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रामपुर तिराहे का बलिदानी-स्मारक मेरे लिए एक मंदिर है : चंद्रशेखर उपाध्याय

Chandrashekhar Upadhyay

Chandrashekhar Upadhyay

देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सलाहकार चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (Chandrashekhar Upadhyay) ने 2 अक्टूबर को उत्तराखंड राज्य के लोगों से अपील की है कि इसी तिथि को वर्ष 1994 में हुए मुजफ्फरनगर कांड के बलिदानियों एवं आंदोलनकारियों को पूर्ण न्याय दिलाने के लिए हम सभी आखिरी उम्मीद तक एक साथ कैसे चलें,कैसे लड़ें, यह संकल्प लें।

उन्होंने कहा है कि कुछ लोगों के लिए रामपुर तिराहे का बलिदानी—स्मारक ‘मीडिया—हाइप’ का माध्यम हो सकता है लेकिन मेरे लिए वह एक ‘मंदिर’ है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को न्याय दिलाना मेरी प्राथमिकताओं में है।

उन्होंने कहा कि जिस दिन रामपुर तिराहे की धरती उत्तराखंड के नौजवानों के खून से लाल कर दी गई थी, मैं छोटी कक्षा का विद्यार्थी था। मुझे कल्पना भी नहीं थी कि उन बलिदानियों को पूर्ण न्याय दिलाने का गुरुतर दायित्व मुझे प्राप्त होगा, इसे मैं ईश्वरीय आदेश मानता हूं। मैं अपने दायित्व का पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ निर्वहन कर पाऊं, यह शुभेच्छाएं पूरे राज्य से चाहता हूं।

चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय ने कहा है कि  विधानसभा चुनाव में निश्चित विजय के द्वार पर आ पहुंची कांग्रेस के स्वाभाविक और सर्वमान्य नेता हरीश रावत द्वारा उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के बलिदानियों एवं आंदोलनकारियों को पूर्ण न्याय दिलाने का गुरुतर दायित्व मुझे सौंपने के नेपथ्य में कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री रहे पं.नारायण दत्त  तिवारी का वह अटल संकल्प है जो उन्होंने रामपुर तिराहा मामले की पुनर्निरीक्षण याचिका स्वीकार होने के बाद व्यक्त किया था।

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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उस अटल संकल्प को मजबूती प्रदान की है, इस मामले में लगातार अजानकार, अचिंतित अकर्मण्य और अलबेले कुछ लोग राजनीतिक कोण तलाशने में अस्त—व्यस्त—मस्त और अब पस्त हैं। अब कोई क्या करे?

गौरतलब है कि 26 साल पहले वर्ष 1994 की भोर में 2 अक्टूबर को पुलिस ने दिल्ली जा रहे उत्तराखंड अलग राज्य निर्माण के आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई थीं और महिलाओं से अभद्रता भी की थी। हर साल दो अक्टूबर को जब पूरा देश शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की जयंती मनाता है, उस दिन उत्तराखंड की जनता को रामपुर तिराहे पर हुआ बर्बर हत्याकांड याद आ जाता है। 26 साल बाद भी राज्य आंदोलनकारियों की यह टीस समाप्त नहीं हुई है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में बस कुछ ही माह बाकी है, ऐसे में एक बार फिर यह सवाल सिर उठाने लगा है कि क्या उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को पूर्ण न्याय मिल सकेगा? क्या इस मामले के दोषी अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को उनके कर्मों की सजा मिल सकेगी।

देवभूमि में कांग्रेस नेतृत्व का चेहरा बने हरीश रावत ने मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलाने की बात कहकर उत्तराखंडियों के दिल में ढाई दशक से दबी चिनगारी को हवा दे दी है। उन्होंने प्रख्यात न्यायविद चंद्रशेखर उपाध्याय को यह दायित्व सौंपा है। अपने संदर्भपूर्ण एवं स्तरीय फैसलों और एक दिन में सर्वाधिक वाद निपटाने के चलते देश भर में ख्याति अर्जित कर चुके एच.जे.एस.अधिकारी चन्द्रशेखर 2004 में उत्तराखण्ड के एडीशनल एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए थे, इसके बाद उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे खण्डूड़ी और निशंक की टीम में वह ओ.एस.डी.न्यायिक, विधायी एवम् संसदीय-कार्य रहे। चंद्रशेखर उपाध्याय भाजपा के शीर्ष पुरुष पं.दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र हैं । हिन्दी से न्याय के लिए पूरे देश में चर्चित उपाध्याय इन दिनों संघ एवं भाजपा से कुछ बिंदुओं पर नाराज चल रहे हैं।

मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर की गई पुलिसिया फायरिंग में एक दर्जन से अधिक उत्तराखंडी नौजवानों की मौत हो गई थी जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे। जिलाधिकारी अनंत कुमार और डीआईजी बुआ सिंह की भूमिका पर भी सवाल उठे थे। वर्ष 1995में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने मुजफ्फरनगर कांड की जांच शुरू की थी। 28 पुलिसकर्मियों पर संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए। राज्य गठन के बाद वर्ष 2003 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह को नामजद किया और निर्दोष जनता पर गोली चलाने के अभियोग में तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ सजा सुनाई।

चंद्रशेखर उपाध्याय बताते हैं कि वर्ष 2005 में मुजफ्फरनगर की निचली अदालत में बहुचर्चित रामपुर तिराहा कांड में उत्तराखंड राज्य निर्माण के आंदोलनकारियों का पक्ष खारिज हो गया था। पूरे राज्य में आक्रोश था। लोग माणा से लेकर बनवसा तक राज्य सरकार के पुतले फूंक रहे थे। यह और बात थी कि अजानकार, अचिंतित अर्कम्य नौकरशाही की वजह से केस खारिज हुआ था। इस केस में राज्य तो पक्षकार ही नहीं था। मैंने रात में एडीशनल एडवोकेट जनरल पद से तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को अपना इस्तीफा सौंप दिया लेकिन एक क्षण तक उनकी आंखों में जो भाव उभरा, वह मुझे अंदर तक कचोट गया। उनकी आंखों में आंसू थे। इंदिरा हृदयेश की आंखें भी गीली थीं। मेरी आंखों में भी आंसू भर आए थे।

तिवारी जी ने अचानक अपने आंसुओं को रोका और कड़क स्वर में कहा—’ न दैन्यं न पलायनं।’ और मेरा इस्तीफा फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया। भावुक नारायण दत्त तिवारी ने कहा था कि  जिन लोगों पर मैंने सबसे अधिक भरोसा किया, आज उन्होंने उत्तराखंड और मेरी पीठ को अपने खंजर से लहूलुहान कर दिया है। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि राज्य की यह जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपता हूं। सब कुछ ठीक करो। उस दिन उस समय राज्य की सबसे ताकवर महिला इंदिरा हृदयेश ने न केवल उनकी बात का समर्थन किया और यह भी कहा कि राज्य को इस मामले में आंदोलनकारियों की ओर से ‘पक्ष’ बनना चाहिए। इसके बाद मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मामले की पैरवी की। मामले की पुनर्निरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली गई और यह मामला एक बार फिर जिंदा हो गया। उत्तराखंड में कांग्रेस के बड़े रणनीतिकार हरीश रावत ने चंद्रशेखर उपाध्याय से उम्मीद जाहिर की है कि वे मुजफ्फरनगर कांड के बलिदानियों और आंदोलनकारियों को पूर्ण न्याय दिलाएंगे। यह अपने आप में बड़ी बात है।

श्री उपाध्याय बताते हैं कि जिस दिन उत्तराखंडी आंदोलनकारियों को पूर्ण न्याय नहीं मिलेगा, तब तक मेरा मिशन अधूरा ही रहेगा।

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