माज हत्याकांड

माज हत्याकांड : बर्खास्त इंस्पेक्टर संजय राय समेत पांच को उम्रकैद

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लखनऊ। राजधानी लखनऊ के बहुचर्चित माज अहमद हत्याकांड मामले में थाना गाजीपुर के तत्कालीन इंसपेक्टर संजय राय समेत सात अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया था। इस आदेश के बाद दोषी करार दिए गए सभी अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया।

माज़ की बहन निदा से असफल प्रेम संबंधों के चलते सर्विलांस सेल के इंस्पेक्टर संजय राय ने शूटर से करवाई थी हत्या 

इन सभी अभियुक्तों की सजा के बिन्दु पर 28 फरवरी को न्यायालय ने हत्याकांड में बर्खास्त इंस्पेक्टर संजय राय समेत पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई है। मई 2013 में 14 वर्षीय माज़ की घर में घुसकर हुई हत्या थी। माज़ की बहन निदा से असफल प्रेम संबंधों के चलते सर्विलांस सेल के इंस्पेक्टर संजय राय ने शूटर से हत्या करवाई थी।

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एडीजे स्वप्ना सिंह ने संजय राय, रामबाबू उर्फ छोटू, अजीत राय उर्फ सिन्टू, संदीप राय व राकेश कुमार सोनी को आईपीसी की धारा 302 सपठित धारा 120बी, जबकि अभियुक्त सुनील कुमार सैनी उर्फ पहलवान व राहुल राय को आईपीसी की धारा 449, 302 सपठित धारा 34 में दोषी करार दिया है। उन्होंने अभियुक्त सुनील कुमार सैनी उर्फ पहलवान को आर्म्स एक्ट की धारा 3/25 में भी दोषी ठहराया है। अभियुक्तों की सजा के बिन्दु पर 28 फरवरी को सुनवाई होगी। इस आदेश के बाद दोषी करार दिए गए सभी अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।

अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त संजय राय की एक अर्जी पर इस मामले का विचारण छह माह में पूरा करने का  दिया था आदेश

सरकारी वकील मुन्नालाल यादव के मुताबिक अगस्त, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त संजय राय की एक अर्जी पर इस मामले का विचारण छह माह में पूरा करने का आदेश दिया था। इस मामले की विवेचना में संजय राय समेत आठ अभियुक्तों का नाम प्रकाश में आया था। एक अभियुक्त अजीत कमार यादव उर्फ बंटी फरार चल रहा है। इसकी पत्रावली अलग कर दी गई है। इसके खिलाफ कुर्की का आदेश जारी है। विवेचना के बाद अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 449, 120बी, 420, 467, 468, 471, 116 व 201 में भी आरोप पत्र दाखिल हुआ था।

29 मई 2013 को इंदिरानगर के फरीदीनगर इलाके में 14 वर्षीय माज के घर में घुसकर मारी थी गोलियां

29 मई 2013 को इंदिरानगर के फरीदीनगर इलाके में 14 वर्षीय माज की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसकी एफआईआर माज की बुआ हुस्न बानो ने अज्ञात लोगों के खिलाफ थाना इंदिरानगर में दर्ज कराई थी। हुस्न बानो के मुताबिक उनका 14 वर्षीय भतीजा माज अहमद सिद्दीकी घर में टीवी देख रहा था। रात 10:30 बजे तीन लोग एक बाइक से आए। आवाज देकर घर का दरवाजा खुलवाया। उनके दूसरे भतीजे फैजान सिद्दीकी के दरवाजा खोलते ही तीनों घर में दाखिल हो गए। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता हमलावरों ने असलहे निकाल कर माज पर गोलियां चला दीं। हुस्न बानो के मुताबिक उसे ट्रॉमा सेंटर ले गए, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था।

ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल का प्रभारी था संजय राय

घटना के वक्त इंस्पेक्टर संजय राय लखनऊ ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल का प्रभारी था। अधिकारियों के मुताबिक संजय ने विभाग में अपने सम्बंधों का प्रयोग करते हुए मामले की विवेचना को उलझाने का प्रयास किया। उसने बार-बार अकमल नाम के व्यक्ति का नाम लेते हुए हत्याकाण्ड में उसके शामिल होने का राग अलापा था। उसके बहकावे में आकर पुलिस ने अकमल को रडार पर लिया। पड़ताल के बाद भी उसकी संलिप्तता उजागर नहीं हुई। शक होने पर पुलिस अधिकारियों ने संजय राय की कॉल डिटेल खंगाली तो घटना से पर्दा उठ गया। पता चला कि संजय ने वाराणसी जेल में बंद अपराधी से कहकर आजमगढ़ के शूटरों को सुपारी दी थी।पुलिस ने घटना में शामिल शूटरों समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार किया।

संजय की कॉल डिटेल में एक ट्रेनी सब इंस्पेक्टर के ईद-गिर्द घूमती कहानी

संजय की कॉल डिटेल में एक ट्रेनी महिला सब इंस्पेक्टर का मोबाइल नंबर मिला था। जिस पर कई कॉल्स किए जाने की बात सामने आई थी। अधिकारियों के मुताबिक गाजीपुर थाने का प्रभारी रहते हुए संजय राय उक्त महिला के संपर्क में आया था। उसे मृतक आश्रित कोटे पर पुलिस विभाग में नौकरी दिलवाने में संजय ने काफी मदद की थी। बाद में जब वह सब इंस्पेक्टर पद पर ट्रेनिंग करने लगी तो उसकी अकमल नाम के युवक से बात होने लगी थी। इसकी भनक लगने पर संजय ने अकमल को रास्ते से हटाने की योजना बनाई और शूटरों को सुपारी दी थी।

हत्या के करीब दो महीने बाद 15 जुलाई को संजय ने पुलिस की आधा दर्जन टीमों को गच्चा देते हुए वकील की पोशाक में कोर्ट में सरेंडर किया था

पुलिस ने घटना के कुछ ही दिन में शूटरों समेत सभी मुख्य अभियुक्तों को पकड़ लिया था। लेकिन, महकमे के तेज-तर्रार इंस्पेक्टरों में शुमार संजय राय हत्थे नहीं लग रहा था। लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी जे. रविन्द्र गौड ने उसकी गिरफ्तारी के लिए कई टीमें गठित की थीं। पुलिस ने कई दिनों तक गोरखपुर, जौनपुर, आजमगढ़, वाराणसी और प्रयागराज में संजय की तलाश में धूल फांकी, लेकिन सफलता नहीं मिली। करीब दो महीने बाद 15 जुलाई को संजय ने पुलिस की आधा दर्जन टीमों को गच्चा देते हुए वकील की पोशाक में कोर्ट में सरेंडर किया था। बाद में उसे पद से बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि, उसने हाईकोर्ट में अर्जी देकर बर्खास्तगी के आदेश निरस्त करा लिए थे। इस पर यूपी पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे ले लिया था।

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