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बीजेपी में पक रही नाराजगी की खिचड़ी, कहीं चाणक्य की चाल पर न लगा दे ब्रेक

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लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 में किस पार्टी का पल्ला भारी रहेगा? मोदी सत्ता में दुबारा लौटेंगे या नहीं, ऐसी तमाम बातें अब लोगों के बीच चर्चा तेजी से जारी है। इसी बीच मोदी सरकार अपने पांच साल कार्यकाल की उपलब्धियां बखान कर रही हैं तो कुछ लोग मोदी के वापस न लौटने का दम्भ भर रही हैंं।

लोकसभा चुनाव 2014 की अपेक्षा उत्तर प्रदेश में बीजेपी गणित थोड़ी हुई गड़बड़

बता दें कि सत्तापक्ष और विपक्ष में शतरंज का खेल जारी है। हर एक दल का दिग्गज नेता अपनी बिसात बिछाने में लगा है। भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह 2014 के बाद एक बार फिर अपनी साम दाम दण्ड भेद की गोटियां बिछा सत्ता में वापसी की कोशिश में लगे हुए हैं। पार्टी के दिग्गज भी ये जानते हैं कि शाह जो भी खेल खेलते हैं वो पार्टी हित के साथ-साथ आरएसएस के हित में होता है। इसलिये वह अपनी हर चाल में अभी तक कामयाब होते रहे हैं, लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश में कुछ अलग तस्वीर दिखायी दे रही हैं। ये तस्वीर किसी हद तक सही प्रतीत हो रही है कि 2014 की अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी या कुछ यूं कह लीजिये कि मोदी के क्रेज कम हुआ है। इस बात से संघ के कई वरिष्ठ भी इत्तेफाक रखते हैं कि फिलवक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी की गणित थोड़ी गड़बड़ायी हुई सी प्रतीत हो रही है।

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एक तरफ प्रियंका-राहुल दहाड़ तो दूसरी ओर बुआ-भतीजा मिलकर मोदी को दे रहें हैं चुनौती

बीजेपी हाईकमान भी लगभग इस बात से वाकिफ हो चुका है कि इस चुनाव में पार्टी को धक्का लग सकता है। कुछ भाजपा नेता दबी जुबान से यह भी कहना है कि पार्टी चारों ओर से घिर चुकी है। एक तरफ प्रियंका और राहुल दहाड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ बुआ भतीजा मिलकर मोदी को चुनौती देने में लगे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि वैसे तो बीजेपी मोदी को वापस लाने के लिये कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रहे हैं, लेकिन उन्हें भीतर ही भीतर कुछ कुछ डर भी सता रहा है। भाजपा के कुछ नेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी हाईकमान ने जिन सीटों पर चेहरों को बदला है उन चेहरों पर पार्टी के खिलाफ उभरी टीस काफी हद तक भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है।

पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी में सीटें कम हुईं तो खामियाजा योगी के सिपाहसालारों को पड़ सकता है भुगतना

बता दें कि उत्तर भारत के कई राज्यों में खासकर उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में अंदरूनी तौर पर नाराजगी की खिचड़ी पक रही है। जो आने वाले वक्त में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है। दिल्ली के गलियारों में तो भाजपा के पुरोधा माने जाने वाले आडवाणी चहेतों में घोर निराशा व्याप्त है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली में भाजपा और आरएसएस के गलियारों में भी इस बात की चर्चा है कि अगर उत्तर प्रदेश खासकर पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सीटें कम हुईं तो ये बात बिलकुल साफ है कि इसका खामियाजा योगी और उनके सिपाहसालारों को भुगतना पड़ सकता है। ये तो शायद संघ से जुड़े सभी लोग और उसके इर्द—गिर्द रहे लोग अच्छी तरह से जान चुके हैं कि अब आरएसएस पुराना नहीं रहा,बल्कि इसने नया स्वरूप अंगीकार कर लिया है।

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लोकसभा चुनाव 2019 में संघ का टारगेट हुआ फेल तो योगी की संघ की ज्यूरी के सामने पेशी तय

संघ के प्रचारक और विस्तारक साइकिल और स्कूटर छोड़कर लग्जरी गाड़ियों पर दिखने लगे हैं। बता दें कि संघ का नागपुर किला जो भी फैसला करता है खासकर किसी एक शख्सियत को लेकर तो उससे बाकायदा सवाल—जवाब करने के बाद अपना फैसला सुनाता है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में संघ का टारगेट पूरा नहीं हुआ तो योगी संघ की ज्यूरी के सामने होंगे और सूबे में पार्टी के पिछड़ने यानि सीट कम होने को लेकर उनसे सवालात किये जाएंगे, जिसमें शायद वो निरउत्तर हो जाएं और उनको सूबे की सबसे बड़ी गद्दी को छोड़ना पड़े। ये कहना शायद अनुचित न होगा कि भाजपा खासकर संघ देश की सत्ता से हटना नहीं चाहता। इसलिये वह अब जातिगत आधार को लेकर चल रहा है।

पर्दे के पीछे से नहीं बल्कि राजनीति के दंगल में कूदा संघ 

बता दें कि संघ अब पर्दे के पीछे से नहीं बल्कि राजनीति के दंगल में कूद चुका है बल्कि कुछ यूं कह लीजिये कि उसने अपने एक धड़े भाजपा से 2014 में देश की लगभग सभी छोटी बड़ी पार्टियों को धरातल की गहराई नपवा दी थी। बताते चलें कि संघ के नागपुर किले को इस बार एक डर सा सता रहा है कि कहीं उसकी 94 साल की तपस्या व्यर्थ न हो जाये। संघ सूत्रों के अनुसार उसकी इंटरनल इंटेलीजेंस की रिपोर्ट में ये बात सामने आ चुकी है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान और बिहार में उसके राजनीतिक धड़े यानी बीजेपी  को इस चुनाव में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

संघ के अधिकारी पूर्वांचल और पश्चिमी यूपी की हर दिन की रिपोर्ट भेज रहे हैं नागपुर हेडक्वार्टर

सूत्रों का मानना है कि 2014 की अपेक्षा मोदी युग की लालिमा भी फीकी सी पड़ती नजर आ रही है। बता दें कि इस रिपोर्ट के बाद ही संघ ने अपने दिग्गजों को संघ के बिछड़े स्वंयसेवकों को वापस लाने के लिये लगा दिया है। बिहार और झारखण्ड में वनवासी कल्याण आश्रम में कार्य करने वाले स्वंयसेवकों को भी लगा दिया गया है। ये संघ के अधिकारी पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना डेरा लगा चुके हैं और वे यहां हर एक दिन की अपनी रिपोर्ट नागपुर हेडक्वार्टर भेज रहे हैं। बता दें कि संघ का सिर्फ अब यही उ्देश्य है येन केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना ।

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