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कोरोना के बाद अब ताउते का कहर

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

जीवन अपने आप में संघर्ष है। तूफान (cyclone) है। बवंडर है। ऐसा तूफान जो दिखता भी है और अदृश्य भी राहत है लेकिन महसूस तो होता ही है। जीवन में समस्याओं और झंझावातों के दौर निरंतर चलता रहता है। एक समस्या खत्म होती नहीं कि दूसरी आ धमकती है। कोरोना महामारी का कहर भारत झेल ही रहा था । उसकी अर्थव्यवस्था पहले ही चरमरा रही है। ऐसे में समुद्र से विपत्यात्मक चुनौती का मिलना भी कम त्रासद नहीं है। ताउते (Toute) तूफान का आना भारत को  दोहरी आर्थिक चोट है। देश के सात समुद्र तटीय राज्य सीधे तौर पर इस तूफान से प्रभावित हुए हैं।

वर्ष 2021 का यह पहला सामुद्रिक तूफान (cyclone) इस देश को कितना नुकसान पहुंचाएगा, इसका सटीक आकलन तो उसके गुजर जाने के बाद ही होगा, लेकिन हर तूफान इस देश को गहरा दर्द तो दे ही जाता है। समुद्र सामान्य दिनों में जितना आकर्षक दिखता है, तूफान के समय वह उतना ही हाहाकारी हो जाता है। जानलेवा हो जाता है। समुद्र तटीय राज्यों को समुद्र से जितना लाभ मिलता है, उतना वह एक झटके में ही छीन लेता है। तूफानों (cyclone) के नाम जितने आकर्षक होते हैं, उनके काम और प्रभाव उतने ही अधिक डरावने। इससे समुद्र तटीय राज्य ही प्रभावित होते हों, ऐसा भी नहीं है, उनसे से राज्यों को भी आंधी-बरसात के रूप में तूफान का कम- अधिक  नुकसान झेलना पड़ता है। इसमें धन-जन की व्यापक क्षति होती है।

1967 से 12 जून 2019 तक इस देश में 121 चक्रवाती तूफान (cyclone) आए थे। 1997 के नवंबर माह में आए भीषण तूफान ने आंध्र प्रदेश और उसके पड़ोसी राज्यों में जो तबाही मचाई थी, उसे याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।ऐसा माना जाता है कि उस तूफान (cyclone) में तकरीबन 50 हजार लोग मारे गए थे जबकि सरकार के स्तर पर केवल 14204 लोगों के मरने की पुष्टि की गई थी। वर्ष 2018 में आए 7 सामुद्रिक तूफान (cyclone) में 343 लोगों की मौत हुई थी जबकि इस देश को 4 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इतना नुकसान साल दर साल होता रहता है।

खाई मुक, लैला, नीलम, हेलन, लहर, हुदहुद, ओनिल, फानूस, जल, माडी, थें और नीलोफर जैसे तूफान अपने नाम की बदौलत जितने अच्छे लगते रहे हैं, उस तरह का उनका काम नहीं रहा। उनके कहर को याद कर भारतीय जनजीवन आज भी कांप उठता है।

ताउते तूफान (cyclone) के चलते कर्नाटक में चार और गोवा में 2 लोगों की मौत हो गई। कर्नाटक और केरल के 74 गांवों में भारी नुकसान हुआ है। बार-बार आने वाले तूफान (cyclone) इस देश को साल दर साल अरबों-खरबों रुपए की आर्थिक चपत लग जाती है लेकिन हर बार भारत सरकार लोगों के साथ खड़ी नजर आती है। तूफान से जितना आर्थिक नुकसान होता है, उस नुकसान को दुरुस्त करने और नया संरचनात्मक ढांचा तैयार करने में भी इस देश को उतना ही,बल्कि उससे भी अधिक खर्च करना पड़ता है। तूफानों (cyclone) से जूझना जैसे इस देश की नियति बन चुकी है। तूफान (cyclone) के संकेत पहले मिल जाने से जन-धन के नुकसान को बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया जाता है। लोगों को समय पर सुरक्षित जिलों में भेज दिया जाता है।कुल मिलाकर अच्छी बात है कि सरकार लोगों के साथ खड़ी है। उनका सम्बल बानी हुई है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री निरंतर तूफान से निपटने की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। तूफान (cyclone) प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव दल की तैनाती कर दी गई है। उम्मीद ही कि जल्द ही देश इस आपदा से भी पार पा लेगा।

समुद्र में बार-बार आने वाले तूफान हम इंसानों को सचेत भी करते हैं। प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ और अवैज्ञानिक तरीके से उसका अत्यधिक संदोहन किसी भी लिहाज से हितकारी नहीं है। जिस तरह नदियों और समुद्र में औद्योगिक कचरे बहाए जा रहे हैं। महानगरों के कचरे समुद्र में डाले जा रहे हैं, यह स्थिति हम मानवों और जीव जगत के हितों के कथमपि अनुकूल नहीं है। हमें समझना होगा कि समुद्र कचरों का डंपिंग यार्ड नहीं है। उसकी अपनी स्वतंत्र संस्था है। देश- दुनिया के व्यापारिक और जंगी जहाज उसकी सहज-स्वाभाविक लहरों को प्रभावित करते हैं। उसका तापमान बढ़ते हैं।

प्रकृति से अतिचार कर कोई भी सुखी नहीं रह सकता।तूफान थोडे समय का होता है लेकिन वह हमें गहरे सबक दे जाता है। बार-बार तूफानों का दंश झेलकर भी अगर हम न चेतें तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। प्रकृति की चेतावनियों को आखिर हम कब समझेंगे? हम प्रकृति से हैं।प्रकृति हमारी है। प्रकृति की रक्षा करके ही हम सही मायने में सुरक्षित और संरक्षित हो सकेंगे। काश,इस युग सत्य को हम यथाशीघ्र समझ पाते।

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