कैसे बनेगा डिजिटल इंडिया! महज 8 फीसदी ग्रामीण बच्चे ही कर पा रहे ऑनलाइन क्लास

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कोरोना संकट के बीच पिछले करीब दो साल से स्कूल बंद हैं, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के लिए तमाम स्कूल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आ गए। स्कूल चिल्ड्रेंस ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग नामक की इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत के आठ फीसदी बच्चे ही नियमित क्लॉस कर पा रहे हैं। निराला बाखला, ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा द्वारा तैयार रिपोर्ट में बताया गया कि बच्चे न सिर्फ शिक्षा से बल्कि बढ़िया पोषण और सुरक्षित माहौल से भी वंचित रहे। 15 राज्यों के इस सर्वे में बताया गया कि बच्चों के अभिभावकों ने माना कि उनके बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता पहले के मुकाबले कम हो गई है।

बच्चों के न पढ़ पाने का मुख्य कारण है कि अधिकतर परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं था, स्कूल की तरफ से भी कोई विशेष सहयोग नहीं मिल पा रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक, इस सर्वे के 30 दिन पहले तक ज्यादातर बच्चों की अपने शिक्षक से भेंट नहीं हुई थी। कुछ ही अभिभावकों ने बताया कि पिछले तीन महीने के दौरान कोई शिक्षक घर पर नहीं आया या पढ़ाई में उनके बच्चे की कोई मदद नहीं की।

उन्होंने कहा, ‘गाहे-बगाहे उनमें से कुछेक को वॉट्सऐप के जरिये यूट्यूब लिंक फॉरवर्ड करने जैसे सांकेतिक ऑनलाइन इंटरैक्शन को छोड़कर ज्यादातर शिक्षक अपने छात्रों से बेखबर लगते हैं। ’इस सर्वे से एक और चिंताजनक बात सामने आई है कि स्कूल बंद होने के साथ-साथ सर्वे वाले क्षेत्रों में मिड-डे मील भी बंद कर दिया गया है।

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सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों में से करीब 80 फीसदी ने बताया कि पिछले तीन महीने के दौरान उनके बच्चों को मिड-डे मील के बदले कुछ अनाज (मुख्यत: चावल या आटा) मिला था। लेकिन बहुत कम लोगों को कोई नकद मिला और काफी लोगों को उस दौरान कुछ भी नहीं मिला। रिपोर्ट में कहा गया, ‘कुल मिलाकर मिड-डे मील के विकल्पों का वितरण काफी छिट-पुट और बेतरतीब मालूम होता है। ’सर्वे के दौरान ज्यादातर अभिभावकों का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता कम हो गई है। यहां तक कि शहरी अभिभावकों के बीच भी ऐसा मानने वालों का अनुपात 65 फीसदी था, जो कि बड़ी संख्या है।

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