Site icon News Ganj

अपनों से तो रोज हारता है भारत

mirage

mirage

कितना अच्छा लगता है,जब कोई यह कहता है कि अब भारत को कोई भी ताकत झुका नहीं सकती। मन बाग-बाग हो उठता है। दिल फूलकर कुप्पा हो जाता है लेकिन जब पता चलता है कि चलते हुए ट्रेलर से कुछ लोगों ने सेना के लड़ाकू विमान मिराज (mirage) के पहिए चुरा लिए तो सिर शर्म से झुक जाता है।

यह सच है कि भारत को कोई भी ताकत झुका नहीं सकती।  हरा  नहीं सकती। इतनी ताकत उसके पास है लेकिन  वह अपनो से तो हार सकता है।  व्यक्ति हो या राष्ट्र, वह हारता अपनों से ही है। जहां सुमति तहं संपति नाना औरजहां कुमति तहं विपति निधाना वाली बात यूं ही नहीं कही गई थी।  भारत सैकड़ों साल तक गुलाम रहा लेकिन इसके बाद भी उसने सबक नहीं लिया। आज भी नहीं ले रहा है।  तब गुलामी की वजह राजाओं के बीच का संघर्ष था और अब जब कभी भारत गुलाम होगा तो उसकी वजह होगी राजनीतिक दलों की सत्ता पाने की चाहत।

सत्ता सुख के लिए राजनीतिक दल कितने षड़यंत्र कर सकते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। यह अपना भारत ही है, जहां लोग सत्ताशीर्ष पर बैठे व्यक्ति को भी अपमानित कर सकते हैं। अन्य देशों में ऐसा नहीं है।  प्रगतिशील  बनने की दौड़ में देश की कुछ लोग कितनी तौहीन कराते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। भारत की तौहीन करने से मिलने वाला विदेशी पुरस्कारों  का सुख प्रगतिशील जन कहां छोड़ना चाहते हैं।

गोवा की धरती पर एक राजनीतिक हस्ती ने कहा हैकि यह अच्छी बात है कि सारी देवशक्तियां एकजुट हो रही हैं। देवशक्तियां एकजुट होजाएं , जागृत हो जाएं तो कुछ भी हो सकताहै लेकिन ये देवशक्तियां हैं कौन? वे लोग जो आत्मनिर्भरता को नहीं, मुफ्तखोरी को प्रोत्साहित करते हैं। वे अच्छे अस्पताल बनाने के बजाय  सरकारी स्तर पर मोहल्ला क्लीनिक खोलने के पक्षधर हैं। मोहल्ला क्लीनिक का डॉक्टर कौन, अपना कार्यकर्ता। उसी का घर, उसी की दुकान।  हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा हो गया। यह और बात है कि  अस्पताल की इस बाजीगरी में जनता के साथ धोखा हो गया। कोरोनाकाल में मोहल्ला क्लीनिकों ने हाथ खड़े कर दिए।  जब शमशीरें चलने लगती है तो महाराज मैं नाई हूं, कहना जरूरी हो जाता  है।

सरकार भले ही इस बात का दावा  करे कि देश को कोई झुका नहीं सकता लेकिन सच तो यह है कि लाल किले पर गणतंत्र दिवस के दिन तिरंगे का अपमान हो जाता है। वहां  धार्मिक झंडा फहरा दिया जाता है। सरकार को लोकहित में बनाए गए कानूनों को वापस लेना पड़ता है।  आतंकवादी हमारे ही घरों में पनाह पाते हैं, इसकी वजह चाहे जो हो।

दरअसल राजनीतिक दल एक व्यक्ति और दल को झुकाना चाहते हैं और इसके लिए जानवरों तक को देश का मतदाता बनाना चाहते हैं।  उत्तरप्रदेश के एक नेता ने  कामांध पशु की तस्वीर के बहाने इस आशय की अपनी मंशा भी जाहिर कर दी।  जिस देश में विकास का भी विरोध किया जाता हो, उस देश को  कौन बचा सकता है? कहा जा रहा है कि देश नई शिक्षा नीति से बचेगा। सवाल यह है कि यह देश  भारत की पुरानी कौटुंबिक परंपराओं और भारतीय संस्कृति से बचेगा।  निन्यानवे के  चक्कर में  हम कब अपनी जड़ों से कट गए, हमें पता ही नहीं चला। शिक्षा का बाजारीकरण रोकना होगा। स्वास्थ्य का कारोबार रोकना होगा। बिना इसके बात नहीं बनेगी। क्या हम हर छात्र को नि:शुल्क शिक्षा दे सकते हैं, इस बावत सोचना होगा।  गुरुकुल का एक आचार्य  अपने छात्रोंको चौदह भाषाओं यानी विद्याओं में पारंगत बनाता था। तकनीकी रूप से दक्ष बनाता था। आज हालात क्या है? हर मामले में  हम परमुखापेक्षी  हो गए हैं। यह सब क्यों और कैसे हुआ, इस पर मंथन जरूरी है।  इतिहास के पुनर्लेखन की बात की जा रही है।  इस दिशा में काम शुरूभी हो गया है । सही इतिहास पढ़ाने की बात की जा रही है लेकिन क्या गूगली ज्ञान से इतिहास का वास्तविक लेखन संभव हो सकेगा? इस पर भी विचार जरूरी है।

शरीर का एक भी अंग बगावती हो जाए  तो जिस तरह शरीर कमजोर हो जाता है, उसी तरह समाज के साथ भी होता है।  जाति,वर्ण, धर्म में बंटा समाज, भाषा और क्षेत्र की सीमाओं में बंटा समाज अपराजेय होने का दावा करे भी तो किस तरह?  और कदाचित वह एक होनेकी कोशिश भी करे तो राजनीतिक खेला और खदेड़ा कब उसे एकजुट होने देते हैं। बिखरा हुआ समाज हारता भी है और सिर झुकाने को विवश भी होता है।

 

Exit mobile version