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महाकुंभ के अंतिम शाही स्नान पर दिखा कोरोना का असर, बेहद कम संख्या में श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

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हरिद्वार।  कोरोना संकट के बीच आज हो रहे महाकुंभ ( Mahakumbh 2021) के अंतिम शाही स्नान पर महामारी का असर दिखा। हरकी पैड़ी समेत विभिन्न घाटों पर चैत्र पूर्णिमा का स्नान करने बेहद ही कम श्रद्धालु पहुंचे। शाही स्नान ब्रह्ममुहूर्त में ही शुरू हो गया था।

इस स्नान पर आम श्रद्धालुओं को हरकी पैड़ी पर स्नान करने के लिए सुबह 9 बजकर 30 मिनट तक का समय दिया गया था। हालांकि घाटों पर स्नान के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की आवाजाही शुरू हो गई थी, लेकिन संख्या बेहद ही कम रही। अब 9 बजकर 30 मिनट के बाद अखाड़ों का स्नान क्रम शुरू होगा।

चैत्र पूर्णिमा के शाही स्नान के दौरान अखाड़े 50 से 100 संतों को ही शामिल करेंगे। वाहनों की संख्या भी बेहद सीमित रहेगी। जूना अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत हरि गिरि और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत रविंद्र पुरी, महानिर्वाणी अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी के अनुसार, सभी अखाड़ों ने अपने जुलूस में गृहस्थों को शामिल नहीं करने और कोरोना की गाइडलाइन का पालन करने का आश्वासन दिया है।

वहीं, आईजी कुंभ के निर्देश के बाद सभी पुलिसकर्मी फेस शील्ड और डबल मास्क लगा कर ड्यूटी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्योंकि कोरोना के नए वेरिएंट के हवा से भी फैलने के बारे में सुना गया है, इसलिए ड्यूटी के दौरान पूरी सावधानी बरती जा रही है। भीड़ के इस बार कम आने की संभावना है। इसलिए स्थानीय लोगों पर अनावश्यक रूप से कोई प्रतिबंध न लगाया जाए।

वहीं, विश्व के सबसे पुराने और सबसे बड़े कुंभ मेले के कई प्रोटोकॉल और नियम हैं। मेले का शुभारंभ केवल सात संन्यासी अखाड़ों के स्नान से होता है और बैरागियों के आखिरी शाही स्नान पर यह संपन्न हो जाता है।

हालांकि हरिद्वार में कुंभ का आध्यात्मिक पक्ष उस दिन प्रारंभ होता है, जब बृहस्पति, कुंभ राशि में प्रवेश कर लें। पूर्ण योग सूर्य के मेष राशि में आए बगैर नहीं बनता। चूंकि, हरिद्वार कुंभ में 14 अप्रैल को पूर्ण योग बना था, इसलिए यह योग 14 मई को तब तक बना रहेगा, जब तक कि सूर्य, मेष से निकलकर वृष राशि में नहीं चले जाते।

इसके बावजूद सूर्य अभी एक वर्ष कुंभ में बने रहेंगे, लेकिन कुंभ महापर्व का योग उस दिन समाप्त हो जाएगा। हरिद्वार नगरी शैव संतों की कर्मभूमि है। यह अजीब बात है वैष्णव अणियों के आराध्य भगवान श्रीराम अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करने हरिद्वार आए, पर बैरागी प्रभुत्व इस शिवनगरी में स्थापित न हो पाया, जबकि गुरु नानकदेव, उनके पुत्र श्रीचंद महाराज, तीजी पातशाही गुरु अमरदास के बार-बार हरिद्वार आने से उदासीन धर्म बहुत फैला।

सभी स्नानों पर संख्या बल के हिसाब से बैरागी सब पर भारी पड़ते हैं। बैरागियों की दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी अणियों के श्रीमहंतों व खालसों का वैभव आखिरी स्नान पर भरपूर नजर आता है। हालांकि, इस बार महामारी के चलते स्नानार्थी बाबाओं की संख्या कम रखी जाएगी, पर शाही स्नान है, इसलिए खूब रंग जमाएंगे। चैत्र पूर्णिमा पर बैरागियों के वैभवपूर्ण शाही स्नान के साथ ही कुंभ मेला बीत जाएगा।

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