RBI की रेपो दर

आम लोगों को झटका : RBI की रेपो दर यथावत, GDP पर जताया ये अनुमान

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया है। रेपो दर 5.15 फीसदी पर बरकरार रहेगी। इस कारण कर्ज लेने वालों को कोई राहत नहीं मिली है। इससे पहले पांच दिसंबर को भी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया था।

नौ सालों में पहली बार रेपो रेट इतना कम, मार्च, 2010 के बाद यह रेपो रेट का सबसे निचला स्तर

बता दें कि केंद्रीय बैंक खुदरा महंगाई को ध्यान में रखते हुए प्रमुख नीतिगत दरों पर फैसला लेता है। 2019 में रेपो दर में कुल 135 आधार अंकों की कटौती हुई थी। नौ सालों में पहली बार रेपो रेट इतना कम है। मार्च, 2010 के बाद यह रेपो रेट का सबसे निचला स्तर है। वहीं, रिवर्स रेपो रेट 4.90 फीसदी पर बरकरार है। सीआरआर चार फीसदी पर है, एसएलआर 18.25 फीसदी और बैंक रेट 5.40 फीसदी पर। रिजर्व बैंक ने बताया कि मौद्रिक नीति समिति के सभी छह सदस्यों ने रेपो दर यथावत रखने का पक्ष लिया।

वित्त वर्ष 2020-21 में देश की जीडीपी ग्रोथ छह फीसदी रहेगी

इसके साथ ही बैंक का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में देश की जीडीपी ग्रोथ छह फीसदी रहेगी। वहीं, आगामी वित्त वर्ष की पहले छह महीने में वृद्धि दर 5.5 फीसदी से छह फीसदी रहने का अनुमान लगया है। जबकि, वित्त की तीसरी तिमाही में वृद्धि दर 6.2 फीसदी रहने का अनुमान है।

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रियल एस्टेट सेक्टर पर किया बड़ा एलान

इसके साथ ही आरबीआई ने कमर्शियल रियल्टी लोन लेने वालों के लिए बड़ा फैसला लिया है। अब उचित कारणों से देरी पर लोन डाउनग्रेड नहीं होगा। यानी अगर कोई डेवल्पर किसी वजह से कर्ज समय पर नहीं चुका पाता है, तो उसे एक साल तक एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा। इससे रियल्टी सेक्टर को काफी राहत मिली है।

महंगाई पर कही ये बात

रिजर्व बैंक ने गुरुवार को चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया है। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक ने कहा है कि आने वाले समय में मुद्रास्फीति पर खाद्य मुद्रास्फीति, कच्चे तेल की कीमतों और सेवाओं की लागत जैसे कई कारकों का असर होगा। चौथी तिमाही में खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी अधिक स्पष्ट दिखेगी। उसने कहा कि हालिया महीनों में सेवा लागत में वृद्धि देखने को मिली है। खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 2020-21 की पहली दो तिमाहियों में 5.4-5 फीसदी और 2020-21 की तीसरी तिमाही में 3.2 फीसदी किया है।

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आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक चार फरवरी को शुरू हुई थी। इसमें रेपो रेट पर कोई फैसला करते समय खुदरा महंगाई को ध्यान में रखा जाता है, जो पांच फीसदी से ज्यादा पहुंच चुकी है।

पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि साल 2019 में रेपो रेट के रिकॉर्ड पांच बार लगातार कटौती करने के बाद रिजर्व बैंक नए वित्त वर्ष की शुरुआत सख्त फैसलों के साथ कर सकता है। विश्लेषकों को अनुमान था कि 2020-21 में राजकोषीय घाटा बढ़ने के दबाव के कारण आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है। सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.5 फीसदी रखा है।

जानें क्या है रेपो रेट?

रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है। अगर रेपो रेट में कटौती का फायदा बैंक आप तक पहुंचाते हैं तो का आम लोगों को इससे फायदा होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आरबीआई द्वारा रेपो रेट घटाने से बैंकों पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव रहता है। इससे लोगों को लोन सस्ते में मिलता है। हालांकि बैंक इसे कब तक और कितना कम करेंगे ये उन पर निर्भर करता है।

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