गुरु नानक जी ने पिता के दिए 20 रूपये से साधुओं को भोजन कराकर बताया “सच्चा सौदा”

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गुरुनानक जी की 550 वीं जयंती जन्मदिन पर पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है। श्री गुरु नानक देव जी ने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच की बुराई को खत्म करने और भाईचारक सांझ के प्रतीक के रूप में सबसे पहले लंगर की शुरुआत की थी। गुरुनानक जी का जन्म 1469 में पाकिस्तान के श्री ननकाना साहिब में हुआ था। हर वर्ष की कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरुनानक जी का जन्मोत्सव प्रकाश पर्व के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

श्री ननकाणा साहिब में प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब भी है। इसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। गुरू नानक देव जी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। गुरु नानक देव जी की बहन नानकी थीं। नानक देव जी बचपन से ही धीर-गंभीर स्वभाव के थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही रूढ़िवादी सोच का विरोध किया।

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पिता के दिए हुए 20 से कराया था साधुओं को भोजन

गुरु नानक जी को एक बार उनके पिता ने 20 रुपये देकर सामान लेने बाजार भेजा। नानक जी ने उन रुपयों से भूखे साधुओं को भोजन करा दिया। लौटकर उन्होंने पिता जी से कहा कि वे खरा सौदा कर आए हैं।

गुरु नानक देव जी की पत्नी का नाम सुल्लखणी था, वह बटाला की रहने वाली थीं। उनके दो बेटे थे, एक बेटे का नाम श्रीचंद और दूसरे बेटे का नाम लख्मीदास था। नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वे सिखों के प्रथम गुरू हैं। वे अंधविश्वास और आडंबरों के सख्त विरोधी थे।

नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, कवि, गृहस्थ, योगी और देशभक्त थे। नानक जी जात-पात के खिलाफ थे और समाज से इस बुराई को खत्म करने के लिए लंगर की शुरुआत की थी। इसमें अमीर-गरीब, छोटे-बड़े और सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।

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नानक देव जी ने ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार प्रसार किया। वे मूर्ति पूजा के खिलाफ थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान है, वही सत्य है। उन्होंने समाज को जागरूक करने के लिए चार उदासियां (यात्राएं) की थीं। उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों का भ्रमण किया।

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