नई दिल्ली। कोरोना काल में जहां लोगों का खुद का जीवन यापन करना मुश्किल हो रहा है। तो वहीं दिल्ली की रहने वाली प्रतिमा देवी (pratima devi ) लगभग 300 कुत्तों को उन्होंने साउथ दिल्ली के पीवीआर अनुपम के पास अपने शेल्टर में आसरा दिया। उनकी ये प्रेरणादायक कहानी काफी चर्चित हुई थी कि कैसे एक महिला जो अपना पेट पालने के लिए संघर्ष करती है, वह अब आवारा कुत्तों का भी पेट भरने का काम करती है।
हालांकि इन आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के लिए लोग भी उनकी मदद करते थे। वह उन्हें डोनेशन देते थे, लेकिन जैसे कोरोना आया तो लोगों की हालत हो गई खराब। जो डोनेशन मिलना बंद हो गया। और यहां तक कि से ज्यादा लोग अपने कुत्ते भी यहां छोड़कर चले गए।
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स्थानीय लोग उन्हें अम्मा के नाम से जानते हैं। 67 साल की अम्मा के पास कोरोना काल में वो लोग भी नहीं आए जो पहले इन कुत्तों के खाने-पीने और बाकी खर्चे के लिए उनकी सहायता करते थे। हालांकि कुछ लोग डिजीटल पेमेंट करते रहे। वह कहती हैं कि कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती गई। लोग यहां तक कि अपने पालतू कुत्तों भी यहां शेल्टर में छोड़कर चले गए। हालांकि इनका ध्यान रखने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि ये सब मेरे बच्चों की तरह से हैं।
बता दें कि साल 1980 में प्रतिमा दिल्ली आईं थी। वह पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम से दिल्ली आईं। साल 1984 से वो कुत्तों का ध्यान रख रही हैं। साल 2003 में उनकी झोपड़ी को आग लग गई थी। साल 2017 में नगरनिगम ने उनके शेल्टर को गिरा दिया था, लेकिन इन सब दिक्कतों के बाद भी उन्होंने अपने बच्चों यानी इन डॉग्स का ध्यान रखना नहीं छोड़ा।
रोज के तीन हजार रुपये होते हैं खर्च
पवन कुमार वह शख्स हैं जो इस शेल्टर को चलाने में अम्मा की मदद भी करते हैं। वह बताते हैं कि रोज का खाना खिलाने में 3000 रुपये खर्च तो होते ही होते हैं। 5 किलो कुत्तों का खाना, 10 किलो चावल, 15 से 17 किलो मीट लगता ही लगता है और इनकी दवाइयों पर भी काफी खर्चा होता है।
कोरोना काल में लोगों ने अपने डॉग्स को छोड़ा
गीता सेशमानी एक एनिमल एक्टीविस्ट हैं। वह कहती हैं कि लोगों को कोरोना काल में आइसोलेट होना पड़ा। इसी कारण उन्हें अपने डॉग्स छोड़ने पड़े। फिलहाल अम्मा इन सभी कुत्तों का ध्यान रख रही हैं। उन्होंने इतने बुरे दौर में भी हार नहीं मानी बल्कि उनका साथ नहीं छोड़ा।