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एम सैंड यूनिट्स को मिल सकते हैं एमएसएमई के लाभ

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लखनऊ। देश में बढ़ते शहरीकरण और बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियों के कारण रेत की मांग में वृद्धि को देखते हुए योगी सरकार मैन्युफैक्चर्ड सैंड (M Sand) को इसके विकल्प के तौर पर देख रही है। सरकार प्रदेश में एम सैंड (M Sand) का निर्माण करने वाले उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए सभी एम सैंड यूनिट्स को इंडस्ट्री स्टेटस प्रदान करने पर विचार कर रही है। साथ ही इन यूनिट्स को एमएसएमई का लाभ दिए जाने का भी प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त फिक्स्ड पावर कॉस्ट और मिनरल रॉयल्टी पर भी विचार किया जा रहा है। इन सभी बातों को एम सैंड पॉलिसी (M Sand Policy) में समाहित किया गया है। स्टेकहोल्डर्स से मिले सुझावों पर गौर करते हुए जल्द ही एम सैंड पॉलिसी का फाइनल ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा और कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद इसे प्रदेश में लागू किए जाने की योजना है।

एमएसएमई नीति के लाभ होंगे लागू

प्रदेश सरकार के भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय ने हाल ही में एम सैंड पॉलिसी (M Sand Policy) के एक ड्राफ्ट पर प्रदेश और देश के विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा की है। निदेशालय के अपर निदेशक विपिन कुमार जैन के अनुसार, पॉलिसी में एम सैंड यूनिट्स को इंडस्ट्री स्टेटस दिए जाने का प्रावधान है। इसके अंतर्गत सभी एम सैंड यूनिट्स को उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन निदेशालय उत्तर प्रदेश की ओर से इंडस्ट्री स्टेटस के लाभ दिया जाएगा। साथ ही एमएसएमई प्रोत्साहन नीति 2022 के भी लाभ प्रदान किए जाने का प्रावधान प्रस्तावित है। इसमें कैपिटल सब्सिडी, स्टांप ड्यूटी में छूट और ब्याज में छूट का प्रावधान है।

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कैपिटल सब्सिडी के तहत बुंदेलखंड एवं पूर्वांचल की माइक्रो यूनिट्स को 25 प्रतिशत, स्माल यूनिट्स को 20 प्रतिशत और मीडियम इंटरप्राइज को 15 प्रतिशत तक कैपिटल सब्सिडी का लाभ देगी। वहीं, मध्यांचल एवं पश्चिमांचल में यह 20 प्रतिशत, 15 प्रतिशत और 10 प्रतिशत होगा। स्टांप ड्यूटी में छूट का जो प्रावधान किया गया है, उसमें बुंदेलखंड व पूर्वांचल के लिए 100 प्रतिशत और मध्यांचल व पश्चिमांचल के लिए 75 प्रतिशत की छूट प्रदान की जाएगी। इसके साथ ही माइक्रो इंटरप्राइज को 5 साल तक 25 लाख की कैपिंग के साथ 50 प्रतिशत तक ब्याज में सब्सिडी प्रदान किए जाने की भी योजना है।

सरकारी इंजीनियरिंग विभागों में 25 प्रतिशत की खपत

इसके अतिरिक्त एम सैंड यूनिट्स को कई और लाभ दिए जाने की भी योजना है। स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा में रखे गए पॉलिसी ड्राफ्ट के अनुसार एम सैंड निर्माता यूनिट्स को फिक्स्ड पावर कॉस्ट का लाभ मिलेगा। इसके तहत कॉमर्शियल प्रोडक्शन की तारीख प्रदान किए जाने के बाद से 5 वर्षों के लिए 1 रुपए प्रति यूनिट की दर से प्रतिपूर्ति की जाएगी। इसके अतिरिक्त मिनरल रॉयल्टी का भी प्रावधान है, जिसके अंतर्गत स्रोत चट्टान पर रॉयल्टी में छूट प्रदान की जाएगी। यही नहीं, सरकार की ओर से ये भी राहत दी गई है कि पीडब्ल्यूडी समेत सभी सरकारी इंजीनियरिंग विभागों में इस्तेमाल होने वाली कुल सैंड का 25 प्रतिशत एम सैंड ही इस्तेमाल किया जाएगा। धीरे-धीरे इस प्रतिशत को 25 से बढ़ाकर 50 किया जाएगा, ताकि एम सैंड यूनिट्स की खपत बढ़ सके।

क्या है एम सैंड (M Sand)?

एम सैंड दरअसल कृत्रिम रेत का एक रूप है, जिसे बड़े कठोर पत्थरों मुख्य रूप से चट्टानों या ग्रेनाइट को बारीक कणों में कुचलकर निर्मित किया जाता है। इसे बाद में धोया जाता है और बारीक वर्गीकृत किया जाता है। यह व्यापक रूप से निर्माण उद्देश्यों के लिए नदी की रेत के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे तरीकों से एम सैंड बनाया जा सकता है।

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