gadgets

गैजेट्स के प्रति आकर्षण पिछले कुछ सालों में हुआ कम

1703 0

चंद्रभूषण

गैजेट्स (gadgets) के प्रति आकर्षण पिछले कुछ सालों में कम हुआ है। ऐसे लोग आज भी हैं जो किसी मित्र को अपने दो जेनरेशन पुराने आईफोन से ललचाने के लिए पचीस-पचास किलोमीटर दूर चले जाते हैं। लेकिन लेटेस्ट चीजें खरीदने के लिए अपनी किडनी बेच देने का इरादा जाहिर करने वाली जो छटपटाहट लोगों में कुछ साल पहले दिखती थी, अभी काफी कम नजर आती है। या तो लोगबाग खरीदारी से छक गए हैं, या नई चीजें आम दायरे में आनी बंद हो चुकी हैं।

दिल्ली-एनसीआर के परिचित पुलिसकर्मी पूछने पर बताते हैं कि इस इलाके में मच्योरिटी के लेवल तक पहुंचे ज्यादातर चोर-उचक्कों ने अपना काम मोबाइल चुराने से शुरू किया था। सदी के शुरुआती आठ-दस साल इस मामले में आदर्श थे। लोग हर साल फोन बदलते थे और छह महीने में वह चोरी हो जाए तो चोर को धन्यवाद देते थे, लेकिन यह किस्सा पुराना हुआ। बाजार में चीनी फोनों का बोलबाला होते ही चोरों ने यह लाइन छोड़ दी।

चीजों के प्रति चरम आकर्षण के दो दौर मेरे देखे हुए हैं। पहले का संबंध राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से है। 1984 में इलाहाबाद जाने से पहले मैंने टीवी एक-दो बार झटके में ही देखा था। चित्रहार और इतवार का सिनेमा। लेकिन पांच साल बीतते न बीतते यह शादियों की जरूरी मांग बन गया। विनोदी स्वभाव के अपने एक सुहृद को मैंने बेटे की शादी में टीवी के लिए गिड़गिड़ाते देखा। उसके बाद गुजरे तीस वर्षों में उनके किसी भी मजाक पर मुझे हंसी नहीं आई।

उर्मिला मातोंडकर बनीं शिवसैनिक, उद्धव ठाकरे ने दिलाई पार्टी की सदस्यता

गांव के इतिहास में सबसे ज्यादा दहेज वसूलने का रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में उन्होंने लड़की वालों से पूरी रकम नकद गिना ली थी, लेकिन विवाह संपन्न होते ही उन्हें लगा कि टीवी नहीं लिया तो शादी किस काम की। नतीजा यह कि समधी के सामने झोली फैला दी। वे एक समृद्ध, नौकरीपेशा किसान थे। चाहते तो टीवी अपनी टेंट से भी खरीद सकते थे। लेकिन कुछ खरीदने के लिए बैंक जाने का कलेजा तब कम लोगों के पास हुआ करता था।

दूसरे दौर का जिक्र फोन के हल्ले में आ चुका है। जब बैंकों के कर्जे सस्ते हुए, मामूली चीजों की खरीद में भी ईएमआई का चलन चल पड़ा और अमेरिका-यूरोप में बनने वाले सामान अगले ही दिन आम हिंदुस्तानी का दरवाजा खटखटाने लगे। इंसान का जो अहं उसे बाजार का गुलाम बनने से रोकता था, अचानक उसके सामने सनकी घोषित हो जाने का खतरा पैदा करने लगा।

फ्रायड की भाषा में कहें तो उसका पशु व्यक्तित्व ‘इड’ उसके ‘इगो’ पर छा गया। ऐसे में उसकी विचारधारा और आदर्शों का, ‘सुपरइगो’ क्या हुआ? व्यक्तिगत स्वार्थ और सामुदायिक घृणा पर आधारित राजनीति का दबदबा इसका जाहिर पहलू है। पोशीदा पहलुओं पर जाऊं तो मुझे अपने उन साथियों के बारे में बात करनी होगी, जो आकांक्षा और आदर्श का संतुलन साधने में जरा सा चूक गए। फिर या तो वे भ्रष्ट सिस्टम के अंग बने, या उनके पंखे से लटकने की खबर आई। इस तलवार की धार अब कुंद पड़ रही है, गनीमत है।

Related Post

जोंटी रोड्स

जोंटी रोड्स ने गंगा में लगाई डुबकी, इस कैप्शन के साथ शेयर की फोटो

Posted by - March 4, 2020 0
नई दिल्ली। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी जोंटी रोड्स ने अपने टि्वटर हैंडल पर गंगा में डुबकी लगाते हुए…
Abhinav Shah

बच्चों का समय पर टीकाकरण करवाना उनकी सेहत और सुरक्षित भविष्य के लिए अनिवार्य: अभिनव शाह

Posted by - August 22, 2025 0
देहरादून: मुख्य विकास अधिकारी, अभिनव शाह (Abhinav Shah) ने जिला चिकित्सालय में बनाए गए राज्य के पहले सरकारी आधुनिक टीकाकरण…
benefits pregnant women can have by eating ginger

जानिए अदरक खाने से प्रेगनेंट महिला को हो सकते है क्या फायदे

Posted by - August 22, 2020 0
गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं को अपने स्‍वास्‍थ्‍य का बहुत ध्‍यान रखना पड़ता है क्‍योंकि इस समय जरा सी भी लापरवाही…
CM Vishnu Dev Sai

स्कूली बच्चों ने मुख्यमंत्री से पूछे विधानसभा संचालन को लेकर प्रश्न

Posted by - July 23, 2024 0
रायपुर। कृष्णा पब्लिक स्कूल के बच्चों ने आज मंगलवार को विधानसभा का भ्रमण कर विधानसभा की कार्यवाही भी देखी। इस…