लेफ़्टिनेंट कमांडर अदिति

जानें लेफ़्टिनेंट कमांडर अदिति की कहानी, पिता का साया उठा तो मां ने निभाया ऐसा फर्ज

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भिवानी । नेवी में लेफ़्टिनेंट कमांडर अदिति चौधरी ने कहा कि ऐसी मां सबको मिले। उन्होंने ने बताया कि मेरी मां अध्यापिका हैं और उन्होंने पिता से भी बढ़कर भूमिका निभाई है। उन्हीं की बदौलत आज मैं नेवी में लेफ़्टिनेंट कमांडर के पद पर हूं।

मेरी मां पुरुषों की ड्रेस में स्कूटी पर भिवानी रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी मिलती थी

अदिति ने बताया कि मुझे आज भी याद है जब मैं कुरुक्षेत्र और दिल्ली में पढ़ती थी। तो मैं जब रेलगाड़ी में देर रात घर आती थी तो मेरी मां पुरुषों की ड्रेस में स्कूटी पर भिवानी रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी मिलती थी। जब मैं इसकी वजह पूछती थी तो मां कहती बेटा रात का समय है और इसके लिए पुरुष की ड्रेस में थोड़ा सेफ रहता है। अदिति ने बताया कि वास्तव में मेरी मां बहादुर हैं। यह बात सेक्टर 23 निवासी अदिति चौधरी ने कही। वह फिलहाल मुंबई के कोलाबा में तैनात हैं।

मां ने मुझे बेटों की तरह पाला और इतना ही नहीं हमेशा आगे बढऩे का हौसला दिया

अदिति ने कहा, मां ने मुझे बेटों की तरह पाला और इतना ही नहीं हमेशा आगे बढऩे का हौसला दिया। मैं जब कोई चार साल की थी, मेरे पिता बीआर चौधरी का बीमारी के कारण निधन हो गया। मगर मेरी मां ने हिम्मत के साथ हमें पिता और मां दोनों का प्यार ही नहीं जीवन में कामयाब होने के लिए पूरा सहारा भी दिया। मैं तो यह कहूंगी कि वास्तव में मेरी मां हिम्मतवाली हैं उनको मैं सैल्यूट करती हूं।

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सुदेश चौधरी कहती हैं कि मुझे बेटी पर  है गर्व

वहीं मां सुदेश चौधरी कहती हैं कि मुझे बेटी पर गर्व है। बेटा पुलकित आर्मेनिया (यूरोप) में एमबीबीएस कर रहा है। सुदेश चौधरी ने बताया कि पति की मौत के बाद मेरे सामने पहाड़ सी जिंदगी थी, लेकिन बच्चों को कामयाब बनाने का सपना भी था। इसके बाद भगवान ने हिम्मत दी और इस पुरुष प्रधान समाज में सब कुछ अकेले दम पर किया। बेटी को पढ़ाया-लिखाया। उसकी सुरक्षा का जिम्मा भी संभाला और संस्कारी भी बनाया। जब वह कुरुक्षेत्र में एमटैक करती थी और महीने में एक दो बार रेलगाड़ी से घर देर रात आती तो मैं खुद अपनी स्कूटी पर उसे लेने जाती थी।

सुदेश चौधरी बताती हैं कि अभी बीते नौ नवंबर को बेटी अदिति की शादी की है। उनके दामाद सुरेंद्र महला भी नेवी में लेफ़्टिनेंट कमांडर हैं और फिलहाल विशाखापट्टनम में हैं। शादी में फेरों पर पंडित को भी कह दिया था कन्यादान नहीं उपहार कह सकते हैं। भगवान ऐसी बेटी सबको दें।

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