ब्रेस्ट कैंसर

रिसर्च: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग हुई आसान

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नई दिल्ली। ब्रेस्ट कैंसर भारत में होने वाले सभी तरह के कैंसर में सबसे आम है। इसे पहचानने में डॉक्टर भी चूक जाते हैं, लेकिन अब इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से पहचाना जा सकेगा।

गूगल के साथ एक ऐसा कंप्यूटर एलगॉरिदम तैयार किया है जो ऐसे ब्रेस्ट कैंसर को भी पहचान लेगा

इसका दावा ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि गूगल के साथ एक ऐसा कंप्यूटर एलगॉरिदम तैयार किया है जो ऐसे ब्रेस्ट कैंसर को भी पहचान लेगा। जिसको अभी तक चिकित्सक या रेडियोलॉजिस्ट नहीं पहचान पाते हैं। ये शोध हाल ही नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है। खास बात यह है कि ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग के बाद गलत रिपोर्टिंग के मामले भी न के बराबर हो जाएंगे। शिकागो के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एनेस्थेसियोलॉजी विभाग के डॉ. मोजियार एतेमादी का कहना है कि ये बड़ी उपलब्धि है, जिससे कैंसर की पहचान समय से हो सकेगी।

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मशीन लर्निंग डिवाइस को ब्रेस्ट कैंसर की पहचान के लिए होने वाली मैमोग्राफी जांच की स्कैनिंग को समझने के हिसाब से प्रशिक्षित किया गया है। इसमें देखा गया कि पहले 10 में से एक ब्रेस्ट कैंसर के ट्यूमर की पहचान चिकित्सक नहीं कर पाते थे। मशीन से ये आंकड़ा 37 मामलों में से एक हो गया है।

एआई से जांच के बाद घट गए मामले

वैज्ञानिकों ने ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस से जुड़े तीन अस्पतालों में 25,856 और अमेरिका के नॉर्थ वेस्टर्न मेडिसिन में 3,097 महिलाओं समेत करीब एक लाख मैमोग्राम डाटा पर अध्ययन किया है। इसमें ब्रेस्ट कैंसर की सटीक पहचान हुई है। डॉक्टर 9.4 फीसदी ब्रेस्ट कैंसर के ट्यूमर को नहीं पहचान पाए, लेकिन एआई से जांच के बाद ये आंकड़ा 2.7 फीसदी हो गया है। इसी तरह कैंसर की गलत पहचान के मामले 5.7 फीसदी थे जो घटकर 1.2 फीसदी रह गया है।

एआई चिकित्सा क्षेत्र में फैसले लेने में अहम भूमिका निभाएगा

शोधकर्ताओं ने मशीन के 14 ट्रायल के बाद पाया कि चिकित्सक 86 फीसदी मामले को पहचान लेते हैं, जबकि मशीन ने 87 फीसदी कैंसर के मामलों को पहचान लिया। गूगल हेल्थ के सॉफ्ट इंजीनियर और शोध के सह लेखक स्कॉट मैकिनी कहते हैं कि कंप्यूटर इस मामले में सबसे बेहतर हैं। उम्मीद है कि भविष्य में ये तकनीक रेडियॉलाजिस्ट के लिए मददगार बनेगी जिससे वे स्तन कैंसर के ट्यूमर को पकड़ सकेंगे और गलत रिपोर्टिंग के मामले भी कम होंगे। एआई चिकित्सा क्षेत्र में फैसले लेने में अहम भूमिका निभाएगा और डॉक्टरों और अन्य स्टाफ का भार भी कम करेगा।

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