कमान संभाली थी उतनी ही तेजी से ये तमाम अहम मुद्दे ताश के पत्तों की तरह बिखरते चले गये और तमाम घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं बनकर रह गयीं। नागपुर ने जब इसकी हकीकत जानी तो उसने सांसदों के लिये एक अनूठी पहल कर दी कि गांवों के विकास के लिये उन्हें गोद लेकर विकास किया जाये। बता दें कि इस पर नागपुर ने आदेश भी कर दिया। संघ के इस आदेश के बाद सांसदों ने गांवों को गोद तो ले लिया लेकिन इस काम में उन सबने अपनी खास रुचि नहीं दिखायी। सांसदों ने भूख से तड़पते बच्चे के मुंह में शुद्ध दूध तो क्या पाउडर का दूध भी नहीं पिलाया यानी गांव में विकास के नाम पर सिर्फ कोरी बयानबाजी ही की गयी। गौरतलब हो कि इस बात की जानकारी होने के बाद संसद के कई सत्रों में मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने सांसदों को चेताया भी था लेकिन लगभग 70%सांसदों ने इन दोनों के निर्देश और संघ के आदेश को भी अनसुना कर दिया। जिसका खामियाजा आज 2019 के चुनाव में कई जिलों में देखने को मिल रहा है।अब एक बार फिर समय का चक्र घूमा है मोदी का तिलस्म खत्म होता दिख रहा है।ऐसा कहना या लिखना शायद इसलिये भी अनुचित नहीं होगा कि बीते पांच सालों में तमाम घोषणाएं हुईं जरूर लेकिन लगभग इन सभी योजनाओं पर उतना काम नहीं हो सका जितनी भाजपा सरकार और आरएसएस को उम्मीद थी।
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गौर करने वाली बात ये है कि मोदी के मां गंगा के निश्छल प्रेम पर यानी नमामी गंगे की विशालकाय योजना को भी उसी गंगा में डुबो दिया गया जिसका उद्धार करने का प्रधानमंत्री मोदी ने वायदा किया था।इस काम में भी हिन्दू संस्कृति की दुहाई देने वालों की अहम भूमिका रही। ऐसे ही मोदी सरकार की कई योजनाओं पर उतना काम नहीं हो सका जितना सरकार को उम्मीद थी। सूबे में कुछ हद तक योजनाओं पर काम हुआ लेकिन यहां भी अपनों ने ही पानी फेरने में कसर नहीं छोड़ी। कई योजनाओं पर तो पार्टी के कई सांसदों ने सरकारी तंत्र से भी दूरी बनाये रखी ।हां इतना जरूर हुआ कि चुनाव की आहट होते ही कुछ सांसद सक्रिय हो गये और पार्टी हाईकमान को दिखाने के लिये कुछ योजनाओं का अनावरण कर अखबारों में फोटो जरूर और इतिश्री कर ली। ऐसे सांसदों ने ऐसा क्यों किया इसका उत्तर न संघ के पास है न भाजपा हाईकमान के पास। वहीं पार्टी और संघ के सूत्रों का मानना है कि ऐसे ही कुछ सांसदों और नेताओं ने मोदी की छवि को धूमिल करने में काफी योगदान दिया है। जिसके कारण आज कुछ राज्यों में मोदी का तिलस्म खत्म सा होता दिखायी दे रहा है।