Board Exam

बोर्ड परीक्षा पर अतिशीघ्र निर्णय जरूरी

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इस विषम कोरोनाकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य पर सर्वाधिक असर पड़ा है। अध्ययन-अध्यापन में बाधा का प्रभाव यह है कि बच्चे अवसादग्रस्त हो रहे हैं। तनाव के वशीभूत वे चिड़चिड़े हो रहे हैं। उनका भविष्य क्या हो होगा, यह चिंता उन्हें ही नहीं, उनके अभिभावकों को भी सता रही है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रविवार को राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक होनी है  जिसमें 12वीं बोर्ड (Board Exam) की लंबित परीक्षाओं एवं पेशेवर पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं पर मंथन होगा। यह अच्छी बात है। इस वर्चुअली बैठक में सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के शिक्षा मंत्री और शिक्षा सचिव शिरकत करेंगे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक तो इसमें रहेंगे ही। विकथ्य है कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के मद्देनजर 12वीं बोर्ड की परीक्षा (Board Exam) स्थगित कर दी गई थी।

14 अप्रैल को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं (Board Exam) स्थगित और 10वीं बोर्ड (Board Exam) की परीक्षा को रद्द कर दिया गया था। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुई बैठक में किया गया था। ये परीक्षाएं 4 मई से 14 जून के बीच होनी थीं। इसके अलावा राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) ने मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिये नीट प्रवेश परीक्षा एवं कुछ अन्य परीक्षा स्थगित की। इस भीषण महामारी में शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित हुई है। सवा साल से स्कूल बंद हैं। अनलॉक के आखिरी चरण में कुछ समय के लिए स्कूल खुले थे लेकिन यहां पढ़ाई के बजाय फीस और अन्य प्रशासनिक कार्य ही हुए। कुछ स्कूलों में पढ़ाई आॅनलाइन हुई लेकिन यह भी कुछ चुनिंदा स्कूल ही करा सके और बहुत सीमित छात्रों ने आॅनलाइन पढ़ाई की। अधिकांश स्कूल और ज्यादातर बच्चे आॅनलाइन पढ़ाई से दूर रहे। जिन स्कूलों ने आॅनलाइन पढ़ाई करायी और छात्रों ने की वे भी मानते हैं कि आॅनलाइन व्यवस्था क्लास अध्यापन का या फिर परम्परागत शिक्षण-प्रशिक्षण का विकल्प कदापि नहीं है। छात्र घंटों स्क्रीन के सामने बैठकर भी विषय-वस्तु को अच्छी तरह से नहीं समझ सके।

ऐसे में अगर विभिन्न बोर्ड परीक्षा लेते भी तो किस बात की?  जब पढ़ाई ही नहीं हुई है तो परीक्षा कैसे हो सकती है?  एक तो बिना पढ़ाई के परीक्षा गलत थी और दूसरी कोरोना महामारी की दूसरी लहर इतनी तेजी से फैली और युवाओं एवं बच्चों को भी बडेÞ पैमाने पर शिकार बनाया। ऐसे में परीक्षाओं का आयोजन करना एक तरह से आत्मघाती कदम होता, ठीक उसी तरह से जैसे कुछ राज्यों में चुनाव, कुंभ और यूपी में पंचायत चुनाव के कारण जो  जमावड़ा हुआ उससे कोरोना विकराल हुआ और लाशों की ढेर लग गयी। बच्चों को सुरक्षित करने के लिए यह जरूरी था कि पढ़ाई और परीक्षा के लिए स्कूल न खोले जायें। बच्चे घर पर रहें, आॅनलाइन पढ़ाई करें और जरूरी हो तो परीक्षा का आयोजन भी आॅनलाइन हो जाये। बहरहाल कोरोना के वैश्विक संकट को देखते हुए सीबीएसई, आईसीएसई, यूपी बोर्ड (Board Exam) सहित देश के अधिकांश बोर्डों ने कक्षा दस की परीक्षा को रद कर दिया और 12वीं की परीक्षा को स्थगित करने का फैसला किया गया। आने वाले दिनों में अगर हालात में सुधार होता है तो 12वीं की परीक्षा सुरक्षात्मक उपायों के साथ कराने में कोई हर्ज नहीं है क्योंकि 12वीं के बाद काफी हद तक छात्र भविष्य की राह तय करते हैं। इसलिए अंतिम वर्ष की परीक्षा होनी ही चाहिए। यही बात अनेक विशेषज्ञों ने भी सुझायी है कि स्कूली स्तर पर, ग्रेजुएट एवं पोस्ट गे्रजुएट के स्तर पर अंतिम साल की परीक्षा होनी चाहिए।

कोरोना की लहर अगर नियंत्रित होती है और माहौल में सुधार होता है तो बोर्ड (Board Exam) और कालेज व विश्वविद्यालय सुरक्षात्मक उपायों के साथ एक सीमित परीक्षा का आयोजन कर सकते हैं ताकि छात्रों का मूल्यांकन कर उनको उचित गे्रड अथवा अंक के साथ पास किया जा सके। केन्द्रीय बोर्ड एवं अधिकांश राज्यों के बोर्डों ने कक्षा 10 एवं इससे नीचे के छात्रों को बिना परीक्षा के पास करने का फैसला किया है।  इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ राज्य ने सबसे पहले रिजल्ट जारी करते हुए कक्षा दस के 97 फीसद छात्रों को फर्स्ट डिवीजन एवं लगभग तीन फीसद छात्रों को सेकेण्ड एवं थर्ड डिवीजन से पास कर दिया है। छत्तीसगढ़ बोर्ड ने नंबर देने में कौन सी पद्धति अपनायी यह तो नहीं पता लेकिन जिस तरह से 97 फीसद छात्रों को फर्स्ट डिवीजन पास किया गया, यह भी एक तरह का खतरा ही है।

शिक्षा बोर्डों को सुविचारित फार्मूले के तहत ही नंबर देना चाहिए और इसमें पिछली कक्षाओं का औसत, पिछली कक्षाओं की उपस्थिति, प्रोजेक्ट एवं आंतरिक मूल्यांकन को साझा आधार बनाया जा सकता है। सरकार को अतिशीघ्र इस विषय पर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि बच्चों को लंबे समय तक परीक्षा होगी या नहीं होगी के द्वंद्व में उलझाना उचित नहीं है।

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