National Saint Mahant Avedyanath will be remembered for ages

सामाजिक समरसता और राम मंदिर के लिए युगों तक याद रहेंगे राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ

46 0

गोरखपुर। गोरक्षपीठ में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 56वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज (Mahant Avedyanath) की 11वीं पुण्यतिथि पर जारी साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह गुरुवार (11 सितंबर) को संपन्न हो जाएगा। आश्विन कृष्ण चतुर्थी, गुरुवार को वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के विराट व्यक्तित्व का स्मरण कर उन्हें शब्दों और भावों की श्रद्धांजलि दी जाएगी। सामाजिक समरसता को ही आजीवन ध्येय मानने वाले श्रीराम मंदिर आंदोलन के नायक ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ का स्मरण सदैव एक ऐसे संत के रूप में होता है जिनमें समूचे राष्ट्र के सनातनियों की आस्था है।

नाथपंथ की लोक कल्याण की परंपरा को धर्म के साथ राजनीति से भी संबद्ध कर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज (Mahant Avedyanath) ने पांच बार मानीराम विधानसभा और चार बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए हुए आंदोलन को निर्णायक पड़ाव देने के लिए इस राष्ट्रसंत को निश्चित ही युगों-युगों तक याद किया जाएगा।

18 मई 1919 को गढ़वाल (उत्तराखंड) के ग्राम कांडी में जन्में महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avedyanath) का बचपन से ही धर्म, अध्यात्म के प्रति गहरा झुकाव था। उनके इस जुड़ाव को विस्तृत आयाम नाथपंथ के विश्वविख्यात गोरक्षपीठ में महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में मिला। गोरक्षपीठ में उनकी विधिवत दीक्षा 8 फरवरी 1942 को हुई और वर्ष 1969 में महंत दिग्विजयनाथ की आश्विन तृतीया को चिर समाधि के बाद 29 सितंबर को वह गोरखनाथ मंदिर के महंत व पीठाधीश्वर बने। योग व दर्शन के मर्मज्ञ पीठाधीश्वर के रूप में उन्होंने अपने गुरुदेव के लोक कल्याणकारी व सामाजिक समरसता के आदर्शों का फलक और विस्तारित किया। यह सिलसिला 2014 में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को उनके चिर समाधिस्थ होने तक अनवरत जारी रहा।

अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। महंत दिग्विजयनाथ ने अपने जीवनकाल में मंदिर आंदोलन में क्रांतिकारी नवसंचार किया तो उनके बाद इसकी कमान संभाली महंत अवेद्यनाथ ने। नब्बे के दशक में उनके ही नेतृत्व में श्रीराम मंदिर आंदोलन को समग्र, व्यापक और निर्णायक मोड़ मिला। आंदोलन की ज्वाला गांव-गांव तक प्रज्वलित हुई। महंत अवेद्यनाथ ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति और श्रीराम जन्मभूमि निर्माण उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष के रूप में आंदोलन में संतो, राजनीतिज्ञों और आमजन को एकसूत्र में पिरोया। यह भी सुखद संयोग है कि पांच सदी के इंतजार के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ की देखरेख में हुआ है।

महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avedyanath) वास्तविक अर्थों में धर्माचार्य थे। धर्म के मूल मर्म सामाजिक समरसता को उन्होंने अपने जीवनपथ का उद्देश्य बनाया। आजीवन उन्होंने हिन्दू समाज से छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए वृहद अभियान चलाया। अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बरहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में महंतजी ने देशभर के संतों को भी अपने इसी अभियान से जोड़ा। अपने स्पष्ट विचारों के चलते पूरे देश के संत समाज में अति सम्माननीय रहे महंत अवेद्यनाथ दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से बहुत दुखी हुए। इस तरह की पुनरावृत्ति उत्तर भारत में न हो, इसी कारण से धर्म के साथ उन्होंने राजनीति की भी राह चुनी। उनका ध्येय हिन्दू समाज की कुरीतियों को दूर कर पूरे समाज को एकजुट करना था। इसे लेकर उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज अभियान शुरू किया जहां जातिगत विभेद से परे सभी लोग एक पंगत में भोजन करते। काशी में डोमराजा के घर संत समाज के साथ भोजन कर महंतजी ने सामाजिक समरसता का देशव्यापी संदेश दिया। सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन की पहली ईंट रखवाई।

महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avedyanath) सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रभु श्रीराम और देवी दुर्गा के उद्धरणों से संदेश देते थे। ऐसे संदेश उनकी दिनचर्या में शामिल थे। महंतश्री लोगों को व्यावहारिक रूप में समझाते थे कि प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया, गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों किया, वनवास के दौरान वनवासियों से मित्रता की तो इसके पीछे उनकी सोच समरस समाज की स्थापना ही थी। वह बताते थे कि देवी दुर्गा की आठ भुजाएं समाज के चारों वर्णों से दो-दो भुजाओं की प्रतीक हैं। समाज के ये चारों वर्ण एकजुट हो जाएंगे तो वह भी देवी दुर्गा की भांति इतने सशक्त होंगे कि किसी भी शक्तिशाली पर नियंत्रण पा लेंगे। ठीक वैसे ही जैसे अष्टभुजी देवी दुर्गा सबसे तेज तर्रार और शक्तिशाली जीव शेर पर सवारी करती हैं।

महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avedyanath) के नाम राजनीति के क्षेत्र में भी अनूठा रिकार्ड है। उन्होंने पांच बार (1962, 1967, 1969, 1974 व 1977) मानीराम विधानसभा सीट और चार बार (1970, 1989,1991 व 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया था। वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष व महासचिव के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे।

Related Post

दिल्ली विधानसभा चुनाव

दिल्ली विधानसभा चुनाव : अमित शाह ने बुलाई सभी सांसदों की बैठक, जेपी नड्डा पहुंचे

Posted by - February 8, 2020 0
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में शनिवार को मतदान होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने अपने सभी सांसदों…
गौतम गंभीर का महबूबा मुफ्ती निशाना

महबूबा देश के 130 करोड़ लोगों की सच्चाई को कब तक ब्लाक करतीं रहेंगी – गंभीर

Posted by - April 11, 2019 0
जम्मू। पूर्व क्रिकेटर बीजेपी में शामिल हुए गौतम गंभीर ने  जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती को फिर से…
Mau Nagar Palika

नागरिक सहभागिता में मऊ नगरपालिका को प्रदेश में मिला प्रथम स्थान

Posted by - December 19, 2023 0
लखनऊ/मऊ। प्रधानमंत्री मोदी आह्वान पर 02 अक्टूबर को पूरे प्रदेश में स्वच्छता महाअभियान चलाया गया था। इस अवसर पर नगर…