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आगत का स्वागत : न तो कोई सभा होगी और न ही जुलूस निकलेगा

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भारत में अतिथि देवो भव की परंपरा लंबे अरसे से चली आ रही है। अतिथि को भगवान की तरह पूजा जाता है। उसके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए जाते हैं। अतिथि के आगमन की तिथि निश्चित नहीं होती, वह कभी भी आ सकता है लेकिन नववर्ष के आगमन की तिथि तो पूर्व निर्धारित होती है, ऐसे में उसे अतिथि मानें या नहीं मानें,यह व्यक्ति के विवेक का मामला है। वह पुराने वर्ष जिसकी आज ही विदाई हो रही है, का उत्तराधिकारी है।

 

जब वर्ष 2020 आया था तो उसका भी इस देश ने बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया था। उसे लेकर लोगों ने ढेर सारी अपेक्षाएं भी पाल रखी थीं। एक दूसरे से बातचीत में लोगों ने नववर्ष मंगलमय हो, ऐसा कहा था। वही बात अब वर्ष 2021 के लिए कही जा रही है। वर्ष 2020 का जिस समय आगमन हुआ था तब कोरोना प्रोटोकॉल जैसी कोई बात नहीं था। उन्मुक्त हृदय से उसका स्वागत हुआ था। दो महीने तो ठीक-ठाक गुजरे। नववर्ष ने लोगों की आशाओं और अपेक्षाओं पर खरा उतरना ही आरंभ किया था कि मार्च में कोरोना और तज्जन्य लॉकडाउन ने देश में दस्तक दे दी।

 

देशवासी अपने ही घरों में कैद होकर रह गए। उसके बाद वर्ष 2021 का कोई ऐसा दिन नहीं रहा जब देश में लोग कोविड-19 से संक्रमित न हुए हों,जब कुछ लोगों को कोविड-19 के संक्रमण के चलते अपनी जिंदगी हारनी न पड़ी हो। यह सिलसिला वर्ष -2020 के अंतिम दिन तक चलता रहा। देश का कारोबारी माहौल तो बिगड़ा ही, प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन के दौरान पैदल यात्रा भी करनी पड़ी। कई मजदूरों की राह में ही मौत हो गई। वर्ष 2020 में एक बड़े राजनीतिक दल ने प्रवासी मजदूरों के लिए जिन बसों की व्यवस्था की,उनमें ढेर सारी ऐसी थीं जिनके नंबर स्कूटर के निकले। वर्ष का आरंभ अगर शाहीन बाग जैसे आंदोलनों के नाम रहा तो वर्ष 2020 का अंत किसानों के आंदोलन को समर्शित है।

 

वर्षांत से दो दिन पूर्व एक कोशिश हुई भी कि किसानों का वर्ष 2021 मंगलमय हो जाए लेकिन  ऐसा हो नहीं पाए। पुराने वर्ष से उछलकर गेंद अब नए वर्ष के पाले में चली गई है। चार जनवरी को सरकार और किसानों के बीच वार्ता होनी है। नया साल इस बात की उम्मीद कर सकता है कि सुलह-समझौते का सेहरा उसके ही माथे बंधेगा। वर्ष 2020 भरसक कोशिश करता रहा कि चीन और भारत के बीच पूर्वी लद्दाख में चल रहा तनाव खत्म हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली बार्डर और किसान अपनी मांगों के समर्थन में डटे हैं, वहीं भारत-चीन सीमा पर भारत और चीन के सैनिक डटे हुए हैं।

वहां बिल्कुल ही ‘नवली नवै न गहमर टरै’ वाली स्थिति है। वर्ष 2020 में दोनों देशों के बीच वार्ताएं तो खूब हुई लेकिन रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली नहीं। वर्श 2020 में जितने रोजगार मिले नहीं, उससे ज्यादा नौकरियां लोगों के हाथ से फिसल गईं। वर्ष 2021 का स्वागत करने के लिए तो यह देश बेताब है लेकिन कोविड प्रोटोकॉल उसके उमंग की राह में रोड़ा बनकर खड़ा हो गया है। उससे भी लोगों को उतनी ही अपेक्षाएं हैं जितनी कि 2020 से थीं। वर्ष 2020 से भारतीय जनमानस पूरी तरह निराश हुआ है लेकिन उसे लगता है कि 2021 उसे निराश-हताश नहीं करेगा। सरकार ने सुस्पष्ट कर दिया है कि 31 और एक को न तो कोई सभा होगी और न ही जुलूस निकलेगा। शराब पीकर अगर किसी ने हुड़दंग किया तो उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी।

 

इससे पहले इतना ठंडा स्वागत तो किसी भी नए साल का नहीं हुआ होगा। होनी को कौन टाल सकता है। नया साल परिस्थितियां तो नहीं बदल सकता। लोगों को प्रगति के नए अवसर अवश्य मुहैया करा सकता है। नए साल में कुछ बेहतर हो, इसकी प्रेरणा दे सकता है। जनशक्ति और राष्ट्रशक्ति की चेतना को प्रज्जवलित कर वह देश में विकास को नए आयाम दे सकता है। वह इस बात का आश्वासन तो नहीं दे सकता कि उसके रहते देशवासियों को कोई असुविधा, कोई तकलीफ नहीं होगी लेकिन  वह जन-जन की तकलीफों को दूर करने की लोगों को प्रेरणा तो दे ही सकता है।

 

उसे विश्वास है कि इस देश के 138 करोड़ लोग अगर अपनी क्षमता से पूरी जिम्मेदारी और निष्ठा के साथ अगर अपने दायित्व का र्विहन कर जाएंगे तो कोई मुश्किल नहीं कि वह उनके चेहरे पर मुस्कान और रौनक न ला सके।  भारत वर्ष में लंबे अरसे से एक जनवरी को नववर्ष के रूप में नकारा भी जा रहा है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि उन्हें जन्मदिन की बधाई न दें क्योंकि यह उनका नववर्ष नहीं है। भारत में अलग-अलग धर्म, संप्रदाय और समाज के लोग रहते हैं। सबका अपना नववर्ष है। हिंदू नववर्ष अगर चैत्र सुदी प्रतिपदा को होता है तो मुस्लिमों का हिजरी नववर्ष मुहर्रम से आरंभ होता है।

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ईसाई समाज भी चाहता रहा है कि नववर्ष या तो 25 मार्च को मनाए जाए या 25 दिसंबर को। बंगाली, जैनी, उड़िया, गुजराती,सिख और महाराष्ट्रियन समाज के लोग अलग-अलग तिथियों में अपना नववर्ष मनाते हैं। कई देश आज भी अपना नववर्ष अलग मनाते हैं फिर भारतवर्ष को अपने नववर्ष के दिनांक पर विचार क्यों नहीं करना चाहिए। कुल मिलाकर नए साल को इस तरह के सवालों से हमेशा जूझना पड़ता है। नए वर्ष के सामने चुनौतियों का पहाड़ है। एक ओर किसानों का आंदोलन है तो दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान की बदमाशियां। नए साल में अमेरिका में भी निजाम बदला होगा। ऐसे में नए निजाम के साथ पहले जैसा तालमेल बिठाना भी उसके लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। पंचायतों के चुनाव भी नए साल में ही होने हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान हालांकि वर्ष 2020 में ही आरंभ हो गया था। इसके लिए 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज भी स्वीकृत हो चुका है लेकिन इस अभियान को गति देना और पूर्णता प्रदान भी नए साल के दायित्व का हिस्सा है।

उसे देश को बेरोजगारी से निजात दिलान और उसे बारोजगार भी करना है और यह सब हुक्मरानों और जन-जन के संपूर्ण सहयोग के बिना मुमकिन नहीं है। नववर्ष के स्वागत में जितने पटाखे आज फूटे हैं, उसकी गूंज उसे साल भर सुनाई देती रहेगी। अपना उत्तराधिकारी सौंपते वक्त वर्ष 2020 ने भी उससे यही गुजारिश की है कि बहुत सुंदर वतन है। इसे संभालकर रखना। वह गुगुना भी रहा है कि अब तुम्हारे हवाले वतन साथ लेकिन नतसिर भी है कि वह भी इसी तरह जनादृत हुआ था लेकिन यहां के लोगों के हित में वह सब नहीं कर पाया जैसा कि इच्छा थी। नववर्ष-2021 क्या उसके छोड़े काम पूरे कर पाएगा। अपने नए और मेरे पुराने कामों के बीच क्या वह दब नहीं जाएगा?

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