शकुंतला बहादुर

लखनऊ की यादें आज भी संजोकर है रखी, शकुंतला के लिए हिंदी है जीवनशैली

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लखनऊ । हर किसी को अपनी मातृभाषा से लगाव होता है। महिला महाविद्यालय में संस्कृत की पूर्व विभागाध्यक्ष व प्राचार्य रहीं शकुंतला बहादुर के लिए हिंदी केवल भाषा या अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह उनके लिए जीवनशैली है। बता दें कि लखनऊ की शकुंतला बहादुर जो 21 वर्ष से अमेरिका में रह रही हैं मगर उनके संप्रेषण की भाषा आज भी हिंदी ही है।

शकुंतला बहादुर जो भी व्यक्ति हिंदी जानता है,  उससे हिंदी भाषा में वार्तालाप करना करतीं हैं पसंद 

शकुंतला बहादुर को जो भी व्यक्ति हिंदी जानता है, वे उससे हिंदी के अलावा किसी और भाषा में वार्तालाप करना पसंद नहीं करतीं। लखनऊ में जन्मीं और यहीं के महिला महाविद्यालय में संस्कृत की विभागाध्यक्ष व प्राचार्य रहीं शकुंतला बहादुर की शिष्याओं में लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. रूपरेखा वर्मा जैसे नाम शामिल हैं।

जन्म से लेकर 65 वर्ष की आयु तक लखनऊ में रहीं शकुंतला बहादुर अब दो दशक से अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में अपने बेटे और बेटी के साथ रह रही हैं। वहीं रहकर वे हिंदी की सेवा कर रही हैं। हिंदी में उनके दो काव्य संग्रहों के अलावा लेख व निबंध संग्रह व संस्कृत में भी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

शकुंतला बहादुर जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फेलोशिप पर वर्ष 1962-64 तक दो वर्ष वे जर्मनी में भी रहीं

शकुंतला बहादुर ने बताया कि उन्होंने लखनऊ में महिला महाविद्यालय से बीए और लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए किया। मेरिट लिस्ट में नाम केसाथ उन्हें सरकार से छात्रवृत्ति मिलती रही। जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फेलोशिप पर वर्ष 1962-64 तक दो वर्ष वे जर्मनी में भी रहीं।

ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में ही सप्ताह में दो दिन संस्कृत व हिंदी का अध्यापन किया

वहां अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गुरु प्रो. पॉल थीमे के मार्गदर्शन में वैदिक साहित्य पर शोधकार्य किया। इस दौरान वहीं ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में ही सप्ताह में दो दिन संस्कृत व हिंदी का अध्यापन किया। इसके अलावा यूरोप में पेरिस व बर्लिन की साहित्यिक गोष्ठियों में भी प्रतिभागिता करती रहीं।

वे बताती हैं कि उनकी शिष्याओं में कई लखनऊ विश्वविद्यालय व अन्य कॉलेजों में विभागाध्यक्ष रहीं तो कई प्रशासनिक सेवाओं व अन्य ऊंचे पदों तक पहुंचीं। कहती हैं कि लखनऊ से दूर हूं, लेकिन वहां की यादें आज भी मन में संजोकर रखी हैं।

प्रकाशित कृतियां

मृगतृष्णा, बिखरी पंखुरियां (काव्य संग्रह), प्रवासिनी केबोल काव्य संग्रह में कविताएं, सुधियों की लहरें (संस्मरण एवं लेख), विविधा (रोचक ललित निबंध), आंचल की छांव में (मां के संस्मरण), संस्कृत में वैदिक सूक्त : कस्मै देवाय हविषा विधेम, नासदीय सूक्त और विदेशेषु देववाणी संस्कृतम्।

ये मिले सम्मान व पुरस्कार

अंतरराष्ट्रीय मंचीय कविता सम्मेलन, लखनऊ में राज्यपाल द्वारा सम्मान। (2014)
हिंदी दिवस पर कौंसिल जनरल, कौंसलावास सैनफ्रांसिस्को द्वारा सम्मानित। (2018)
अटल पत्रकारिता सम्मान (2018)
मॉरिशस हिंदी सभा की ओर से यात्रा संस्मरण पर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार (2019)

शकुंतला बहादुर की ये हैं उपलब्धियां

आकाशवाणी और दूरदर्शन (लखनऊ) में 1992 तक वार्ताओं, कविताओं व गीतों का प्रसारण।
अमेरिका की प्रमुख हिंदी व संस्कृत से संबद्ध संस्था विश्व हिंदी ज्योति केअलावा संस्कृत भारती के कार्यक्रमों में प्रतिभाग।
अमेरिका और भारत की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेखों व कविताओं का प्रकाशन।

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