ममता बनर्जी को राज्यपाल ने दिलाई विधायक पद की शपथ, BJP MLA रहे गायब

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत टीएमसी के तीन नए विधायकों जाकिर हुसैन और अमीरुल इस्लाम को विधानसभा कक्ष में विधायक शपथ दिलाई। इस अवसर पर ममता बनर्जी के आला मंत्री और बीजेपी से टीएमसी में शामिल हुए मुकुल रॉय उपस्थित थे।

सभी विधायकों ने बांग्ला भाषा में विधायक पद की शपथ ली, हालांकि इस अवसर पर बीजेपी का कोई भी विधायक उपस्थित नहीं था। बीजेपी के विधायक शपथ ग्रहण समारोह से गैर हाजिर रहे। बता दें कि ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण समारोह को लेकर विवाद पैदा हुआ था। इसके बाद आज बीजेपी के विधायकों की अनुपस्थिति ने इस मामले में नया मोड़ ला दिया।

राज्यपाल ने ममता की जीत को बताया मैसिव विक्ट्री

विधानसभा में पहुंच कर राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी और ममता बनर्जी ने सबसे पहले अंबेडकर की मूर्ति में माल्यार्पण किया। बता दें पश्चिम बंगाल के विधानसभा के इतिहास में यह पहला अवसर था। जब राज्यपाल ने विधानसभा में किसी विधायक को शपथ दिलाई है। अभी तक राज्यपाल द्वारा दिए गए अधिकार के तहत विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को शपथ दिलाते रहे हैं, लेकिन राज्यपाल ने एक आदेश जारी कर विधानसभा अध्यक्ष को शपथ दिलाने का अधिकार छीन लिया है। इसे लेकर बंगाल में राजनीतिक विवाद हुआ था। राज्यपाल ने इस अवसर पर ममता बनर्जी की जीत को मैसिव विक्ट्री करार दिया।

तीसरी बार विधायक बनीं ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से बीजेपी के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से पराजित होने केबाद 66 साल की ममता बनर्जी ने भवानीपुर से बीजेपी की प्रियंका टिबरेवाल को 58 हजार से भी ज्यादा वोटों से हराया है। ममता बनर्जी की यह जीत राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें सीएम बने रहने के लिए 5 नवंबर के पहले विधानसभा का सदस्य होना जरूरी थी। यदि ममता बनर्जी चुनाव नहीं जीत पाती तो उनका सीएम पद खतरे में पड़ जाता। ममता बनर्जी तीसरी बार विधायक बनीं हैं, हालांकि वह सात बार सांसद रह चुकी हैं तथा कई बार केंद्रीय मंत्री भी रही हैं। ममता बनर्जी ने बांग्ला भाषा में शपथ का पाठ किया। शपथ पाठ के बाद राज्यपाल और ममता बनर्जी एक दूसरे बातचीत करते दिखे।

बता दें कि विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में हुई भारी हिंसा को लेकर ममता सरकार को देश भर में आलोचना झेलनी पड़ी थी। उस हिंसा के बाद यह पहला चुनाव था इसमें मिली जीत के साथ ही राज्य की सत्ताधारी पार्टी को अपने विरोधियों पर एक बढ़त मिल गयी है।

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