Mahant Avaidyanath

समूचे राष्ट्र के सनातनियों की आस्था के ज्योति पुंज हैं ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ

139 0

गोरखपुर। सामाजिक समरसता को ही आजीवन ध्येय मानने वाले श्रीराम मंदिर आंदोलन के नायक ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avaidyanath) का अहर्निश स्मरण एक ऐसे संत के रूप में होता है, जिनमें समूचे राष्ट्र के सनातनियों की आस्था है। नाथपंथ की लोक कल्याण की परंपरा को धर्म के साथ राजनीति से भी संबद्ध कर महंत जी ने पांच बार मानीराम विधानसभा और चार बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए हुए आंदोलन को निर्णायक पड़ाव देने के लिए इस राष्ट्रसंत को निश्चित ही युगों-युगों तक याद किया जाएगा।

यह बातें गोरक्षपीठ से जुड़े एवं शिक्षाविद प्रो. प्रदीप कुमार राव ने एक विशेष वार्ता के दौरान कही। उन्होंने बताया कि उनकी पुण्य स्मृति में आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (21 सितंबर, शनिवार) को गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा। इसमें देशभर के प्रतिष्ठित साधु-संत और धर्माचार्य भी सहभागिता करेंगे।

उन्होंने बताया कि 18 मई 1919 को गढ़वाल (उत्तराखंड) के ग्राम कांडी में जन्में महंत अवेद्यनाथ का बचपन से ही धर्म, अध्यात्म के प्रति गहरा झुकाव था। उनके इस जुड़ाव को विस्तृत आयाम नाथपंथ के विश्वविख्यात गोरक्षपीठ में महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में मिला। गोरक्षपीठ में उनकी विधिवत दीक्षा 8 फरवरी 1942 को हुई और वर्ष 1969 में महंत दिग्विजयनाथ की आश्विन तृतीया को चिर समाधि के बाद 29 सितंबर को वह गोरखनाथ मंदिर के महंत व पीठाधीश्वर बने। योग व दर्शन के मर्मज्ञ पीठाधीश्वर के रूप में उन्होंने अपने गुरुदेव के लोक कल्याणकारी व सामाजिक समरसता के आदर्शों का फलक और विस्तारित किया। यह सिलसिला 2014 में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को उनके चिर समाधिस्थ होने तक अनवरत जारी रहा।

अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को बना लिया जीवन का मिशन

अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। महंत दिग्विजयनाथ ने अपने जीवनकाल में मंदिर आंदोलन में क्रांतिकारी नवसंचार किया तो उनके बाद इसकी कमान संभाली महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avaidyanath) ने। नब्बे के दशक में उनके ही नेतृत्व में श्रीराम मंदिर आंदोलन को समग्र, व्यापक और निर्णायक मोड़ मिला। आंदोलन की ज्वाला गांव-गांव तक प्रज्वलित हुई। मंदिर आंदोलन में यह महंत जी का ही अविस्मरणीय योगदान था कि उन्होंने धर्माचार्यों के बीच अपने-अपने मत-श्रेष्ठतावाद का खंडन कर भारत के लगभग सभी शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर खड़ा कर दिया। परिणामतः जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ-समिति का गठन हुआ तो 21 जुलाई, 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में सर्वसम्मति से महंत अवेद्यनाथ जी को अध्यक्ष चुना गया। तब से आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष रहे और उनके नेतृत्व में भारत में ऐसे जनांदोलन का उदय हुआ जिसने भारत में सामाजिक-राजनीतिक क्रान्ति का सूत्रपात किया।

राष्ट्र संत के रूप में युगों तक याद रहेंगे सामाजिक समरसता के अग्रदूत और  मंदिर आंदोलन के नायक*

महंत अवेद्यनाथ जी (Mahant Avaidyanath) ने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष और श्रीराम जन्मभूमि निर्माण उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष के रूप में आंदोलन में संतो, राजनीतिज्ञों और आमजन को एकसूत्र में पिरोया। यह भी सुखद संयोग है कि पांच सदी के इंतजार के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग उनके शिष्य, वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज्य शासन में पूर्णता को प्राप्त हो रहा है। श्रीराम मंदिर का निर्माण महंत अवेद्यनाथ जी के जीवन का वह मिशन रहा जो उनके सुयोग्य उत्तराधिकारी की देखरेख में जारी है।

सामाजिक समरसता को समर्पित धर्माचार्य

महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avaidyanath) वास्तविक अर्थों में धर्माचार्य थे। धर्म के मूल मर्म सामाजिक समरसता को उन्होंने अपने जीवनपथ का उद्देश्य बनाया। आजीवन उन्होंने हिन्दू समाज से छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए वृहद अभियान चलाया। अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बरहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में महंतजी ने देशभर के संतों को भी अपने इसी अभियान से जोड़ा। अपने स्पष्ट विचारों के चलते पूरे देश के संत समाज में अति सम्माननीय रहे महंत अवेद्यनाथ दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से बहुत दुखी हुए। इस तरह की पुनरावृत्ति उत्तर भारत में न हो, इसी कारण से धर्म के साथ उन्होंने राजनीति की भी राह चुनी। उनका ध्येय हिन्दू समाज की कुरीतियों को दूर कर पूरे समाज को एकजुट करना था। इसे लेकर उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज अभियान शुरू किया जहां जातिगत विभेद से परे सभी लोग एक पंगत में भोजन करते। काशी में डोमराजा के घर संतों और साधु समाज के साथ भोजन कर महंतजी ने सामाजिक समरसता का देशव्यापी संदेश दिया।

राष्ट्र संत के रूप में युगों तक याद रहेंगे सामाजिक समरसता के अग्रदूत और  मंदिर आंदोलन के नायक*

सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन की पहली शिला रखवाई। समाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए दलितों, वंचितों के घर सहभोज का आयोजन तो उनके जीवनकाल में स्वस्थ रहने तक जारी रहा। सामाजिक एकता के लिए वह सदैव स्पष्टवादी रहे। उन्होंने इस प्रश्न पर धर्माचार्यों, संत-महात्माओं, राजनीतिज्ञों, किसी को भी क्षमा नहीं किया, यदि वे हिंदू समाज की एकता के विरुद्ध अथवा अस्पृश्यता के पक्ष में खड़े हुए।

उद्धरणों से समझाते थे सामाजिक एकता की ताकत

नाथपंथ, गोरक्षपीठ के अध्येता और महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avaidyanath) के जीवन के शोधार्थी डॉ.प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि महंत अवेद्यनाथ सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रभु श्रीराम और देवी दुर्गा के उद्धरणों से संदेश देते थे। ऐसे संदेश उनकी दिनचर्या में शामिल थे। महंतश्री लोगों को व्यावहारिक रूप में समझाते थे कि प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया, गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों किया, वनवास के दौरान वनवासियों से मित्रता की तो इसके पीछे उनकी सोच समरस समाज की स्थापना ही थी। वह बताते थे कि देवी दुर्गा की आठ भुजाएं समाज के चारों वर्णों से दो-दो भुजाओं की प्रतीक हैं। समाज के ये चारों वर्ण एकजुट हो जाएंगे तो वह भी देवी दुर्गा की भांति इतने सशक्त होंगे कि किसी भी शक्तिशाली पर नियंत्रण पा लेंगे। ठीक वैसे ही जैसे अष्टभुजी देवी दुर्गा सबसे तेज तर्रार और शक्तिशाली जीव शेर पर सवारी करती हैं।

गुरु के बीजारोपित शिक्षा परिषद को बनाया वटवृक्ष

शिक्षा के क्षेत्र में भी महंत अवेद्यनाथ जी (Mahant Avaidyanath) महाराज ने अपने वरेण्य गुरुदेव महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज के सपनों को साकार किया। उन्होंने अपनी निष्ठा, सुदीर्घकालीन तपस्या और अनुभव की पूंजी से उत्तरोत्तर समृद्ध और समुन्नत करते हुए पूज्य गुरुदेव द्वारा बीजारोपित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद को वटवृक्ष जैसा वृहत्तर स्वरूप प्रदान किया। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अंतर्गत आज चार तीन दर्जन से अधिकन प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक के शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान, चिकित्सा संस्थान तथा सेवा संस्थान संचालित हो रहे हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के पारंपरिक शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ तकनीकी एवं स्वास्थ्य शिक्षा के संस्थानों में हजारों विद्यार्थी रोजगारपरक पुस्तकीय पाठ्यक्रमों के साथ-साथ भारतीयता तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ रहे हैं।

राजनीतिक क्षेत्र में भी बनाया रिकार्ड

महंत अवेद्यनाथ (Mahant Avaidyanath) के नाम राजनीति के क्षेत्र में भी अनूठा रिकार्ड है। उन्होंने पांच बार (1962, 1967, 1969, 1974 व 1977) मानीराम विधानसभा सीट और चार बार (1970, 1989,1991 व 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया था। वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष व महासचिव के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे। महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने सदैव राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भारतीय संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा, शैक्षिक पुनर्जागरण तथा हिंदू समाज की रक्षा में अपनी राजनीतिक भूमिका निर्धारित की।

Related Post

abhishek banerjee

एंबुलेंस देखकर बोले अभिषेक बनर्जी- रास्ता दीजिए, हम दिलीप घोष नहीं

Posted by - April 3, 2021 0
डायमंड हार्बर। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी(Mamta Banerjee) के भतीजे अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) के रोड शो में एक…
cm yogi

ब्रह्मलीन श्री सतुआ बाबा की 10वीं पुण्यतिथि पर मुख्यमंत्री योगी ने अर्पित की श्रद्धांजलि

Posted by - November 11, 2022 0
वाराणसी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) शुक्रवार को ब्रह्मलीन श्री सतुआ बाबा (Satua Baba) की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि…
कोरोनावायरस

‘बाबर की औलाद’ पर योगी की EC को नसीहत-बोले चुनावी मंच भजन गाने के लिए नहीं

Posted by - May 3, 2019 0
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 के बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्वाचन आयोग को अपनी विवादित टिप्पणी को…
cm yogi

जड़-चेतन के बेहतर समन्वय से चलता है जीवन चक्र : योगी आदित्यनाथ

Posted by - September 13, 2022 0
गोरखपुर। गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi)  ने कहा कि सृष्टि, प्रकृति, पूर्वजों तथा विरासत के प्रति कृतज्ञता का…