नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई)से संबद्ध यहां स्थित स्कूलों में कक्षा 10वीं के विद्यार्थियों के अंकों की गणना से संबंधित याचिका पर नौ जुलाई को सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) जस्टिस फॉर आॅल की याचिका पर अब 28 अगस्त की बजाए नौ जुलाई को सुनवाई के लिये सहमत हो गयी। इस संगठन ने याचिका पर 28 अगस्त से पहले सुनवाई करने के लिए न्यायालय से आवेदन किया था। इस संगठन की ओर से पेश हुए वकील खगेश झा ने कहा कि याचिका कक्षा 10वीं के सीबीएसई छात्रों के लिए अंक योजना में सबसे बड़े कारक के तौर पर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का इस्तेमाल करने पर गंभीर मुद्दा उठाती है। उन्होंने अदालत से कहा, मेरे अंक इसपर निर्भर करेंगे कि मेरे वरिष्ठों ने कैसा प्रदर्शन किया है।
एनजीओ ने अपने आवेदन में कहा कि छात्रों के अंक अपलोड करने की प्रक्रिया और परिणाम की तैयारी पूरी हो जाएगी तो याचिका अर्थहीन हो जाएगी। अदालत निजी स्कूल चलाने वाली संस्थाओं की पंजीकृत सोसाइटी एनआईएमए एजुकेशन की याचिका पर भी नौ जुलाई को सुनवाई करने पर सहमत हो गई। उसकी याचिका कक्षी 10वीं के विद्यार्थियों के मूल्यांकन के लिए परिमाण समिति गठित करने से संबंधित है। सोसाइटी की चिंता है कि परिणाम समिति के सदस्य और स्कूल के अन्य संकाय सदस्य तथा कर्मचारियों को विचार-विमर्श के लिए दैहिक रूप से मिलना होगा, इससे कोविड-19 महामारी की वजह से स्वास्थ्य पर वास्तविक खतरा हो सकता है।
सोसाइटी के वकील रवि प्रकाश गुप्ता ने दलील दी कि अगर याचिका पर परीक्षा परिणाम घोषित होने से पहले सुनवाई नहीं की गई तो यह अर्थहीन हो जाएगी। सीबीएसई के वकील रूपेश कुमार ने अदालत को बताया कि सोसाइटी की याचिका में कुछ भी नहीं है, क्योंकि अधिकांश स्कूल पहले ही अपने विद्यार्थियों के अंक अपलोड कर चुके हैं।
उन्होंने कहा, उनका मामला है कि लॉकडाउन के मद्देनजर, परिमाण समिति गठित नहीं की जा सकती है। 21,000 स्कूल हैं और शेष 62 स्कूल रहते हैं जिन्हें अंक अपलोड करने हैं। याचिका अर्थहीन है।
                        
                
                                
                    
                    
                    
                    
                    
