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ओलंपिक 2021 में भाग लेने के लिए गोरखपुर का खिलाड़ी पहुंचा अमेरिका

Harikesh

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गोरखपुर। सरदार नगर के मजीठिया ग्राउंड की लगभग 20 वर्ष बाद इन दिनों रौनक बढ़ गई है। कारण यह है कि चौरी-चौरा के सरदार नगर के अहिरौली का लाल हरिकेश मौर्य इन दिनों अमेरिका में दिन-रात परिश्रम कर 2021 (Olympics 2021) में होने वाले ओलंपिक के लिए पसीना बहा रहा है।

हरिकेश  का नाम चर्चा में आने के बाद सरदार नगर में खेल के प्रति लोगों का 20 वर्ष बाद रुझान बढ़ गया है, हालांकि हरिकेश से पहले चौरी-चौरा के मजीठिया ग्राउंड से कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खिलाड़ी निकल चुके हैं।

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हरिकेश मौर्य इस समय अमेरिका में दिन रात परिश्रम कर रहे हैं और देश का नाम रौशन करना चाहते हैं। इंटर की पढ़ाई के दौरान हरिकेश ने दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू कर दिया था। वहीं उनकी इस उपलब्धि पर गोरखपुर जिले का मजीठिया ग्राउंड गुलजार हो गया है। सैकड़ों खिलाड़ी इस समय हरिकेश से प्रेरणा लेकर मजीठिया ग्राउंड में पसीना बहा रहे हैं।

गोरखपुर का लाल पहुंचा अमेरिका

गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा के अहिरौली गांव के रहने वाले विश्वनाथ मौर्य के दो बेटों में बड़ा बेटा हरिकेश है। हरिकेश इस समय अमेरिका में दिन रात परिश्रम कर रहा है और देश का नाम रौशन करना चाहता है। हरिकेश मौर्य गांव के एक निजी विद्यालय में पढ़ाई किया, उसके बाद बसडीला से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की।  इंटर की पढ़ाई के दौरान हरिकेश ने दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू कर दिया था। अमेरिका से भेजे गए वीडियो संदेश में हरिकेश मौर्य ने बताया है कि साल 2010 में मुंबई हाफ मैराथन में भाग लेने गए थे। 2011 में हरिकेश 40 किलोमीटर इंटरनेशनल मैराथन में नंगे पैर दौड़ा, जिसमें उनको टॉप 10 में जगह मिली।

अमेरिका में मिला दूसरा स्थान

गांव की गलियों और पगडंडियों से निकलकर विदेशी धावकों को पीछे छोड़ने वाले हरिकेश मौर्य अब कुछ बड़ा करना चाहते हैं। 2015 में हरिकेश ने नेशनल गेम्‍स में चौथा स्‍थान के बाद आसाम में 10 किमी मैराथन में विजेता बन गन गए। 2017 में हरिकेश ने अमेरिका में आयोजित हाफ मैराथन में दूसरा स्‍थान हासिल किया है, जिसके बाद उन्हें स्‍कॉलरशिप मिल गई। तभी से हरिकेश अमेरिका के टेक्‍सास में रहकर तैयारियों में जुटे हैं।

बेटे के सपने को पूरा करने के लिए पिता ने बेच दी जमीन

अहिरौली के हरिकेश मौर्य के पिता विश्वनाथ मौर्य ने बताया कि जनप्रतिनिधियों ने उनकी एक नहीं सुनी। वे अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए एक-एक करके अपनी पुश्तैनी जमीन को बेच रहे हैं। अब तक वे तीन बार अपनी जमीन को बेच चुके हैं। इस दौरान 15-16 लाख रुपये हरिकेश को खर्च के लिए दे चुके हैं। उनका कहना है कि सरदार नगर एक समय राष्ट्रीय खिलाड़ियों का नर्सरी था।  सरकार को ऐसा करना चाहिए ताकि आगे किसी पिता को अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए जमीन न बेचना पड़े।

दसकों बाद चौरी-चौरा को मिला राष्ट्रीय खिलाड़ी

पूर्व राज्यस्तरीय खिलाड़ी भूपेंद्र यादव ने बताया कि लगभग 30 वर्ष पूर्व चौरी-चौरा को राष्ट्रीय खिलाड़ियों की नर्सरी कहा जाता था। यहां के कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खिलाड़ियों ने चारों तरफ अपना झंडा बुलंद किया है। 1982 में सैयद मोदी ने स्वर्ण पदक जीता था।  ईश्वर सिंह, गुरमीत सिंह मित्ते, स्कंद राय, अमरजीत सिंह बिल्लू, इनके अलावा यहां के खिलाड़ियों की लंबी लिस्ट है जो अलग-अलग खेलो में चौरी-चौरा का नाम रोशन किए हैं।  सरकार और जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना चाहिए, जिससे गांव की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का मौका मिल सके।

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