tractor parade

गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड की जिद

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

भारत के लिए इस बार का गणतंत्र दिवस बेहद खास है। एक ओर जहां देश को पाकिस्तान और चीन से चुनौती मिल रही है वहीं दो माह से ज्यादा समय से आंदोलित किसान भी परेड निकालना चाहते हैं। वे लाल बहादुर शास्त्री के नारे जय जवान-जय किसान की याद दिला रहे हैं। उनका कहना है कि जब देश के जवान परेड निकाल सकते हैं तो किसान ट्रैक्टर परेड क्यों नहीं निकाल सकते? उनके तर्कों में दम है और सरकार भी किसानों का दिल नहीं दुखाना चाहती। उसने किसानों की ट्रैक्टर परेड की इजाजत भी दे दी है, लेकिन जिस तरह दिल्ली के सिंघु , टीकरी और गाजीपुर बार्डर पर ट्रैक्टरों का जमावड़ा हो रहा है, वह बहुत सामान्य स्थिति नहीं है। वैसे सरकार को जिस तरह के खुफिया इनपुट मिल रहे हैं।

आतंकी साजिश की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, उसे बहुत हलके में नहीं लिया जा सकता। उत्तर प्रदेश में एक्टीवेट कराए गए मोबाइल सिमों का चीन से ह्वाट्स अप के लिए इस्तेमाल होना और 6 दिन में पाकिस्तान में 308 ट्विटर हैंडल का बन जाना यह साबित करता है कि चीन और पाकिस्तान की मंशा ठीक नहीं है। इस गणतंत्र दिवस पर भारत में उमंग में खलल डालने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है। सीआईएसएफ मुख्यालय को एक आतंकी संगठन का धमकी भरा फोन आना भी यह साबित करता है कि किसानों की ट्रैक्टर परेड की आड़ लेकर आतंकवादी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने और दिल्ली को दहलाने की साजिश कर सकते हैं।

गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले में चीन की सेना के कमांडरों की भारतीय सैन्य कमांडरों से वार्ता करना और पूर्वी लद्दाख के टकराव वाले क्षेत्रों से अपनी-अपनी सेना हटाने पर चर्चा करना और उसके दूसरे दिन ही सिक्किम में भारतीय सैनिकों के साथ हुई चीनी सैनिकों की झड़प के साफ संकेत है कि चीन की कथनी और करनी अलग-अलग है। उसकी किसी भी बात पर यकीन करने से पहले सौ बार सोच लेना जाना चाहिए। किसानों को ट्रैक्टर परेड की अनुमति मिल चुकी है लेकिन उन्हें विचार करना होगा कि उनका परेड कहीं इस देश की राजधानी को गहरे संकट में तो नहीं डाल देगा?

हालांकि दिल्ली पुलिस ने किसानों को सिंघु बार्डर, टीकरी बाॅर्डर और गाजीपुर बाॅर्डर के जिन तीन रूटों पर ट्रैक्टश्र परेड निकालने की अनुमति दी है, कुछ किसान नेताओं को उस पर भी ऐतराज है। वे रिंग रोड पर परेड निकालना चाहते हैं। किसान अपनी जिद पर अड़े हैं कि वे पुलिस द्वारा दिए गए मार्ग पर नहीं, बल्कि अपने मार्ग पर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। किसानों से कहा गया है कि जब दिल्ली में परेड समाप्त हो जाए तब किसानों की ट्रैक्टर परेड निकलेगी ।

किसानों का तर्क है कि 12 बजे के बाद ट्रैक्टर परेड निकालने का औचित्य ही क्या है? आउटर रिंग रोड 47 किलोमीटर लंबी है। यह रोड नई दिल्ली, नॉर्थ दिल्ली, नॉर्थ वेस्ट दिल्ली, वेस्ट दिल्ली, साउथ वेस्ट दिल्ली, साउथ दिल्ली, साउथ ईस्ट दिल्ली और सेंट्रल दिल्ली से होकर गुजरती है। इसके 14 जंक्शन दिल्ली में आते हैं। इनमें एनएच-8 सुबुर्तो पार्क, वसंत कुंज, मुनिरका, आरके पुरम, मालवीय नगर और पंचशील कॉलोनी भी आती है। नेहरू प्लेस, ओखला, आईएसबीटी (फ्लाईओवर), मजनूं का टीला, माजरा बुराड़ी, आजापुर जहांगीरपुर, रोहिणी, पीरागढ़ी , सुंदरविहार, विकास पुरी, जनकपुरी और कैंट दिल्ली की व्यस्त सड़कें भी इसके दायरे में आती हैं। आउटर रिंगरोड पर ट्रैक्टर परेड निकालने का मतलब है कि पूरा दिल्ली जाम में फंस जाएगी।

पुलिस और किसान नेताओं के बीच सहमति बनी है कि ट्रैटर परेड जहां से चलेगी फिर वहीं पहुंच जाएगी जबकि किसान पहले दिन से दिल्ली में धुसने और दिल्ली को घेरने की नीयत से आए हैं। अगर वे धरना स्थल तक नहीं लौटे और उन्होंने आउटर रिंग रोड पर ही डेरा डाल दिया तो क्या होगा? दिल्ली के लोगों का जीना और कामकाज कर पाना दूभर हो जाएगा। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि पुलिस ने परेड के लिए जो रूट सुझाया है, उस पर परेड करना किसानों के साथ धोखा होगा। एक किसान नेता तो यहां तक कह रहे हैं कि किसानों को ट्रैक्टर रैली की इजाजत जिस तरह दी गई है, वह सही नहीं है।

हम ओल्ड रिंग रोड पर रैली निकालना चाहते हैं, लेकिन हमें शर्तों के साथ जिन इलाकों से गुजरने की परमिशन मिली है, उनका ज्यादातर हिस्सा हरियाणा में आता है। किसान नेताओं का दावा है कि ट्रैक्टर परेड में 2 लाख ट्रैक्टर हिस्सा लेंगे। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी समेत दूसरे राज्यों से भी किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं। कुछ किसानों ने तो ट्रैटर परेड में शामिल होने के लिए नए ट्रैक्टर खरीदे हैं। किसानों का मांग है कि तीनो कृषि कानून समाप्त किए जाएं और उनकी इस मुहिम को कुछ खालिस्तानियों का भी समर्थन मिल रहा है। किसानों के आंदोलन में भिंडरावाला संबंधी पुस्तिकाओं का बांटा जाना और खालिस्तीनी झंडों का फहरना यह बताता है कि किसान आंदोलन के बहाने बड़ी साजिश रची जा रही है।

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आंदोलनकारी किसानों के नेता कह रहे हैं कि वे एक ट्रैक्टर पर पांच से ज्यादा लोगों को बैठने की अनुमति नहीं देगे। पुलिस ने उन्हें एक ट्रैक्टर पर केवल तीन लोगों के बैठने की ही अनुमति दी है जबकि हालात यह है कि पंजाब से जो ट्रैक्टर आ रहे हैं, उसमें 30 फीट लंबी विशेष ट्रालियां तैयार करवाई गई हैं। मतलब इतनी लंबी ट्रैक्टर ट्राली और उसमें भी दो-तीन ट्रालियां जोड़ने वाले एक ट्रैक्टर पर केवल तीन यात्री होने की पुलिसिया अनुमति से कितना संतुष्ट होंगे। यह भी देखने-समझने वाली बात होगी। लोकतंत्र में विरोध अच्छी बात है और गणतंत्र दिवस पर परेड और बात है।

गणतंत्र दिवस की परेड में सेना के कुछ खास करतबाज जवान शामिल होते हैं लेकिन किसानों की परेड के साथ ऐसी बात नहीं है। किसानों को परेड करनी चाहिए लेकिन यह परेड का अनुकूल समय नहीं है। किसानों ने अपनी ट्राॅलियों पर जिस तरह कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनियां निकालने की घोषणा कर रखी है, वह गणतंत्र दिवस मनाने के उल्लास की अभिव्यक्ति तो नहीं है। इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। हर साल पंद्रह अगस्त, रक्षा बंधन, होली-दीपावली पर, नये साल पर आतंकी खतरे बढ़ जाते हैं। पुलिस-प्रशासन और सेना पर दबाव बढ़ जाता है। यह सच है कि राष्ट्रीय महत्व के अवसरों पर दिल्ली सुरक्षा छावनी में तब्दील हो जाती है। नभ-थल, जल तीनों ही स्तर पर दिल्ली की सुरक्षा की जाती है।

इस बार भी कुछ वैसी ही तैयारी है लेकिन किसानों की परेड से सुरक्षा बलों को विशेष मशक्कत करनी पड़ेगी। हाल ही में कश्मीर में जिस तरह भूमगत सुरंगे मिली हैं और जिस तरह आतंकवादी पकड़े जा रहे हैं, उसे देखते हुए भी खतरा बड़ा है। उसे नजरन्दाज नहीं किया जा सकता। यह सच है कि किसानों ने सरकार को शांतिपूर्वक आंदोलन का भरोसा दिया है लेकिन जरा सी भी शरारत माहौल बिगाड़ सकती है और किसानों के साथ कुछ भी अप्रिय होता है तो यह देश खुद को माफ नहीं कर सकता। जिद अपनी जगह है लेकिन देश किसी की भी जिद से बड़ा है। किसानों को देशहित पर जरूर विचार करना चाहिए।

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