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सिलेंडर दरकिनार, लकड़ी चूल्हे (wood stove) पर बनने लगा खाना

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अंबेडकर नगर । गैस सिलेंडर के दामों में लगातार हो बढ़ोत्तरी का असर अब आम लोगों के रसोई पर दिखने लगा है। गांव की महिलाओं ने सिलेंडर को किनारे कर फिर से लकड़ी के चूल्हे  (wood stove) का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

गैस सिलेंडर के दामों में लगातार हो बढ़ोत्तरी का असर अब आम लोगों के रसोई पर दिखने लगा है। गैस की महंगाई और पैसे के अभाव में लोगों ने गैस सिलेंडर का उपयोग कम कर दिया है। गांव की महिलाओं ने सिलेंडर को किनारे कर फिर से लकड़ी के चूल्हे (wood stove) का उपयोग करना शुरू कर दिया है। गैस के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से उज्वला के लाभार्थियों ने सिलेंडर भराना ही कम कर दिया है। सरकार विकास और गरीबों के मदद का कितना भी दावा करे, लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावे को खोखला साबित कर रही है।

फिर चूल्हे का बना सहारा
सरकार ने उज्वला योजना के तहत के गरीब महिलाओं को मुफ्त में गैस सिलेंडर दे कर उनकी जिंदगी में एक नई चमक बिखेरी थी, लेकिन गैस के दामों में हो रही लगातार वृद्धि ने इस चमक पर काला पर्दा डाल दिया है। एक माह के अंदर ही गैस का दाम तकरीबन 100 प्रति सिलेंडर बढ़ गया है और आज गैस सिलेंडर 867 रुपये में मिल रहा है।
हलांकि कुछ कंपनियों के दाम इस रेट से दस पांच रुपये कम हैं तो कुछ के ज्यादा भी हैं। वैसे तो गैस के दामों का असर हर उपभोक्ता पर पड़ा है वो चाहे शहरी हो या ग्रामीण, लेकिन शहरी उपभोक्ता की मजबूरी है कि वो गैस भरायें।  दाम चाहे जितना हो क्योंकि बिना गैस के वो खाना कैसे बनाएगा, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े हुए दामों का असर दिख रहा है। लोगों ने एक बार फिर चूल्हे का सहारा (wood stove) लेना शुरू कर दिया है।

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