लालकृष्ण आडवाणी

पूर्व सीएम बोले- लालकृष्ण आडवाणी की आंखों में आंसू देख कर बहुत हुई पीड़ा

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नई दिल्ली। राजनीति में नए चेहरों को आना चाहिए, लेकिन पुराने चेहरों के लिए भी सम्मानजनक रास्ता तय होना जरूरी है। जहां तक टिकट का सवाल है, तो यह तय करना नेतृत्व का फैसला है। यह विचार हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने एक इन्टरव्यू में व्यक्त किए।

लालकृष्ण आडवाणी को चुनाव न लड़ाने के लिए  बेहतर रास्ता अपना सकती थी पार्टी

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के टिकट कटने के सवाल पर कहा कि उन्हें चुनाव न लड़ाने के लिए पार्टी बेहतर रास्ता अपना सकती थी। शांत कुमार ने कहा कि टिकट की घोषणा के बाद मैं उनसे मिलने गया था। जब उनकी आंखों में आंसू देखा तो यह दृश्य मुझे बहुत पीड़ादायक लगा।

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शांता कुमार बोले- सेवा में उम्र ही नहीं होती मानक, 80 साल के वीर कुंवरसिंह हाथ कटने के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लेकर  हो गए अमर

शांताकुमार ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी जी वैसे भी कम बोलते हैं। मैं उनसे मिला तो पर बोले कुछ नहीं। मगर उनकी आंखों में आंसू थे, जो बहुत कुछ कह रहे थे। उन्होंने कहा कि जब देश में मुस्लिम आक्रांता, अंग्रेज आए तो उनके सेवक अधिकतर 25 से 35 साल के युवा थे। उस दौर में भी 80 साल के वीर कुंवरसिंह हाथ कटने के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लेकर अमर हो गए। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सेवा में उम्र ही मानक नहीं होती।

इस बार हमें उपलब्धियों की बदौलत दोहराना है पुराना प्रदर्शन 

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम शांता कुमार की ईमानदारी के उनके विरोधी भी कायल हैं। शांता कुमार ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हटाना बड़ा मुद्दा था। लोगों को नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और विकास का गुजरात मॉडल पसंद आया, लेकिन इस बार हमें उपलब्धियों की बदौलत पुराना प्रदर्शन दोहराना है। उन्होंने बताया कि दर्जनों योजनाएं ऐसी हैं जिसका सीधा लाभ पहली बार गरीब के दरवाजे तक मजबूती से पहुंचा है।

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग हैं, जिन्हें नहीं मिलता भरपेट खाना

पहली बार सरकार ने विकास को सामाजिक न्याय से जोड़ा है। हालांकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग हैं, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता। इसके बाद भी सरकार ने विषमता कम करने में बेहतरीन काम किया है। शांता कुमार ने कहा कि राजनीति का तेजी से अवमूल्यन हुआ है। उन्होंने कहा कि हालात यह हैं कि नेताओं की मंडी सजी हुई है। टिकट ही निष्ठा का पैमाना बन गया है। जब राजनीति इस स्तर तक पहुंच जाए तो मन में सवाल उठता है कि क्या शहीदों के सपनों का भारत ऐसा ही बनेगा?

नब्बे के दशक तक तो सियासत में सब ठीक था, इसके बाद लोकसभा, शोकसभा और शोरसभा बन गई

शांता ​कुमार ने कहा कि नब्बे के दशक तक तो सियासत में सब ठीक था। इसके बाद लोकसभा, शोकसभा और शोरसभा बन गई। उन्होंने कहा कि एक दिन मैंने लालकृष्ण आडवाणी जी को दर्शक गैलरी की ओर दिखाया, जहां कार्यवाही देखने आया एक छात्र सदन में शोर-शराबे के कारण हमें देखकर मुस्कुरा रहा था। इसके बाद हम दोनों सदन से बाहर निकल आए।

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