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भिखारी ठाकुर के नाटकों ने बदली समाज की दिशा

Bhikhari Thakur

Bhikhari Thakur

अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास के बैनर तले  प्रेस क्लब में भोजपुरी कला संस्कृति के पुरोधा भिखारी ठाकुर (Bhikhari Thakur) की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर कृष्णानंद राय को हीरा महतो लोक चिंतन सम्मान सीमा राय द्विवेदी को सीता देवी द्विवेदी स्मृति मार्तण्ड सम्मान,इंजीनियर बी.के.मिश्र को पं. शिवगुलाम मिश्र स्मृति श्रमरत्न पुरस्कार से अलंकृत किया गया।

भोजपुरी फिल्म निर्देशक और अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास के संरक्षक दिनेश तिवारी ने मुख्य अतिथि की आसंदी से भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने भोजपुरी बोली-बानी को अपने नाटकों और कविताओं के माध्यम से बल प्रदान किया। उसे लोकप्रियता प्रदान की। उनका यह प्रयास रंग ला रहा है। आज भोजपुरी वैश्विक स्तर पर बोली जा रही है। अच्छा तो तब लगता है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भोजपुरी बोलकर भोजपुरी भाषाभाषी समाज से भावनात्मक रूप से जुड़ने का प्रयास करते हैं।

उन्होंने कहा कि इधर भोजपुरी में भिाखारी ठाकुरपर काम भी चल रहा था लेकिन दो अभिनेताओं की आपसी खींचतान  दुखद है। ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्होंने आश्वस्त किया कि जब भी अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी सेवा न्यास उन्हें याद करेगा, वे हर संभव सहयोग केलिए जी-जान से खड़ेमिलेंगे। भोजपुरी को ओ बढ़ाना ही हम सबके जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

कार्यक्रम के अध्यक्ष और मुख्य वक्ता सियाराम पांडेय ‘शांत ’ने भिखारी ठाकुर के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि   कक्षा एक तक पढ़े होने के बावजूद उन्होंने  कविता और नाट्य लेखन, भजन लेखन के क्षेत्र में जो काम किया, वह असाधारण है और कबीरदास और रामजियावनदास बावला की याद दिलाता है। भले ही जीवन के पूर्वार्ध के 30 साल उन्होंने हजामत बनाने और कलकत्ता जाकर पैसे कमानेमें गुजार दिए हों लेकिन उम्र के तीसवें पड़ाव से जीवन पय्रंत यानी की 54 साल उन्होंने भोजपुरी की जो सेवा की , सामाजिक कुरीतियों, आर्थिक विषमता और शोषण उत्पीड़न के खिलाफ जो आवाज बुलंद की, उसके लिए प्रकांड पंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें अनगढ़ हीरा कहा।

फर्क में भी फर्क होता है जनाब

उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा गया। भरतमुनि की परंपरा का कलाकार कहा गया। तुलसीदास और भारतेंदु  हरिश्चंद कहा गया। यह भोजपुरी समाज के लिए गौरव की बात है। उनके नाटकों का प्रभाव बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, असम और उड़ीसा पर भी पड़ा। सच तो यह है कि उनके नाटकों ने तत्कालीन समाज की दशा बदलने का काम किया। सही मायने में वे बड़े शब्द साधक थे।  वे कम पढ़े जरूर थे लेकिन अनुभव में पूरी तरह कढ़े थे। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना होगा।  इस अवसर पर कालीचरण महाविद्यालय के इंजीनियर इंजीनियर बीके मिश्र, सीमा राय द्विवेदी, रीता श्रीवास्तव और कृष्णानंद राय ने भी अपने विचार रखे।

इस अवसर पर लोक संस्कृति सेवा न्यास के अध्यक्ष ने आभार व्यक्त किया और भिखारी ठाकुर की प्रतिमा लखनऊ में लगाए जाने की सरकार से मांग की। इस अवसर पर दुर्गा प्रसाद दूबे, दिग्विजय मिश्र, राधेश्याम पांडेय , जेपी सिंह, दशरथ महतो, नर्वदा श्रीवास्तव उर्फ मधु श्रीवास्तव, इंदु रायजादा, सरला गुप्ता,कंचन श्रीवास्तव,हेमलता त्रिपाठी,प्रसून पांडेय, ब्रह्मानंद पांडेय, देवेश त्रिपाठी, नित्यानंद पांडेय, अखिलेश द्विवेदी, उमाकांत मिश्र, ऋषिकेश पांडेय,उषाकांत मिश्र, शाश्वत पाठक, रमेश मिश्र, शिवेंद्र पांडेय आदि  उपस्थित रहे।

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